हिंदी सिनेमा में पहली फिल्म की सफलता से रातोरात चर्चित हो कर धीरे-धीरे समय की धुंध में खोने वाले कई कलाकार हुए हैं। ऐसे ही कलाकारों में से एक थी विमी। ‘हमराज’ (1967) की सफलता और कुछेक फिल्मों के बाद विमी गुमनामी के अंधेरों में खो गईं। दौड़ते फिल्मजगत में किसी के पास इतनी फुरसत नहीं थी कि देखे कि कौन पीछे रह गया है। लिहाजा हुआ यह कि जब विमी का निधन हुआ तो उन्हें चार कंधे नसीब नहीं हुए। और न ‘हमराज’ में मीना (विमी) की मौत पर पति कुमार (सुनील दत्त) की तरह किसी ने कहा,‘ऐसे तो कोई भी नहीं मरता मीना!’ गर्दिशों से दौर से लड़ते विमी खाक हो गईं मगर किसी को खबर नहीं हुई। यह भी क्या मौत थी कि जनाजा तक नहीं निकला। नीले गगन के तले हाथ ठेले पर मैली-सी धोती से ढंकी देह धरी और श्मशान में अंतिम संस्कार कर दिया। 10 साल आॅल इंडिया रेडियो के लिए काम करने वालीं, सिनेमाप्रेमियों के दिलों पर राज करने वाली और कारोबारी घराने की बहू की ऐसी मौत! न अंतिम संस्कार में पति, न संतानें न फिल्मजगत के झक्क सफेद कपड़े-काले चश्मे लगाए फिल्म वाले। उनकी फिल्म ‘वचन’ के निर्माता तेजनाथ जार को छोड़ दें तो कोई बड़ा फिल्मवाला विमी के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं था। श्मशान में बामुश्किल नौ-दस लोग थे। वह बीआर चोपड़ा भी नहीं थे, जिन्होंने विमी को ‘हमराज’ से परदे पर पेश किया था।

मुंबई के सोफिया कॉलेज में मनोविज्ञान पढ़ी पंजाबी विमी ने कोलकाता के एक कारोबारी परिवार के शिव अग्रवाल से प्यार किया और शादी भी। पति-पत्नी एक दूसरे से टूटकर मोहब्बत करते थे। शिव के परिवार को यह रिश्ता रास नहीं आया था। वक्त के साथ विमी दो बच्चों की मां बन गई। एक बार शिव और विमी मुंबई घूमने गए तो वहां पारिवारिक मित्र संगीतकार रवि ने विमी को देखकर शिव से कहा,‘बहुत खूबसूरत बीवी लाए हो। फिल्मों में होती तो कई हीरोइनों की छुट्टी कर देती।’ फिर हुआ यह कि विमी ने सीधे घोषणा कर दी कि वह फिल्मों में काम करेगी। पति ने लाख समझाया मगर एक न चली और उन्हें अकेले ही कोलकाता जाना पड़ा। इधर विमी ने फिल्मजगत में संभावनाएं तलाशनी शुरू कीं। बीआर चोपड़ा ने दो बच्चों की मां को ‘हमराज’ में सुनील दत्त की हीरोइन बना दिया। फिर तो विमी को धड़ाधड़ फिल्मों के प्रस्ताव मिलने लगे। मगर बीआर के साथ अनुबंध के मुताबिक ‘हमराज’ रिलीज तक विमी बाहर की फिल्म साइन नहीं कर सकती थीं।

‘हमराज’ का दार्जीलिंग शेड्यूल फिक्स हो चुका था। इससे ठीक पहले कोलकाता पहुंच कर विमी ने बीआर चोपड़ा को सूचित कर दिया कि उनका काम पूरा हो गया है, लिहाजा अब वह दार्जीलिंग शेड्यूल में हिस्सा नहीं लेंगी। बीआर संदेश से परेशान होकर कोलकाता जा पहुंचे। वहां पर विमी ने उनसे अनुबंध की शर्तें शिथिल करवार्इं। बीआर अपने ही तराशे बुत को खुदा बनते देख रहे थे। इसके बाद बीआर-विमी के बीच रिश्ते दरक गए। इसका नुकसान यह हुआ कि विमी ने दूसरे निर्माताओं की फिल्में तो साइन की, मगर उनकी साख खराब हो गई। कुछेक फिल्मों के बाद तो विमी को काम मिलना बंद हो गया। इसकी एक दूसरी वजह भी थी। ‘हमराज’ के लिए 50 हजार लेने वालीं विमी ने अपना मेहनताना सीधे तीन लाख रुपए कर दिया।

उधर अग्रवाल परिवार ने जब देखा कि बेटा भी पत्नी के सपने के पीछे दौड़ रहा है, तो उन्होंने कुछेक रुपए देकर निकाल दिया। शिव और विमी मुंबई में साथ रहने लगे। मगर जल्दी ही निर्माताओं ने शिव के हस्तक्षेप से तंग आकर विमी से किनारा करना शुरू कर दिया। खुद विमी भी शिव के रवैये से आहत थीं, जो उनका दोहन करने पर उतारू हो गया था। दोनों में आए दिन झगड़े होने लगे और आखिर वे अलग हो गए। विमी आर्थिक संकटों से घिरीं। महंगी स्कॉच से ठर्रे पर उतरीं। बीमार पड़ीं। नानावटी अस्पताल के जनरल वार्ड में रहीं। निधन हुआ तो परिवार से कोई नहीं था, जो अंतिम संस्कार करे। ‘एक फिल्म ब्रोकर जॉली उनका हमसाया था, जिसने ठेले पर लाद कर अंतिम संस्कार किया।