आरती सक्सेना

छह साल की उम्र में संघर्ष (1999) में प्रीति जिंटा के बचपन की भूमिका निभाने वाली आलिया भट्ट की ताजा फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ प्रदर्शन के लिए तैयार है। 2012 में ‘स्टूडेंट आफ द इयर’ से हीरोइन बनीं आलिया ने बीते नौ सालों में ‘हाइवे’, ‘टू स्टेट्स’, ‘उड़ता पंजाब’, ‘राजी’, ‘गल्लीबाय’ जैसी फिल्मों से अपने करिअर को और बेहतर बनाया है। ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ में उनकी अभिनय क्षमता की परीक्षा होनी है। उनके मासूम चेहरे को देखते हुए उन्हें गंगूबाई की भूमिका में अनफिट बताया जा रहा है। लिहाजा आलिया की चुनौती बढ़ गई है। उन्हें एक ऐसे किरदार को परदे पर उतारना था, जो प्यार में धोखा खाने के बाद एक ताकतवर महिला के तौर पर सामने आती है।

सवाल : गंगूबाई का किरदार आपके व्यक्तित्व से मेल नहीं खाता। आपकी मासूमियत एक दबंग महिला को निभाने में आड़े आ रही है…
’दरअसल पहले संजय ने मुझे ‘इंशा अल्लाह’ नामक फिल्म आफर की थी। जब यह आगे नहीं बढ़ी तो उन्होंने ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ की पटकथा पढ़ने को दी। मैं तो डर गई थी और सोच रही थी कि क्या मैं यह किरदार निभा पाऊंगी। मगर संजय को मुझ पर भरोसा था, लिहाजा मैंने हां कह दिया। फिर जैसे कि हम पढ़ाई के दौरान परीक्षा देने के लिए तैयारी करते हैं, वैसे ही मैंने इस किरदार को लेकर तैयारी की।

सवाल : क्या कमाठीपुरा की सभी ‘गल्लियों’ में आप गर्इं थीं…
’संजय जी का बचपन उसी इलाके और उसके आसपास गुजरा इसलिए वे अच्छी तरह से जानते थे। गंगूबाई के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। मोटी मोटी जानकारियां थी कि वे जवाहरलाल नेहरू से मिली थीं। चार हजार औरतों के हक के लिए लड़ीं थीं। करीमलाला ने उन्हें आगे बढ़ाने में मदद की थी। मैं तो वही सब करती गई, जो संजय कहते गए।

सवाल : वे चाहते थे आप मीना कुमारी की तरह फिल्म में नजर आएं…
’हां, मुझे अपनी आंखों का चेहरे के भाव का इस्तेमाल बहुत कुछ उन्हीं की तरह करना था। मुझे वजन भी बढ़ाना पड़ा। मुझे लगातार खाने के लिए कहा जाता था। पूरी फिल्म में मुझे शराब पीनी थी, तो सारे समय बोतल हाथ में रहती थी। आवाज में थोड़ा भारीपन रखना था। मुझे उम्र के दो स्तरों पर फिल्म में गरबा भी करना था। कम उम्र में मैं उछल-उछल कर गरबा करती हूं। फिर उम्रदराज होने पर गरबे का ढंग बदल जाता है। सफेद साड़ी और लाल बिंदी के जरिए किरदार को एक अलग लुक दिया गया था। इसमें मीना कुमारी की झलक भी कहीं-कहीं दिखाई देती है।

सवाल : क्या संजय के साथ काम करना आसान था। वे बहुत सख्त निर्देशक हैं…
’ हां, आप बिल्कुल सच कह रही हैं। मैं तो नौ साल की उम्र से उनके साथ काम करना चाहती हूं। उनकी फिल्म में काम मिलना बड़ी बात है। उनके साथ शूटिंग करने के बाद समझ में आया कि अच्छा, कोई दृश्य इस तरह से भी फिल्माया जा सकता है। अपनी फिल्म और कलाकारों से उन्हें क्या चाहिए इसे लेकर बहुत स्पष्ट होते हैं।

सवाल : आप दक्षिण में फिल्म ‘आरआरआर’ कर रही हैं। क्या हालीवुड फिल्में करने के बारे में भी सोचती हैं…
’क्यों नहीं, बस भूमिका चुनौतीपूर्ण होनी चाहिए। अच्छी भूमिका मिले तो क्यों नहीं। एक जैसा काम मुझे पसंद नहीं है। अलग-अलग तरह के किरदार निभाना मुझे अच्छा लगेगा।

सवाल : गंगूबाई ने अपने सम्मान की लड़ाई लड़ी और ताकतवर महिला के रूप में उभरी। आप क्या सोचती हैं…
’मेरा मानना है कि ताकतवर महिला बनने के लिए आपको अपनी क्षमता पहचानने, प्यार करने की जरूरत है, हिंसा की नहीं। अपने पर विश्वास जरूरी है। अगर यह सब आपमें नहीं है तो दूसरों से छोड़िए आप खुद से भी नहीं लड़ सकते। मैं खुद भी लड़ने या वादविवाद में उलझने में ंविश्वास नहीं करती। मेरा मानना है कि मैं लोगों को अपने काम से ही जवाब दूं। बजाय इसके कि मैं किसी बात को लेकर सफाई दंू। इससे अच्छा मैं इतना अच्छा काम करूं कि लोग अपने आप ही मुझे और मेरी काबिलीयत को पहचान जाएं। मुझे कुछ साबित करने की जरूरत ही न पड़े। जैसे गंगूबाई एक सामान्य औरत ही थी लेकिन उसके कर्म इतने अच्छे थे कि कमाठीपुरा के लोग उसे भगवान की तरह पूजते थे।

शादी तो मैं गाजे-बाजे से ही करूंगी

आपकी व्यक्तिगत जिंदगी अच्छी चल रही है। सुना है आपने गुपचुप शादी कर ली…

-अरे नहीं … मैं चुपचाप शादी क्यों करूंगी। मैं तो दांत के डाक्टर के पास भी जाती हूं तो सोशल मीडिया में आ जाता है। शादी तो मैं गाजे-बाजे के साथ ही करूंगी।