जाने-माने अभिनेता नसीरुद्दीन शाह मानते हैं कि हिंदी के प्रसिद्ध लेखक, नाटककार व अभिनेता भीष्म साहनी की कहानियां उनके दौर से कहीं आगे की हैं। मौजूदा समय में भी उनकी प्रासंगिकता बरकरार है। दिल्ली में हाल में संपन्न साहनी के पांच नाटकों पर आधारित ‘भीष्मोत्सव’ का हिस्सा 66 साल के अभिनेता नसीरुद्दीन भी थे। उन्होंने कहा कि मैंने भीष्म साहब की बहुत सारी कहानियां तो नहीं पढ़ी हैं, लेकिन ये पांचों नाटक बेहद प्रासंगिक हैं। मेरी समझ से अच्छी रचना की कसौटी यही है कि वह अपने समय से आगे रहती है। मुझे यह स्वीकारने में कोई गुरेज नहीं कि भारतीय साहित्य में मेरा ज्ञान बहुत सीमित है। लेकिन अपनी इन कहानियों में वह (भीष्म) जिस बारे में बात करते हैं, वह आज भी प्रासंगिक है।

मुंबई के कोपल थिएटर की निर्मित और जानी-मानी थिएटर व फिल्म कलाकार सीमा भार्गव पाहवा के निर्देशन में मंचित ‘भीष्मोत्सव’ में रत्ना पाठक शाह, मनोज पाहवा, हीबा शाह, राकेश चतुर्वेदी, विनय शर्मा, मयंक पाहवा और मनुकृति पाहवा जैसे कलाकारों ने अभिनय किया। भीष्म साहनी की इन पांच चुनिंदा कहानियों में ‘ऊब’, ‘सिर का सदका’, ‘ढोलक’, ‘यादें’ और ‘समाधि भाई रामसिंह’ शामिल हैं।

रत्ना पाठक शाह ने कहा- सबसे अहम बात यह है कि ये सभी कहानियां अलग-अलग मूड की हैं। ऐसे बहुत कम लेखक हैं जिनकी हर रचना में इस तरह की विविधता होती है। अगर आप इन पांचों कहानियों को देखें तो यह विश्वास कर पाना मुश्किल है कि एक अकेले शख्स ने इन सभी कहानियों को लिखा है। भीष्म साहनी की रचनाओं से चुनी गई ये कहानियां विभिन्न सामाजिक पहलुओं पर टिप्पणी के साथ अहम संदेश भी देती हैं। इन कहानियों में अंधविश्वास, शिक्षा प्रणाली, पारंपरिक रीति-रिवाज इत्यादि के मुद्दे उठाए गए हैं।

सीमा भार्गव पाहवा ने कहा कि हमने सभी चीजों को लाने की कोशिश की है ताकि हम आपको हंसा सकें, आपकी आंखें नम हो सकें और इस पर सोचने के लिए आपको मजबूर कर सकें। साहनी की जन्मशती के अवसर पर इन नाटकों का मंचन पहले मुंबई में अगस्त 2015 में किया गया था।