सन 1927 में कैथरीन मेयो की लिखी किताब ‘मदर इंडिया’ छपी तो इसने भारतीयों की भावनाओं को जबरदस्त ठेस पहुंचाई थी। एक ओर अमेरिका में रहने वाले भारतीय क्षुब्ध थे, तो दूसरी ओर भारत में महात्मा गांधी ने इसकी कड़े शब्दों में निंदा की और आम जनता ने कैथरीन मेयो के पुतले जलाकर आक्रोश जताया था। पश्चिम में ‘मदर इंडिया’ के जरिये भारत और भारतीयों को समझने बूझने की कोशिश की जा रही थी, जिसमें हिंदुस्तानियों की यौन शुचिता से लेकर उनके आस्था-विश्वासों, पुराणों और परंपराओं का तिरस्कार किया गया था। कांग्रेस नेता दिलीप सिंह सौंड ने इसके जवाब में ‘माय मदर इंडिया’ और धनगोपाल मुखर्जी ने ‘ए सन आॅफ इंडिया आंसर्स’ लिखकर इसका जबाव देने की कोशिश की। इसका तात्कालिक फायदा तो हुआ, मगर कैथरीन की ‘मदर इंडिया’ भारतीयों के लिए तिरस्कार और अपमान का प्रतीक बनी रही।
इसके तीस साल बाद ‘मदर इंडिया’ के मायने बदले फिल्मकार महबूब खान ने। बामुश्किल चार जमात पढ़े और गुजरात के गांव से भाग कर मुंबई आए खान फिल्मों में एक्स्ट्रा कलाकार बन गए थे। किस्सा मशहूर है कि फिल्म ‘अलीबाबा और चालीस चोर’ में एक चोर महबूब भी बने थे। उन्हें पता नहीं था कि शॉट होने के बाद वह तेल के बड़े कुप्पे से बाहर भी निकल सकते हैं और निर्देशक के कहने पर वह वापस उसके अंदर छुप सकते हैं। लिहाजा लंबे समय तक वह कुप्पे के अंदर ही रहे। सिनेमा का बुनियादी ज्ञान न होने के बावजूद कड़ी मेहनत और लगन के दम पर महबूब खान अभिनेता से निर्देशक और निर्देशक से निर्माता बने।अपने द्वारा निर्देशित ‘औरत’ (1940) फिल्म के अधिकार लेकर महबूब खान ने ‘मदर इंडिया’ नाम से इसे फिर से बनाना शुरू किया। रॉ स्टॉक के लिए विदेश विभाग के साथ सूचना और प्रसारण मंत्रालय से 1955 में स्वीकृति मांगी तो सरकार चौकन्नी हो गई। मेयो की किताब ‘मदर इंडिया’ पर देश में उपद्रव हो चुके थे लिहाजा सरकार ने खान से कहा कि वह फिल्म की पटकथा जमा करें। महबूब खान ने पटकथा जमा कर दी।
‘मदर इंडिया’ में पहले दिलीप कुमार को राजकुमार और सुनील दत्त दोनों की ही दोहरी भूमिका दी जा रही थी, मगर नरगिस का कहना था कि पूर्व की फिल्मों में दिलीप कुमार की हीरोइन बन चुकी है इसलिए दर्शक दिलीप कुमार को उनके बेटे की भूमिका में पंसद नहीं करेंगे। सुनील दत्त वाली भूमिका में हॉलीवुड स्टार साबू दस्तगीर को लेने की भी कोशिश हुई मगर अंत में नरगिस (राधा) के बेटे (बिरजू) बने सुनील दत्त, जिन्होंने शूटिंग के दौरान आग में घिरी नरगिस को बचाया और वास्तविक जीवन में उनसे शादी की। ‘मदर इंडिया’ बनी, मुंबई के लिबर्टी सिनेमा में लगभग साल भर चली और सिनेमाप्रेमियों के दिलों में बस गई। 1955 उत्तर प्रदेश में आई बाढ़ को महबूब के कैमरामैन और मित्र फरदून ईरानी फिल्मा कर लाए। महाराष्ट्र और गुजरात के गांवों में भी इसकी शूटिंग की गई।
नौशाद द्वारा संगीतबद्ध इसके गाने समेत फिल्म इतनी लोकप्रिय हुई की मेयो की ‘मदर इंडिया’ फीकी पड़ गई। मेयो की ‘मदर इंडिया’ का इससे अच्छा जबाव कोई नहीं हो सकता था। फिल्म महिला सशक्तिकरण का दस्तावेज बनी। जिस सरकार ने फिल्म की पटकथा मंगवाई थी उसके राष्ट्रपति राजेंद्रप्रसाद, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू समेत कई सम्मानित नेताओं ने राष्ट्रपति भवन में इसे एक विशेष शो में देखा। यही नहीं आॅस्कर पुरस्कारों के लिए भी ‘मदर इंडिया’ नामांकित की गई। मेयो की ‘मदर इंडिया’ के सामने महबूब की ‘मदर इंडिया’ ने इतनी बड़ी लकीर खींच दी थी कि मेयो की ‘मदर इंडिया’ धुंधली पड़ गई।
