(29 सितंबर, 1932-23 जुलाई, 2004)
फिल्मों से दूर हो महमूद बंगलुरु में रहने लगे थे, मगर फिल्मों की याद गई नहीं। उनके फिल्म प्रेम से उनका बेटा और परिवार बुरी तरह ऊब चुका था। किसी फिल्म में काम नहीं कर रहे महमूद रोज चोरी चोरी मेकअप करते। आईने के सामने अभिनय करते। भरेपूरे परिवार में पैदा हुए महमूद को अपने आखिरी दौर में जिंदगी से इस तरह कदमताल करना पड़ा था।
महमूद का फैला हुआ परिवार था। वह मां लतीफुन्निसा के करीब थे। मां ने एक बार पैसा कमाने के लिए कहा, तो महमूद ने लोकल ट्रेनों में अंडे और गोली-बिस्किट बेचना शुरू कर दिया था। उनके पिता मुमताज अली अरकोट के नवाब की पहली पत्नी के बेटे थे और नृत्य-संगीत में रुचि के कारण मुंबई आ गए थे। मुमताज की आठ संतानें थीं। यह संयोग ही है कि महमूद की भी आठ संतानें हुईं। चार (मसूद, मकसूद, मक्दूम और मासूम) पहली बीवी मधु से, चार (जिनी, मासूमा, मंजूर और मंसूर) दूसरी बीवी (अमेरिकन ट्रेसी, निकाह के बाद ताहेरा अली) से। 50 के दशक में महमूद छिटपुट फिल्में कर रहे थे। मीना कुमारी के कहने पर वह मीना की बहन मधु को टेबल टेनिस सिखा रहे थे। गीतकार हसरत जयपुरी की बहन से महमूद की सगाई टूट गई थी। हालात ऐसे बने कि महमूद को मधु से शादी करनी पड़ी।
मां से लगाव के कारण ही महमूद चाहते थे कि उनके घर बेटी पैदा हो। जब मधु गर्भवती हुई तब महमूद की आर्थिक स्थिति खराब थी। कभी-कभी पैसे नहीं होने पर उन्हें 12 घंटे (सुबह पांच बजे से पैदल चलकर 11 बजे स्टूडियो पहुंचना, वहां से शाम पांच बजे वापस लौटना) पैदल चलना पड़ता था। यह तब था, जब पिता नामी नृत्य निर्देशक थे और बहन मीनू मुमताज मोटर कार से स्टूडियो जाती थीं। ऐसे दौर में गर्भवती मधु अस्पताल के जनरल वॉर्ड में भर्ती थीं। यह वह अस्पताल था, जिसे मुमताज अली ने मोटी रकम दान दी थी। मधु मां बनी मगर महमूद की बेटी की कामना पूरी नहीं हो सकी। बेटी का चाह में महमूद के चार बेटे हो गए। बाद में मधु का अफेयर एक वकील से हो गया और महमूद भी मधु के प्रति वफादार नहीं थे। दोनों का तलाक हो गया और महमूद ने एक अमेरिकन लड़की ट्रेसी से शादी कर ली।
ट्रेसी जब गर्भवती थीं तब महमूद का नाम हो चुका था। जब वह ब्रीच कैंडी अस्पताल में महमूद की पांचवीं संतान को जन्म देने जा रही थीं, तब महमूद महाबलेश्वर में शूटिंग कर रहे थे। वह सब कुछ छोड़ कर ब्रीच कैंडी जा पहुंचे। जब नर्स ने रोनी-सी सूरत बना कर उन्हें बताया कि बेटी पैदा हुई है, तो खुशी के मारे महमूद ने इतने जोर से बेटी कहा कि नर्स डर कर भाग खड़ी हुई। अपनी मां के नाम पर महमूद ने बेटी का नाम लतीफुन्निसा रखा। जिनी नामक इस बेटी ने महमूद के साथ ‘जिनी और जॉनी’ (1976) में काम किया। महमूद चाहते थे कि जिनी के साथ खेलने के लिए उनके यहां एक बेटी और हो। 1970 में मासूमा नामक बेटी पैदा भी हुई मगर वह जिंदा नहीं रह सकी। महमूद मासूमा की मौत पर फफक-फफक कर रोए।
बेटी की चाहत महमूद में कितनी शिद्दत से थी, इसका मार्मिक वर्णन इप्टा से जुड़े रहे लेखक हनीफ जवेरी की किताब ‘महमूद : ए मैन आॅफ मैनी मूड्स’ में मिलता है। महमूद मासूमा का शव गोद में लिए अस्पताल से निकल रहे थे, तभी एक छोटी-सी लड़की ने उन्हें पहचान कर आॅटोग्राफ देने के लिए कहा। महमूद ने एक हाथ से मासूमा को संभाला और दूसरे हाथ से उस बच्ची को आॅटोग्राफ दिया। उनके साथ गए निर्माता प्रेमजी ने पूछा कि क्या यह आॅटोग्राफ का सही समय था? महमूद ने कहा,‘हम बीते आठ दिनों से इस बात को लेकर परेशान थे कि मासूमा के चेहरे पर एक मुस्कान आ जाए। अब मासूमा तो नहीं रही। आॅटोग्राफ लेने वाली बच्ची भी मेरी बच्ची जैसी थी। आॅटोग्राफ देने से उसके चेहरे पर ही सही मुस्कान तो आ गई।’ मासूमा की कमी महमूद और ट्रेसी ने किशी नामक एक अनाथ लड़की को गोद लेकर किया, जिसे बंगलुरु में महमूद के फॉर्म हाउस पर कोई छोड़ गया था। पुलिस ने इसे मदर टेरेसा के आश्रम में दे दिया जहां मदर की अनुमति से ट्रेसी ने इसे गोद लिया था।

