शाहरुख खान को ‘जवान’ के लिए नेशनल अवॉर्ड मिलने के बाद अब मनोज बाजपेयी ने इस पर अपनी चुप्पी तोड़ी है। शाहरुख को अपना पहला नेशनल अवॉर्ड मिला, लेकिन सोशल मीडिया पर कई लोगों ने सवाल उठाए कि ‘सिर्फ़ एक बंदा काफ़ी है’ में मनोज बाजपेयी का प्रदर्शन कहीं ज्यादा दमदार था और उन्हें यह सम्मान मिलना चाहिए था।

इंडिया टुडे से बातचीत में मनोज ने कहा, “ये सब बेकार की बातें हैं क्योंकि अब हो चुका है। ‘सिर्फ़ एक बंदा काफ़ी है’ मेरी फिल्मोग्राफी में बेहद खास फिल्म है, वैसे ही ‘जोराम’ भी। ये दोनों हमेशा मेरे करियर की सबसे अहम फिल्मों में गिनी जाएंगी। लेकिन मैं ऐसी तुलना की बातें नहीं करता क्योंकि यह बहुत ‘लूज़र बातचीत’ है। यह अतीत में हो चुका है और उसे वहीं छोड़ देना चाहिए।”

उन्होंने आगे कहा कि अब नेशनल अवॉर्ड ही नहीं बल्कि ज़्यादातर अवॉर्ड्स की अहमियत कम हो रही है क्योंकि उनका झुकाव व्यावसायिक सिनेमा की ओर ज्यादा है। मनोज ने साफ कहा, “यह सिर्फ नेशनल अवॉर्ड की बात नहीं है, बल्कि उन सभी अवॉर्ड्स की बात है जिन्हें कभी बहुत सम्मान से देखा जाता था। उन्हें सोचना चाहिए कि वे किस तरह से काम कर रहे हैं। मेरी इज़्ज़त मेरे हाथ में है, मैं फिल्मों का चुनाव करते समय बेहद ज़िम्मेदारी से काम लेता हूं। लेकिन हर संस्था को खुद के बारे में सोचना चाहिए, यह मेरा काम नहीं है। अगर किसी और का सम्मान घट रहा है, तो उन्हें इस पर विचार करना चाहिए।”

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मनोज ने यह भी माना कि वे अवॉर्ड शो के विचार से ही सहमत नहीं हैं क्योंकि भारत जैसे देश में फिल्मों और परफॉर्मेंस की विविधता इतनी है कि तुलना संभव ही नहीं। उन्होंने कहा, “मेरे लिए अवॉर्ड शो की अवधारणा ही गलत है।”

हालांकि वे आयोजकों के सम्मान में ऐसे शो अटेंड कर लेते हैं, लेकिन जीतने या हारने को बहुत महत्व नहीं देते। उन्होंने कहा, “यह तो बस घर की सजावट का एक टुकड़ा है। आप रोज़ उसके सामने खड़े होकर यह नहीं कहने वाले कि ‘वाह, मुझे यह मिला।’”

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गौरतलब है कि यह शाहरुख खान का पहला नेशनल अवॉर्ड है, जबकि मनोज बाजपेयी इससे पहले सत्या (1998), पिंजर (2003) और अलीगढ़ (2016) जैसी फिल्मों के लिए यह सम्मान हासिल कर चुके हैं।

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