Manoj Bajpayee: बॉलीवुड एक्टर मनोज बाजपेयी आज किसी परिचय के मोहताज नही हैं। मनोज बाजपेयी ने अपने स्ट्रगलिंग के दिनों का किस्सा शेयर किया है। मनोज बाजपेयी ने बताया, “मैं एक किसान का बेटा हूं। मैं बिहार के एक गाँव में पला-बढ़ा हूँ, 5 भाई-बहनों के साथ हम एक झोपड़ी के स्कूल में पढ़ते थे। हमने एक साधारण जीवन व्यतीत किया, लेकिन जब भी हम शहर जाते, तो हम थिएटर जरूर जाते थे। मैं अमिताभ बच्चन का प्रशंसक था और उनके जैसा बनना चाहता था।’
मनोज बाजपेयी को पता चल गई थी अपनी प्रतिभा: मनोज ने बताया, ‘9 साल की उम्र में, मुझे पता था कि अभिनय मेरा भाग्य है। लेकिन मैं सपने देखना और अपनी पढ़ाई दोनों को एकसाथ जारी नहीं रख सका। फिर भी, मेरे दिमाग ने किसी और चीज पर ध्यान देने से इनकार कर दिया। 17 साल की उम्र में मैं डीयू के लिए रवाना हो गया। वहां, मैंने थिएटर किया लेकिन मेरे परिवार को इस बारे में जानकारी नही थी। आखिरकार, मैंने पिताजी को एक पत्र लिखा, वह नाराज नहीं थे और उन्होंने मुझे फीस जमा करने के लिए 200 रुपये भी भेजे थे।’
आत्महत्या करने के करीब थे मनोज बाजपेयी: मनोज ने कहा, ‘मुझे घर वापस बुलाया, लेकिन मैंने आंख बंद कर खुद पर भरोसा किया। मैं एक आउटसाइडर था, जो इंडस्ट्री में फिट होने की कोशिश कर रहा था। मैंने अंग्रेजी और हिंदी भाषा सीखी वहीं भोजपुरी मेरे बोलने के तरीके का एक बड़ा हिस्सा था। मैंने फिर NSD के लिए आवेदन किया लेकिन मुझे तीन बार रिजेक्ट कर दिया गया था। उस वक्त मैं काफी निराथ था और आत्महत्या करने के करीब था, इसलिए मेरे दोस्त मेरे बगल में सोते थे और मुझे कभी भी अकेला नही छोड़ते थे।’
मनोज ने कहा, ‘ जब मैं एक चाय की दुकान पर था तब तिग्मांशु अपने खटारा स्कूटर पर मुझे ढूंढते हुए आए थे। शेखर कपूर ने मुझे बैंडिट क्वीन में कास्ट करना चाहा! तो मुझे लगा कि मैं तैयार हूं और मुंबई चला गया। शुरू में, यह मुश्किल था। मैंने किराए पर 5 दोस्तों के साथ एक कमरा लिया था। मैंने काम की तलाश की, लेकिन कोई रोल नही मिला। एक बार मैंने एक दिन में 3 प्रोजेक्ट खो दिए थे। मुझे अपने 1 शॉट के बाद ‘बाहर निकलने’ के लिए भी कहा गया था। मैं एक आदर्श ‘हीरो’ के रोल में फिट नही हो रहा था, इसलिए उन्होंने सोचा कि मैं बड़े पर्दे पर कभी नहीं आ पाउंगा।’
‘मैंने घर का किराया देने के लिए भी काफी संघर्ष किया। उस वक्त मेरे लिए एक पाव भी महंगा था। लेकिन सफल होने के लिए मेरी भूख पेट की भूख से कहीं ज्यादा थी। 4 साल के संघर्ष के बाद, मुझे महेश भट्ट की टीवी श्रृंखला में एक भूमिका मिली। मुझे प्रति एपिसोड 500 रुपये मिलते थे। वहां से मेरे काम पर ध्यान दिया गया और मुझे मेरी पहली बॉलीवुड फिल्म की पेशकश की गई थी। जल्द ही, मुझे ‘सत्या’ के साथ बड़ा ब्रेक मिला। जब मुझे काफी नाम और पैसा मिला तो मैंने अपना पहला घर खरीदा। जब सपने हकीकत में बदलते हैं, तो मुश्किलें मायने नहीं रखतीं। मायने रखते हैं तो फिर 9 साल के उस बिहारी लड़के का विश्वास और कुछ नहीं।’