बॉलीवुड एक्टर अजय देवगन (Ajay Devgn) इन दिनों फिल्म ‘मैदान’ (Maidaan) को लेकर चर्चा में हैं। इसे ईद के मौके पर 11 अप्रैल को सिनेमाघरों में रिलीज किया गया। फिल्म में भारतीय फुटबॉल टीम के 1952 से 1962 के स्वर्णिम काल को दिखाया गया है। इसमें फुटबॉल टीम के कोच सैयद अब्दुल रहीम की कहानी और फुटबॉल से भारत की अलग पहचान दिखाने की कहानी को भी दिखाया गया है लेकिन, फिल्म की तुलना शाहरुख खान की ‘चक दे इंडिया’ से की जा रही है। सोशल मीडिया पर लोगों का कहना है कि अजय की फिल्म को किंग खान की मूवी से कॉपी किया गया है। ऐसे में चलिए आपको हम बताते हैं कि दोनों फिल्में एक-दूसरे से कैसे अलग हैं।
‘मैदान’ बायोपिक तो ‘चक दे इंडिया’ काल्पनिक है
आपने गौर किया होगा कि अजय देवगन की ‘मैदान’ एक बायोपिक है, जिसमें भारतीय फुटबॉल टीम के कोच सैयद अब्दुल रहीम की मेहनत और फुटबॉल के इतिहास में 10 साल के स्वर्णिम काल को दिखाया गया है। जबकि, शाहरुख खान की ‘चक दे इंडिया’ में काल्पनिक कहानी को दिखाया गया है।
फुटबॉल और हॉकी में है अंतर
‘मैदान’ और ‘चक दे इंडिया’ दोनों ही फिल्में स्पोर्ट्स पर आधारित हैं। अजय देवगन की मूवी में फुटबॉल तो ‘चक दे इंडिया’ में हॉकी पर आधारित कहानी को दिखाया गया है तो दोनों ही खेलों में बड़ा अंतर है।
दोनों फिल्मों का उद्देश्य अलग-अलग है
‘मैदान’ में जहां दिखाया गया है कि यहां लड़ाई भारत को पहचान दिलाने की होती है। वहीं, ‘चक दे इंडिया’ में कबीर खान पर लगे दाग को हटाने की कहानी को दिखाया गया है। जब बात देश की पहचान की आती है तो उसके आगे सबकुछ धूमिल हो जाता है। ऐसे में केवल मेहनत देखी जाती है और उसमें मिली सफलता को देखा जाना चाहिए। आज सैयद अब्दुल रहीम की वजह से ही भारत की फुटबॉल में अपनी पहचान है।
कोच का काम एक जैसा मगर मामला अलग
‘मैदान’ और ‘चक दे इंडिया’ में कोच अंडरडॉग प्लेयर्स की टीम को तैयार करता है लेकिन, दोनों में काफी अंतर है। अजय देवगन अपनी टीम खुद तैयार करते हैं। वो खुद खिलाड़ी चुनकर लाते हैं और किंग खान को मैदान में प्लेयर्स मिल जाते हैं। अजय देवगन की फिल्म में गली-कूचों से निकले प्लेयर्स की मेहनत को दिखाया गया है, जिन्हें ठीक से पहले कभी ट्रेनिंग तक ना मिली, उनके बलबूते भारत ने एशियन गेम में जीत का परचम लहराया था।
‘मैदान’ में दिखा दो उद्देश्य
अजय देवगन की फिल्म मोटिवेशन से भरी हुई है। इससे कोई भी सीख सकता है कि उम्मीद और आशा इंसान को जिंदा रखती है। अगर आशा और उम्मीद है साथ ही कुछ करने की जिद्द है तो आखिरी समय में भी आप अपनी मंजिल पा सकते हैं। फिल्म में दो उद्देश्य देखने के लिए मिले। पहला जो आप सभी जानते हैं कि भारत को फुटबॉल के जरिए पहचान दिलाना। दूसरा ये कि सैयद अब्दुल रहीम का अपने जीते जी भारत की पहचान और जीत को देखना।
प्रेरित करती है ‘मैदान’ की कहानी
‘मैदान’ को लेकर आप सभी ने सुना और फिल्म में देखा भी होगा कि ये बायोपिक है और भारतीय फुटबॉल टीम के स्वर्णिम काल को दिखाया गया है लेकिन, इस बात पर बहुत कम ही लोगों ने गौर किया होगा कि आजादी के बाद जहां भूखों मरने की नौबत थी, ठीक से बजट तक नहीं था वहीं, शख्स इंडिया को उसकी पहचान दिलाने के बारे में सोच रहा था और 13 साल में ही भारत को उसकी पहचान फुटबॉल जैसे खेल में एशियन गेम में दिलाई। ये अपने आप में ही बहुत बड़ी बात है। ऐसी कहानियां प्रेरित करती हैं।
वहीं, कुछ स्पोर्ट्स क्रिटिक्स का कहना है कि फिल्म में कुछ चीजें सही से नहीं दिखाई गई हैं। अब्दुल रहीम के बारे में नहीं दिखाया गया है। ऐसे में आपको बता दें कि अब्दुल रहीम की मेहनत के बारे में फिल्म में दिखाया गया है। सिर्फ उनके बचपन और बचपन के स्ट्रगल को नहीं दिखाया गया है। फिल्ममेकर्स ने इस मूवी के जरिए सिर्फ ये दिखाने की कोशिश है कि भारतीय फुटबॉल टीम का स्वर्णिम काल कैसा रहा और क्यों उसे स्वर्णिम काल कहा गया। भारतीय फुटबॉल के इतिहास और अब्दुल रहीम की मेहनत पर ‘मैदान’ को दिखाया गया है।
अब अगर सभी बिंदुओं और पहलू पर नजर डाली जाए तो अजय देवगन की फिल्म ‘मैदान’ की तुलना शाहरुख खान की ‘चक दे इंडिया’ से करना गलत है। अजय ने अब्दुल रहीम की भूमिका को शानदार तरीके से निभाया है। उन्होंने एक कोच की भूमिका में बेहतरीन काम किया है। वहीं, फिल्म के कुछ दृश्य ऐसे हैं कि आपके धड़कनें थम जाएंगी। आपको लगेगा कि सच में आप भारत का मैच देख रहे हैं। ‘मैदान’ और ‘चक दे इंडिया’ का जोनर एक है, इसलिए प्लेयर्स को दी जाने वाली ट्रेनिंग्स और कुछ चीजें एक जैसी लग सकती हैं मगर उसके आधार पर इसे एक जैसा कह देना गलत होगा और फिल्म के साथ अन्याय।