Mahabharat 5 April Episode: कोरोना वायरस के चलते हुए लॉकडाउन में लोग घर बैठे टीवी पर आ रहे पुराने धारावाहिकों का आनंद ले रहे हैं। महाभारत और रामायण के री-टेलीकास्ट ने जहां बड़ों की पुरानी यादें ताजा कर दी हैं वहीं, बच्चे भी बड़ी जिज्ञासा के साथ इन धारावाहिकों का आनंद ले रहे हैं। दर्शक बी.आर चोपड़ा की इस ऐतिहासिक धारावाहिक को दूरदर्शन पर दोपहर 12 बजे और शाम को 7 बजे देख सकते हैं। 28 मार्च से शुरू हुए महाभारत की कहानी इस वक्त भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से होते हुए यौवन तक पहुंच चुकी है। राधा के साथ कन्हा का प्रेम गोपियों की चर्चा का विषय बन चुका है।
पिछले एपिसोड में दिखाया गया कि कैसे कान्हा ने हठ करके नंदगांव के निवासियों को माखन मथुरा भेजने से रोक दिया। दो दिन तक जब माखन मथुरा नहीं पहुंचा तो मथुरा नरेश कंस ने क्रोधित होकर अपने सेनापति को नंदगांव भेजा। सेनापति द्वारा गाय और ग्वालों को परेशान करने की खबर जब कान्हा तक पहुंची तो उनकी बांसुरी की धुनों से प्रभावित होकर गायों ने कंस की सेना को खदेड़ दिया। इस बात की जानकारी जब कंस को मिली तब उन्होंने दो असुरों को नंदगांव को तहस-नहस करने की आज्ञा दी। लेकिन कान्हा और बलराम ने अपने पराक्रम से दोनों ही राक्षसों को मार गिराया।


पांडु की मृत्यु के बाद कुंती को भीष्म पितामह धृतराष्ट्र के महल ले जाने को आते हैं। कुंती पांचों पांडवों के साथ महल को रवाना होती हैं। धृतराष्ट्र अपने बेटे दुर्योधन और पत्नी गांधारी के साथ कुंती और पांचों पांडवों से मिलने को व्याकुल हो उठते हैं। कुंती गांधारी से कहती है कि मैं आज खाली हाथ आ गई जिसपर गांधारी कहती हैं कि तुम खाली हाथ नहीं बल्कि पांच रत्नों के साथ आई हो...
इधर, नंदगांव के लोगों पर क्रोधित इंद्रदेव की वजह से वहां भारी वर्षा होने लगी। बारिश के कारण बृजवासियों के खेत-खलिहान सब डूबने लगे। जब पानी सिर से ऊपर पहुंच गया तो सभी लोग कान्हा के पास मदद मांगने गए। प्रभु श्रीकृष्ण ने सबको आश्वासन देते हुए निश्चिंत रहने को कहा। इस घनघोर बारिश से लोगों की रक्षा करने के लिए कान्हा ने अपनी छोटी उंगली के बल पर विशाल गोवर्धन पर्वत उठा लिया और लोगों को उसके नीचे आने के लिए कहा। कान्हा के पराक्रम को देखकर दंग नंदगांव के लोग उनका गुणगान करने लगे। वहीं, ये देख इंद्रदेव लज्जित हुए और उनका अहंकार भी चूर-चूर हो गया।
राधा कान्हा की बांसुरी की धुन को सुनकर सब कुछ भूल बैठती है और कान्हा से विनती करती है कि वो सिर्फ राधा के लिए ही बांसुरी बजाएं। इस बीच जब कंस को ये खबर मिली कि एक 11 साल के बच्चे ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया है तो उन्हें यकीन हो गया कि श्री कृष्ण ही देवकी की आंठवीं संतान हैं। उन्होंने अक्रूर को बुलावा भेजा और कहा कि वो शीघ्र ही कंस के भांजे कृष्ण को मथुरा ले आएं। अक्रूर ने जब ये बात नंद बाबा को बताई तो वो चिंतित हो गए लेकिन फिर कान्हा को मथुरा भेजने के लिए मान गए।
जैसे ही कृष्ण और बलराम कंस का आशीर्वाद लेने पहुंचे, कंस उनसे कहने लगा कि आओ भांजे, तुमसे मिलने के लिए तो मेरी आंखें तरस गई थीं। ये कहते हुए जैसे ही कंस ने उन्हें गले लगाकर मारना चाहा तो वो विलुप्त हो गए। कुछ देर तक यूं ही अपनी लीलाओं से कंस को परेशान करने के उपरांत, प्रभु श्री कृष्ण ने कंस का अपने पैरों से वध कर दिया। अंत समय में कंस को अपना विष्णु अवतार दिखा कर कृतार्थ करके उन्हें सद्बुद्धि प्रदान की।
हाथी के नतमस्तक हो जाने के बाद कंस अचंभित हो गए और पहलवान मुष्टिक को कान्हा को मारने के आदेश दिए। इस तरह सबसे पहले मल युद्ध आरंभ हुआ और पहलवान आपस में लड़ाई करने लगे। कान्हा और बलराम भी बड़े आनंद से इसे देखते हुए अंदर चले गए। पर कंस के सोच के विपरीत दोनों ही बाल कुमार पहलवानों को पटखनी देने लगे। अब सभी पहलवान मिल कर कृष्ण-बलराम पर वार करने लगे लेकिन उन्हें मात देने में सफल नहीं हो पाए। सभी पहलवानों को हराने के बाद इलाका कृष्ण और बलराम के जय-जयकारों से गूंज उठा।
कान्हा और बलराम को अक्रूर अपने साथ विशाल भीड़ के सामने ले आएं जहां किसी प्रतियोगिता का आयोजन होने जा रहा था। इसी प्रतियोगिता में ही कंस ने कान्हा को मारने के लिए एक खतरनाक हाथी का सहारा लिया। लेकिन, यमराज का रूप माने जाने वाला ये हाथी जैसे ही कान्हा के सामने आया, उनके समक्ष नतमस्तक हो गया।
कान्हा ने बलराम से पूछा कि क्या वो वहां मौजूद धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा सकते हैं। इस पर कंस के सिपाही उनका उपहास बनाने लगे कि प्रत्यंचा तो दूर की बात है वो इस उठा भी नहीं पाएंगे। लेकिन जैसे ही कान्हा ने प्रत्यंचा चढ़ाई, सभी लोग उनकी जय-जयकार करने लगे। प्रत्यंचा से उत्पन्न हुई टंकार इतनी डरावनी थी कि स्वयं कंस भी उस आवाज से भयभीत हो गए।
आगे बढ़ने पर वो सभी उस स्थान पर पहुंचे जहां राज-दरबार के कपड़े धुले जाते थे। वहां पहुंचकर कान्हा ने अपने लिए एक वस्त्र मांगा जिसके बदले वहां मौजूद एक व्यक्ति ने उन्हें मारने के लिए लाठी उठाई पर प्रभु श्री कृष्ण ने अपनी लीला दिखाकर वहां मौजूद लोगों को अचंभित कर दिया और सभी लोग उनके समक्ष नतमस्तक हो गए।
मथुरा पहुंचने के बाद अक्रूर कंस को इसकी जानकारी देने और कान्हा बलराम अपने अन्य सखाओं के साथ मथुरा की सैर पर चले गए। रास्ते में उनकी मुलाकात एक कुबरी से हुई जो झुककर चलती थी। पर कान्हा के चमत्कार से उनकी पीठ सीधी हो गई। मथुरा में हर ओर कान्हा और बलराम को देखने के लिए भीड़ जमा होने लगी।
आगे बढ़ते ही राधा उनका रास्ता रोक लेती हैं। अक्रूर के प्रश्न करने पर कृष्ण बोलते हैं कि सब लोग उनके पास आते हैं और वो खुद राधा के पास जाते हैं। राधा के पास पहुंचने पर कान्हा उनसे कहते हैं कि क्या वो कुछ बोलेंगी नहीं? इस पर राधा कहती हैं कि बोला उनके सामने जाता है जो न समझे, लेकिन मैं तुम्हें और तुम मुझे अच्छे से जानते हो। कान्हा राधा से कहते हैं कि वो उनकी मुरली अपने पास रख लें। राधा ये कहते हुए मना कर देती है कि उसे कान्हा राधा द्वारा दी गई अमानत समझ कर रख लें।
कान्हा बलराम और अक्रूर के साथ रथ में बैठते हैं, इधर हर एक नंदगांव वासी की आंखों से अश्रुधारा बहने लगते हैं। जैसे-जैसे रथ आगे बढ़ती है, पीछे-पीछे नंदबाबा और यशोदा समेत बृजवासी भी पीछे आने लगते हैं। अक्रूर कान्हा को बताते हैं कि मथुरा में उनके मामा और बाकी सगे-संबंधी भी हैं। इसपर कान्हा कहते हैं कि क्या वो यशोदा के भाई हैं तो अक्रूर मना कर देते हैं और बताते हैं कि उनके असली माता-पिता कोई और हैं जिस पर कान्हा कहते हैं कि उनके माता-पिता चाहे कोई भी क्यों न हो वो तो हमेशा यशोदा पुत्र ही रहेंगे।
कान्हा को उदास हृदय से तैयार कर रही हैं मां यशोदा। नंदबाबा और मां यशोदा उन्हें अपने हाथों से भोजन करा रही हैं, उन्हें माखन खिला रही हैं। नंदवासियों के चेहरे उतरे उतरे हुए हैं। गोपियां उदास हैं और कान्हा के सखा भी उदास हैं।
कान्हा को मथुरा भेजने से पहले यशोदा उन पर खूब लाड़ दिखा रही हैं। प्रातः में नींद में सोए हुए कान्हा को निहारते हुए मन ही मन न जाने किस सोच में व्यस्त हो जाती हैं। इधर, अक्रूर जी कान्हा और बलराम को लेने नंद बाबा के घर पहुंच जाते हैं और देखते हैं कि मां यशोदा भगवान कृष्ण को विदा करने से पहले उनका अभिषेक कर रही हैं और मोर पंख उनके सिर पर सुसज्जित कर रही हैं।
कान्हा के मथुरा जाने की खबर जब गोपियों तक पहुंची वो सब मिलकर फूल तोड़ रही राधा के पास पहुंची। उनको इतने सहज देखकर गोपियां पूछने लगी कि क्या उन्हें नहीं पता है कि कान्हा मथुरा जा रहे हैं। इस पर राधा कहने लगी कि ये जानते हुए भी वो कुछ नहीं कर सकती हैं। गोपियों ने राधा से कहा कि कान्हा उनकी बात जरूर सुनेंगे, राधा को उन्हें रोकने का प्रयत्न करना चाहिए। परंतु, राधा के जवाब से गोपियां निराश हो गईं। राधा ने कहा कि कृष्ण पर किसी का बस नहीं है, वो तो केवल उनकी भक्त है। जिस तरह से राधा कृष्ण को गोपियों के संग बांटती हैं, ठीक उसी तरह कान्हा पूरे संसार का है।