‘Mahabharat’ 21th May Episode Online Update: महाभारत में पांडव पांचाली के साथ हुए अपमान का बदला लेने की ठान लेते हैं। संजय को अर्जुन क्रोधिक होते हुए भरी सभा में पांचाली के साथ हुए अपमान का बदला युद्ध के रूप में लेने की बात कहते हैं। संजय वासुदेव से कहते हैं कि अगर इस वक्त युद्ध हुआ तो पूरा वंश मिट जाएगा।
संजय श्री कृष्ण से कहते हैं कि इससे इस बुढ़ापे में धृतराष्ट्र क्या अपने वंश को नाश होते देख पाएंगे। कृष्ण कहते हैं कि सबको अपना धर्म होता दिखाई दे रहा। उधर, पांचाली एकांतवास में बैठी होती है। वह पांडवों से पूछती है कि आप लोगों ने क्या निर्णय लिया। पांडव कहते हैं कि पहले हम शांति का प्रस्ताव लेकर जाएंगे। पांडव कहते हैं कि गोविंद पहले शांति का प्रस्ताव लेकर जाएंगे। शांति की बात सुन द्रौपदी काफी क्रोधित होती हैं। वह कहती हैं कि आर्यपुत्र ऐसा कैसे कर सकते हैं। पांचाली पूछती हैं कि गोविंद कैसे शांति का प्रस्ताव लेकर जा सकते हैं।
कृष्ण शांति का प्रस्ताव लेकर जा ही रहे होते हैं कि बीच रास्ते में पांचाली उन्हें रोक लेती हैं और पूछती हैं कि आप ऐसा कैसे कर सकते हैं। कृष्ण कहते हैं कि युद्ध से पहले शांति का प्रस्ताव जरूरी है। पांचाली पूछती हैं कि कौरव अगर शांति प्रस्ताव मान लेते हैं तो क्या युद्ध नहीं होगा। वासुदेव कहते हैं कि युद्ध तो आवश्य होगा पांचाली।
शांतिदूत बनकर हस्तिनापुर पहुंचे वासुदेव से धृतराष्ट्र कहते हैं कि अब आपही कुछ युद्ध रोकने का हल निकाल सकते हैं। कृष्ण कहते हैं कि पांडवों को इंद्रप्रस्थ लौटा दिया जाए। वासुदेव से ऐसी बात सुन दुर्योधन क्रोधित हो जाता है और कहता है कि ऐसा कभी नहीं हो सकता। और वे राजा नहीं हैं तो युद्ध का अधिकार ही नहीं। वासुदेव कहते हैं कि अधर्म के खिलाफ युद्ध करना सबका अधिकार है। और पांडवों का आभार मानिए कि उन्होंने इतने दिनों तक युद्ध नहीं किया।
वासुदेव युद्ध को टालने का सुझाव देते हुए कहते हैं कि यदि दुर्योधन द्रुपद के चरणों को छूकर माफी मांग लेते हैं तो पांडव उसे भी दंड मान लेंगे। वासुदेव की इस बात पर ना सिर्फ शकुनि मामा बल्कि दुर्योधन भी क्रोधित हो जाता है। वह कृष्ण को बंदी बनाने का प्रयत्न करता है....
वासुदेव से धृतराष्ट्र कहते हैं कि अब आपही कुछ युद्ध रोकने का हल निकाल सकते हैं। कृष्ण कहते हैं कि पांडवों को इंद्रप्रस्थ लौटा दिया जाए। वासुदेव से ऐसी बात सुन दुर्योधन क्रोधित हो जाता है और कहता है कि ऐसा कभी नहीं हो सकता। और वे राजा नहीं हैं तो युद्ध का अधिकार ही नहीं। वासुदेव कहते हैं कि अधर्म के खिलाफ युद्ध करना सबका अधिकार है। और पांडवों का आभार मानिए कि उन्होंने इतने दिनों तक युद्ध नहीं किया।
वासुदेव भोजन में मिष्ठान नहीं होने पर टोकते हैं। कुंती कहती हैं कि हमें तो पूरे कुल के नाश का भय सता रहा है। वासुदेव तब कहते हैं- वास्तविक सुख के रहस्य को कभी जाना ही नहीं। जो नाश के पात्र हैं उनका नाश होगा। और जिनकी रक्षा करना जरूरी है उनकी रक्षा होगी। कृष्ण भोजन के दौरान कुंती से कहते हैं कि कल सभा में सबको अपने मन की स्थिति को अनुसार ही स्वाद प्राप्त होगा।
दुर्योधन वासुदेव का स्वागत करता है और कहता है कि मैं आपके रुकने और खाने का इंतजाम अपने ही भवन में किया है। जिसपर वासुदेव कहते हैं- मैं आपके भवन में नहीं रूक सकता। शकुनि आपको हमपर विश्वास नहीं है वासुदेव? वासुदेव कहते हैं कि विश्वास होता तो प्रस्ताव नहीं सुझाव मांगा होता मामा।
दुर्योधन और शकुनि वासुदेव को बंदी बनाने का षड्यंत्र रचते हैं। वे कहते हैं कि जब कृष्ण शांतिदूत बनकर आएंगे उसे बंदी बना लेंगे। शांतिदूत बनकर वासुदेव हस्तिनापुर पहुंचते है। भरी राज्यसभा में भगवान श्री कृष्ण पांडवों का प्रस्ताव महाराज धृतराष्ट्र के सामने रखते है। वह पांडवों का पक्ष रखते हुए कहते हैं कि युधिष्ठिर की मांग है अगर न्याय पूरा नहीं दे सकते तो आधा दो।
पांडव कहते हैं कि पहले हम शांति का प्रस्ताव लेकर जाएंगे। पांडव कहते हैं कि गोविंद पहले शांति का प्रस्ताव लेकर जाएंगे। शांति की बात सुन द्रौपदी काफी क्रोधित होती हैं। वह कहती हैं कि आर्यपुत्र ऐसा कैसे कर सकते हैं। पांचाली पूछती हैं कि गोविंद कैसे शांति का प्रस्ताव लेकर जा सकते हैं।
संजय श्री कृष्ण से कहते हैं कि इससे इस बुढ़ापे में धृतराष्ट्र क्या अपने वंश को नाश होते देख पाएंगे। कृष्ण कहते हैं कि सबको अपना धर्म होता दिखाई दे रहा। उधर, पांचाली एकांतवास में बैठी होती है। वह पांडवों से पूछती है कि आप लोगों ने क्या निर्णय लिया। पांडव कहते हैं कि पहले हम शांति का प्रस्ताव लेकर जाएंगे।