Mahabharat 15 April 2020 Updates: पांडव पुत्र अर्जुन को दौपदी की वरमाला ने स्वीकार कर लिया है। द्रौपदी स्वयंवर में अर्जुन ने मछली की आंख पर निशाना लगा कर द्रौपदी को जीत लिया औऱ घर ले आया। पांडवों में लगातार इस बात को लेकर बहस हो रही थी कि महाराज धृतराष्ट्र ने उनके साथ एक बार फिर से गलत किया है। अर्जुन राजमाता कुंती से ये सवाल पूछता है कि हमारे साथ जो अन्याय हुआ है उसे संबध में हम कम से कम तातश्री भीष्म से सवाल तो पूछ ही सकते हैं। अर्जुन का सवाल सुन युधिष्ठर कहते हैं कि हमें बड़ो का आदर करना चाहिए और तुम्हें उनपर उंगली नही उठानी चाहिए।
राजकुमार युधिष्ठिर अपने भाइयों से कहते हैं कि उन्हें हस्तिनापुर को क्षोड़कर जाना होगा। राजकुमार कहते हैं कि बिना अपने भाइयों के सहयोग से वो ऐसा नही कर पाएंगे ऐसे मेें उनके सारे भाई उनका साथ देने के लिए तैयार हो जाते हैं। इधर श्री कृष्ण भी पहुंचते हैं, वह तो मुबारकबाद देने आए होते हैं तभी श्री कृष्ण कहते हैं बुआ ये क्या? आपने ऐसे क्यों कह दिया ? अब क्या करेंगे पांडव? इस पर यही सवाल सब श्रीकृष्ण से पूछते हैं तो श्रीकृष्ण कहते हैं ये मुझसे नहीं स्वंय द्रौपदी से पूछा वह भली भांति जानती है? क्यों द्रौपदी। द्रौपदी चुपचाप खड़ी रहती हैं।
दुर्योधन ने मीठी-मीठी बातें करते हुए वासुदेव कृष्ण के बड़े भाई बलराम को हस्तिनापुर में रहकर गदा युद्ध शिकाने के लिए राजी कर लिया है। वहीं बलराम जी भी दुर्योधन की बातों से राजी हो गए हैं। कृष्ण को इस बात का आभास था कि हो न हो कुछ गड़बड़ होने वाली है और वही हुआ जिसका डर था।
अर्जुन भीष्म से कहते हैं कि वो इस राज्य को तो क्षोड़ सकते हैं लेकिन अपने पितामह को नही क्षोड़ सकता। अर्जुन काफी ज्यादा भावुक हो जाता है और भीष्म के पैरों पर गिरकर रोने लगता है। अर्जुन को रोता देख भीष्म कहते हैं कि वो पांडवों के साथ जाना तो चाहते हैं लेकिन वो अपनी प्रतिज्ञा में बंंधे हैं जिसके चलते वो ऐसा नही कर सकते हैं।
भीष्म अर्जुन को बताते हैं कि धृतराष्ट्र को हस्तिनापुर का राजा बनाने के पीछे बस यही कारण था कि वो उनका शिष्य है और अगर अंधे होने की वजह से उसे राजा न बनाया जाता तो उसे लगता कि उसके साथ अन्याय हुआ है।
दुर्योधन अपने स्वार्थ के लिए बलराम से मिलता है। बलराम जी को दुर्योधन के साथ जाता देख वासुदेव कृष्ण कहते हैं कि आप अकेले ही दुर्योधन के साथ जांए क्योंकि मुझे तो विदुर, भीष्म और द्रोण से मिलने जाना है।
शकुनि नेे दुर्योधन को भड़काते हुए कहा कि ये जो हस्तिनापुर का एक हिस्सा पांडवों को मिल रहा है उससे वो कभी खुश नही रह सकता। दुर्योधन से शकुनि कहता है कि वासुदेव कृष्ण को तुम अपने जाल में फंसा नही सकते लेकिन बलराम को जाकर अच्छा भोजन कराओ और सोमरस पिलाओ उनके पैर में गिर पड़ो। शकुनि की बात सुनकर दुर्योधन बलराम से मिलने का फैसला करता है।
राजकुमार युधिष्टिर अपने भाइयों से कहते हैं कि उन्हें हस्तिनापुर को क्षोड़कर जाना होगा। राजकुमार कहते हैं कि बिना अपने भाइयों के सहयोग से वो ऐसा नही कर पाएंगे ऐसे मेें उनके सारे भाई उनका साथ देने के लिए तैयार हो जाते हैं।
पांडवों में लगातार इस बात को लेकर बहस हो रही थी कि महाराज धृतराष्ट्र ने उनके साथ एक बार फिर से गलत किया है। अर्जुन राजमाता कुंती से ये सवाल पूछता है कि हमारे साथ जो अन्याय हुआ है उसे संबध में हम कम से कम तातश्री भीष्म से सवाल तो पूछ ही सकते हैं। अर्जुन का सवाल सुन वासुदेव कृष्ण कहते हैं कि तुम्हारे सवाल का जवाब केवल मैं दे सकता हूं। कृष्ण कहते हैं कि महाराज ने तुम्हें कर्म भूमि दी है।
आधा राज्य पांडवों को जरुर मिल रहा है लेकिन वास्तव में उन्हें एक शून्य के सिवा कुछ नही मिल रहा है। ये बाद भीम, नकुल सहदेव को बिल्कुल भी बरदाश्त नही है। ऐसे में राजमाता कुंती अपने बच्चों को समझा रही हैं कि जो भी फैसला युधिष्टिर ने लिया है वो ही सही है। वहीं वासुदेव कृष्ण कुंती को समझाते हुए कहते हैं कि हमे यहां पर सबकी बात सुननी होगी।
भीष्म ने बड़ा फैसला लेते हुए कहा कि न्याय की मांग यही है कि किसी के साथ अन्याय न हो। ऐसे में हस्तिनापुर का विभाजन हो जाना चाहिए।
भीष्मपितामह कहते हैं कि दोनों युवराजों में हस्तिनापुर को आधा आधा बांट दिया जाए। जब भी राजनीति को ठोकर पड़ेगी तो इसका परिणाम देश को भुगतना पड़ेगा। जहां बहुत से बर्तन होंगे वहां बर्तनों का टकराव भी होगा। इसलिए इन्हें अलग कर देना चाहिए। युधिष्ठर को जब बताया जाता है तो वह धृतराष्ट्र से कहते हैं कि आप अनुज को सारा देश दे दीजिए लेकिन देश का विभाजन न करें। धृतराष्ट्र के आगे फिर सज्जनता झुक जाती है। पांडव मान जाते हैं। पुत्र प्रेम के स्वार्थ में अंधे धृतराष्ट्र को कुछ नहीं दिखा और उन्होंने राष्ट्र का विभाजन कर दिया।
धृतराष्ट्र एक सभा बुलवाते हैं। जिसमें वह बताते हैं कि उनकी एक समस्या है कि हमारे पास दो युवराज हैं। ऐसे में वहां मौजूद लोग कहते हैं कि पांडव पुत्र के वापस आने से राजकुमार युधिष्ठर को ही युवराज बनाना चाहिए। भीष्म पितामह कहते है कि हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि दुर्योधन को पांडव पुत्रों की गैरमौजूदगी में युवराज बनाया गया था। अंत में कहा जाता है कि तातश्री भीष्म पितामह को ही निर्णय लेना चाहिए कि कौन हस्तिनापुर का युवराज बनेगा? भीष्म कहते हैं- न्याय की मांग यही है कि किसी के साथ अन्याय न हो। ऐसे में हस्तिनापुर का विभाजन हो जाना चाहिए।
अमृत को विश से अलग हो ही जाना चाहिए, बोले श्रीकष्ण: श्री कृष्ण को आभास हो गया है कि अब कुछ बड़ा घटित होने वाला है। ऐसे में श्रीकृष्ण अर्जुन और दाऊ भैया से कहते हैं कि अब अमृत को विश से अलग हो ही जाना चाहिए।
कुंती द्रौपदी को लेकर गांधारी के पास पहुंची: गांधारी बहुत खुश होती है। वह आरती की थाली हाथ में लाती है। ऐसे में कुंती कहती हैं दीदी स्वागत की क्या जरूरत है। तभी गंधारी कहती हैं जरूरत है। कुंती द्रौपदीको लेकर धृतराष्ट्र के पास पहुंचती है। धृतराष्ट्र कहते हैं कि इस तात औऱ नेत्रहीन राजा को क्षमा कर देना।
हस्तिनापुर लौटे पांडू पुत्र और वधु द्रौपदी: सम्मान के साथ हस्तिनापुर में पांडवों और द्रौपदी का स्वागत होता है। पांडवर पुत्रों की जयजयकार होती है। महारानी कुंती की भी जयजयकार चारों तरफ गूंजती है। और युधिष्ठर को महाराज कहा जाता है। भीष्मपितामह दरवाजे पर स्वागत के लिए खड़े दिखाई देते हैं।
पितामह सीधा दुर्योधन के पास पहुंचते हैं। वह पूछते हैं कि क्या कह रहे थे तुम्हारे शकुनि मामा? दुर्योधन गुस्से में कहते हैं कि आपने भी कभी नहीं कहा कि इस सिंघासन में मैं नही युधिष्ठर बैठेंगे। भीष्म कहते हैं- मेरी इश सवाल ने नींद उड़ा रखी है कि कौन हस्तिनापुर का युवराज है? युधिष्ठर या तुम।
गंगा पुत्र भीष्म पितामह परेशान हैं कि हस्तिनापुर का भविष्य क्या होने वाला है। ऐसे में वह अपनी दुविधा को लेकर मां गंगा के पास जा पहुंचते हैं। मां गंगा प्रकट होकर कहती हैं कि तुमने प्रतिज्ञा खुद से ली है तो इसका निवारण खुद करो। कायरों की भांति बार बार मां के पास मत आओ। ऐसे में भीष्म वापस महल जाता है। वह विचारों में डूबा है। तभी दूसरी तरफ से शकुनि मामा आते हैं। शकुनि पूछता है तात आप यहां से इतनी रात बीते कहां से आ रहे हैं, भीष्म पितामह कहते हैं यही सवालक का जवाब आपसे जानना चाहता हूं आप कहां से आ रहे हैं इतनी रात गए। तो शकुनि बताते हैं कि वह दुर्योधन को समझाने गए थे कि युधिष्ठर उसका बड़ा भाई है। तभी भीष्म समझ जाते हैं कि शकुनि के दिमाग में कुछ तो चल रहा है।
दुर्योधन अंगराज कर्ण से मिलने पहुंचे तो कर्ण ने कहा कि मेरा हृदय तुम्हारे राज्य का वो भाग है जिसे तुम कभी हार नहीं सकते। कर्ण दुर्योधन से कहते हैं कि मैं गांधार नरेश शकुनि से क्रोधित हूं क्योंकि उन्होंने पांडवों के सामने आंख उठाने के योग्य नहीं छोड़ा। वो दुर्योधन से कहते हैं कि उसे अपनी भुजाओं के बल और गदा के प्रहार से ज्यादा भरोसा शकुनि के षडयंत्रों पर करते हो।
पिछले एपिसोड में दिखाया गया था श्रीकृष्ण कहते हैं-अर्जुन भीम औऱ द्रौपदी को साथ ले आते हैं। कुटिया में पहुंचते ही कुंती को अर्जुन बताते हैं कि देखो मां हम क्या लाए। तभी माता कुंती कहती हैं कि सारे भाई आपस में बांट लो।