आरती सक्सेना

इसके बाद दर्शकों की भीड़ सिनेमाघरों की तरफ उमड़ पड़ी। हालात ये हो गए कि कई लोगों को 75 रुपए वाले टिकट मिले ही नहीं। जिस वजह से उनको वापस लौटना पड़ा। तब सिनेमाघर मालिकों ने कम दाम वाले टिकट की समय सीमा बढ़ा कर चार दिन और बढ़ा दी। जिसकी बदौलत दर्शकों को ब्रह्मास्त्र जैसी फिल्म मल्टीप्लेक्स में देखने का मौका मिला। इसके बाद से हिंदी फिल्म उद्योग में मंथन हो रहा है कि कम दाम, कम अहंकार, कम मेहनताना और कम तामझाम का गुणा-भाग करके फिल्में सफलतापूर्वक चलाई जा सकती हैं। एक निगाह…

राष्टीय सिनेमा दिवस के मौके पर 23 सितंबर को ‘ब्रह्मास्त्र’ 15 लाख लोगों ने देखी। फिल्म ने देशभर में करीब 10 करोड़ की कमाई का नया कीर्तिमान बनाया। वहीं शनिवार, रविवार को इसी फिल्म ने आधी कमाई की। इस बात से यह तो साबित हो गया कि अगर टिकट के दाम कम हुए तो दर्शक सिनेमाघरों तक जरूर आएंगे।

इसके बाद हर एक के मन में एक सवाल आ रहा है कि क्या सिनेमा टिकट के दाम कम होने पर फिल्म उद्योग की स्थिति अच्छी होगी? मल्टीप्लेक्स मालिकों को भी यह बात समझ में आने लगी है कि अगर दर्शकों को थिएटर तक लाना है तो उनको टिकट के दामों के मामले में समझौता करना ही पड़ेगा। इस पर सिनेमाघरों के मालिकों के बीच बातचीत चल रही है।

इसके तहत सोमवार से शुक्रवार तक टिकट के रेट 100 या 110 रखे जाएंगे और शनिवार, रविवार को टिकटों की कीमत मौजूदा कीमत पर ही निर्धारित रहेगी। कम दाम, कलाकारों की कम शुल्क, तामझाम पर कम बर्बादी की बजाए ज्यादा शोध, ज्यादा सामग्री दर्शकों को अपनी ओर खींचने में कारगर साबित हो सकती है।

फिल्म समीक्षक जोइता मित्रा सुवर्णा भी इस बात से सहमत हैं कि टिकट कीमत कम होना फिल्म उद्योग के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। एक बात समझनी होगी कि अब बड़े परदे के लिए ओटीटी बड़ी चुनौती है। अगर दर्शकों को घर बैठे कम पैसे में फिल्म देखने को मिल जाती है तो वे थियेटर तक आने के लिए दो बार सोचेंगे। ऐसे में यह वक्त समझदारी का है।

अगर थिएटर तक दर्शकों को खींचना है तो उनके बजट का ध्यान रखकर चलना होगा। 75 रुपए लोगों के लिए एक राहत की बात है क्योंकि अपने पूरे परिवार के साथ बड़े आराम से थियेटर में फिल्म देखने का मजा ले सकते हैं। फिल्म विशेषज्ञ और समीक्षक भावना शर्मा भी फिल्मों की टिकट दाम कम होने को लेकर उत्साहित हैं। दर्शकों की नजर से देखें तो यह उनके लिए खुशी की बात है लेकिन फिल्म निर्माताओं की नजर से देखें तो यह उनके लिए मजबूरी है।

शनिवार और रविवार को टिकट के दाम ज्यादा होंगे तो दर्शक रविवार के बजाए सोमवार को फिल्म देखना ज्यादा पसंद करेंगे। इस हिसाब से सोमवार से शुक्रवार टिकट के दाम कम होना सिनेमा मालिकों के लिए खतरा भी है। ऐसे में भी दर्शक 100 रुपए के टिकट में भी थियेटर तक आएंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है। जहां तक फिल्म कलाकारों के पारिश्रमिक और तामझाम की बात है तो उसमें कोई खास कमी नहीं दिखाई दे रही क्योंकि आने वाली फिल्में 500 से 700 करोड़ के बजट की है जिसमें निर्माता फिल्म कलाकारों को उनकी पूरी कीमत दे रहे हैं।

ऐसे में आने वाला वक्त ही तय करेगा कि फिल्म टिकट के दाम कम होना निर्माताओं के लिए फायदेमंद है या घाटे का सौदा। अलबत्ता दर्शकों के लिए जरूर ये बड़ी खुश खबरी है । फिल्म समीक्षक और संपादक नरेंद्र गुप्ता, भावना शर्मा की बात से पूरी तरह सहमत नहीं है। नरेंद्र गुप्ता के अनुसार 23 सितंबर को राष्ट्रीय सिनेमा दिवस के अवसर पर 4000 मल्टीप्लेक्स सिनेमाघरों ने हिस्सा लिया था जिसमें टिकट की कीमत मात्र 75 रुपए थी, नतीजतन इस दिवस पर 65 लाख से ज्यादा दर्शक सिनेमाघरों में फिल्म देखने पहुंचे।

जिन फिल्मों की ओपनिंग 30 लाख तक भी नहीं होती थी, उन फिल्मों को राष्ट्रीय सिनेमा दिवस पर करोड़ों की ओपनिंग मिली। जैसे कि चुप फिल्म को 2 .75 की ओपनिंग मिली तो धोखा राउंडटेबल फिल्म को सवा करोड़ की ओपनिंग मिली।ब्रह्मास्त्र दो करोड़ पर पहुंच गई थी, उसने राष्ट्रीय सिनेमा दिवस के अवसर पर आठ करोड़ की कमाई की। इससे यह बात तो साफ होती है मल्टीप्लेक्स वालों की टिकट कीमतें अनाप-शनाप होने की वजह से दर्शक थियेटर में फिल्म देखने आने में कतराने लगे। इसके विपरीत ओटीटी पर फिल्म से कहीं अच्छा मनोरंजन दर्शकों को घर बैठे मिल रहा था।

ऐसे में अगर मल्टीप्लेक्स वाले अपने टिकट के रेट कम नहीं करते तो भविष्य में फिल्म उद्योग को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। यही बात मल्टीप्लेक्स मालिकों को भी समझ में आने लगी है, इसी बात को ध्यान में रखकर कई सारे मल्टीप्लेक्स सिनेमाघरों के मालिकों के बीच टिकट दर कम करने की बातचीत चल रही है। इसके तहत सोमवार से गुरुवार सभी मल्टीप्लेक्स में टिकट रेट 100 से 110 के करीब होंगे। शुक्रवार, शनिवार और रविवार मौजूदा टिकट कीमत पर ही फिल्म दिखाई जाएगी।