बॉलीवुड के सबसे प्रभावशाली फिल्म निर्माताओं में से एक करण जौहर ने हाल ही में अपने बचपन के ट्रॉमा का खुलासा किया। उन्होंने बताया कि बचपन की वो बुरी यादें आज भी उन्हें परेशान कर रही हैं। करण की मानें तो बचपन के उन ट्रॉमा के कारण वो अपने जुड़वा बच्चों रूही और यश के लिए एक पैरानॉयड पैरेंट बना दिया है। उन्होंने स्वीकार किया कि जहां उनका एक हिस्सा चाहता है कि उनके बच्चे आजाद जिएं और लाइफ देखें, वहीं उनका दूसरा हिस्सा लगातार डरता रहता है कि कहीं उन्हें भी उसी ट्रॉमा का सामना न करना पड़े जो उन्होंने सहा है। खासकर इस सोशल मीडिया वाले दौर में।
मिंत्रा के ग्लैम स्ट्रीम के लिए सानिया मिर्जा के साथ खास बातचीत में करण जौहर ने दिल खोलकर बात की। उन्होंने कहा, “मैं स्कूल में ऐसे बच्चों को जानता हूं जिनके इंस्टाग्राम अकाउंट हैं और वे पहले से ही अपने लुक्स, अपने शरीर और यहां तक कि अपने फॉलोअर्स के नंबर्स को लेकर परेशान रहते हैं। यह अजीब है, वो तो फिर भी बच्चे बच्चे हैं। जब हम बड़े हो रहे थे, तो किसी को इस बात की परवाह नहीं थी कि आप क्या पहनते हैं या कैसे दिखते हैं।”
अपने स्कूल के दिनों को याद करते हुए, करण ने कहा, “मैं एक प्लस-साइज्ड बच्चा था और मुझे खुश रहने की इजाजत थी। मैं सोच भी नहीं सकता कि आज मेरे जैसे बच्चों के लिए यह कितना मुश्किल होगा। बच्चे और यहां तक कि बड़े भी निर्दयी हो सकते हैं। यह एक टॉक्सिक और दुर्भाग्यपूर्ण समय है।”
उन्होंने स्वीकार किया कि उनके पालन-पोषण से जुड़े लगभग आधे डर उनके बचपन के दर्द से उपजते हैं। करण ने कहा, “मुझमें पचास प्रतिशत बचपन के जख्म हैं। मुझे डर रहता है कि मेरे बच्चे मोटे हो जाएंगे। मैं उन्हें कहता रहता हूं, ‘चीनी मत खाओ। दादा जी बहुत चीनी खाते थे और उन्हें तकलीफ हुई।’ जब वे कोई खेल छोड़ देते हैं या फुटबॉल खेलना छोड़ देते हैं, तो मुझे गुस्सा आता है क्योंकि उस समय मुझे किसी ने नहीं समझाया था। मैं हमेशा बोझ ही रहा करता था, कोई मुझे अपनी टीम में नहीं चाहता था। वे कहते थे, ‘फुटबॉल तुम्हारे लिए नहीं है, लड़कियों के साथ डब्बा गुल खेलो।”
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करण ने आगे कहा, “बचपन में जब भी मैं इमोशनल दर्द से गुजरता था, तो खाना ही मेरा सहारा होता था। लेकिन जब मुझे एहसास हुआ कि यह मेरे शरीर पर क्या असर डाल रहा है, तो मैंने इसके साथ एक टॉक्सिक रिश्ता बना लिया। ‘दिल धड़कने दो’ में एक सीन है जहां शेफाली शाह का किरदार चुपके से केक खाता है, उस सीन ने मुझे रुला दिया। मैं भी ऐसा ही करता था। मैंने एक बार ब्रीच कैंडी में एक महिला से कहा था कि आज मेरा जन्मदिन है, बस मैं साल में चार बार उसका स्वादिष्ट केक मंगवा सकूं। मैं उसे अकेले ही खा लेता था। इससे मुझे खुशी मिलती थी।”
करण ने ये भी बताया कि वह लंबे समय से बॉडी डिस्मॉर्फिया से जूझ रहे हैं। “मैं अपने शरीर में कंफर्टेबल नहीं हूं। आज भी, थोड़ा वजन कम करने के बाद, मैं केवल 10% ज्यादा कंफर्टेबल हूं। अंदर से, मैं हमेशा एक प्लस-साइज्ड लड़का ही रहूंगा। मेरा इतना मजाक उड़ाया गया कि मुझे अपने शरीर का कोई भी अंग दिखाने में बहुत असुरक्षा महसूस होने लगी।”
- अब भी लोग करते हैं ट्रोल
करण ने बताया कि उन्होंने खुद को स्वीकार करना शुरू कर दिया है। “हाल ही में इटली की छुट्टियों में, मैंने शॉर्ट्स पहने और इंस्टाग्राम पर एक तस्वीर भी पोस्ट की। ऐसा कुछ जो मैंने पहले कभी नहीं किया था। कुछ लोगों ने इसकी सराहना की, तो कुछ ने मुझे ट्रोल करते हुए कहा, ‘ये बुड्ढा पागल हो गया है, अपना सीना क्यों दिखा रहा है?’ लेकिन मुझे परवाह नहीं थी। मेरा शरीर, मेरी मर्जी।”
बच्चों को लेकर परेशान हैं करण जौहर
करण ने बताया कि वो इस बात को लेकर परेशान रहते हैं कि जैसा उनके साथ हुआ वो उनके बच्चों के साथ ना हो। “मेरे बच्चों का स्क्रीन टाइम सीमित है, लेकिन ऑनलाइन क्या आता है, इस पर आपका कोई बस नहीं है। मैंने कुछ ऐसी चीजें की हैं जो उन्हें एक दिन शर्मिंदा कर सकती हैं। मैंने स्टेज पर ‘डफलीवाला’ गाने पर डांस किया है। ऋषि कपूर के स्टेप्स नहीं, बल्कि जयाप्रदा के! मैंने कुछ भड़कीले कपड़े पहनना भी बंद कर दिया है क्योंकि मुझे डर है कि स्कूल में उन्हें चिढ़ाया जाएगा। मुझे चमक-दमक पसंद है, लेकिन अब मैं इसे कम करता हूं, मैं नहीं चाहता कि उन्हें कोई परेशान करे।”
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करण ने यह भी बताया कि कैसे समाज कम उम्र से ही बच्चों को रूढ़िवादी बना देता है। “हम अपने बेटों से कहते हैं, ‘लड़कियों की तरह मत रोना’, या कि गुलाबी रंग लड़कों के लिए नहीं है। मुझे इससे नफरत है। मैं लोगों से कहता रहता हूं, अगर आप कोई लड़कियों वाली चीज गिफ्ट में दे रहे हैं, तो उसे मेरे दोनों बच्चों के लिए भेजें और अगर PS5 है, तो वह भी दोनों के लिए।”
करण जौहर को लेनी पड़ी थी ट्रेनिंग
करण ने बताया कि बचपन से उनकी पसंद थोड़ी अलग थी। “जब दूसरे लड़के खेलकूद करते थे, तब मैं कुकिंग क्लासेस लेता था और फूलों की सजावट सीखता था। एक बार सबके सामने ट्रेनर ने मुझे बताया कि मेरी फेमिनिन पर्सनालिटीऔर दुनिया कठोर है। उनकी सलाह पर, मैंने तीन साल तक मर्दों जैसी आवाज निकालने के लिए वॉइस ट्रेनिंग ली। मैंने अपने चलने और दौड़ने के तरीके को बदलने के लिए भी क्लालेस लीं। मैंने अपने पिता से कहा कि मैं कंप्यूटर की क्लास ले रहा हूं क्योंकि मुझे उन्हें सच बताने में बहुत शर्म आ रही थी। काश मैंने ऐसा किया होता, लेकिन उस समय मुझमें न तो अवेयरनेस थी और न ही हिम्मत।”
करण ने आगे करण ने आत्म-सम्मान के साथ अपने संघर्षों के बारे में खुलकर बात की। “लोग मानते हैं कि मेरी सेक्स लाइफ शानदार होगी क्योंकि मैं एक पब्लिक फिगर हूं, लेकिन सच्चाई यह है कि मेरा आत्म-सम्मान बहुत कम है और मैं हमेशा लाइट बंद रखना चाहता हूं।”
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करण ने कहा कि प्यार करने वाले माता-पिता होने के बावजूद, वे उसके अनुभवों के मानसिक बोझ को पूरी तरह से नहीं समझ पाए। “ट्रॉमा इस बात से होता है कि लोग आपको अपने बारे में कैसा महसूस कराते हैं। मुझे ‘मोटा’ जैसे नामों से पुकारा जाता था और जब भी मैंने अपने माता-पिता को बताया, उन्होंने इसे अनसुना कर दिया। मेरे पिताजी कहते थे कि यह बस थोड़ा सा मोटापा है, और मेरी मां चुप रहीं। मैं बहुत रोया। वह मुझसे बहुत प्यार करती थीं, लेकिन कभी-कभी प्यार ही काफी नहीं होता – मुझे किसी ऐसे व्यक्ति की जरूरत थी जो मुझे यह समझने में मदद करे कि मैं किस दौर से गुजर रहा हूं।”
