अभिनेता जितेंद्र ने शुरुआती जीवन में काफी संघर्ष देखा। वो मुंबई के चॉल में रहा करते थे। जितेंद्र जब कॉलेज में थे जब उनके पिता हार्ट अटैक के कारण इस दुनिया से चल बसे। उनके निधन से घर चलाना मुश्किल हो गया तब जितेंद्र ने खुद काम करने की सोची।

फिल्मी दुनिया उनके लिए थोड़ी जानी-पहचानी थी क्योंकि उनके पिता फिल्मों में ज्वेलरी सप्लाई किया करते थे। अनु कपूर ने अपने रेडियो शो में बताया था कि जितेंद्र सबसे पहले काम मांगने के लिए फिल्ममेकर वी शांताराम के पास गए जहां उन्होंने काम देने से मना कर दिया।

हालांकि इसके कुछ दिनों बाद वी शांताराम ने खुद जितेंद्र को बुलावा भेजा। जितेंद्र को फिल्म, ‘सेहरा’ में काम तो मिला लेकिन जूनियर आर्टिस्ट का। जितेंद्र से कहा गया कि उन्हें हर रोज फिल्म के सेट पर आना है जिस दिन कोई जूनियर आर्टिस्ट नहीं आएगा, उनसे काम लिया जाएगा। इस काम के लिए जितेंद्र को हर महीने 105 रुपए मिले थे।

जितेंद्र को इस फिल्म से कोई फायदा नहीं हुआ लेकिन वो शांताराम को पसंद आ गए। फिल्ममेकर ने जब अगली फिल्म, ‘गीत गाया पत्थरों ने’ शुरू की तब उन्होंने फिर जितेंद्र को याद किया। इस फ़िल्म में शांताराम जितेंद्र को बतौर हीरो लेना चाहते थे। शांताराम ने ही जितेंद्र को उनका ये नाम दिया। जितेंद्र का असली नाम रवि कपूर था।

जितेंद्र को फिल्म तो मिली लेकिन उनके पैसे कम हो गए। उनसे कहा गया कि उन्हें ब्रेक दिया जा रहा है तो पैसे इतने ही मिलेंगे। जितेंद्र को 100 रुपए प्रति महीने पर साइन किया गया लेकिन 6 महीने तक उन्होंने बिना पैसों के ही काम किया।

जितेंद्र को इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कई साल लग गए। साल 1967 ने आई फिल्म, ‘फर्ज’ में जितेंद्र का डांसिंग स्टार का किरदार काफी पसंद किया गया और उनके डांस को भी पहचान मिलने लगी। इस फिल्म का गाना, ‘मस्त बहारों का मैं आशिक’ बहुत लोकप्रिय हुआ और जितेंद्र ‘जंपिंग जैक’ बन गए। इसके बाद हमजोली और कारवां जैसी फिल्मों ने जितेंद्र को हिंदी सिनेमा जगत का एक स्थापित अभिनेता बना दिया।

जितेंद्र के बाद उनकी बेटी एकता कपूर और बेटे तुषार कपूर ने भी बॉलीवुड में अपनी अच्छी पहचान बनाई। एकता कपूर ने प्रोडक्शन में हाथ आजमाया वहीं तुषार कपूर ने कुछ फिल्मों में एक्टिंग की। तुषार अब फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी काम करते हैं।