राइटर सुमित अरोड़ा इन दिनों फिल्म ‘जवान’ (Jawan) को लेकर चर्चा में हैं। इसमें वो शाहरुख खान (Shah Rukh Khan) के साथ काम कर रहे हैं और फिल्म को लेकर काफी एक्साइटेड हैं। इससे पहले उन्होंने आखिरी बार सोनाक्षी सिन्हा (Sonakshi Sinha) के साथ फिल्म ‘दहाड़’ में काम किया था। इसी कड़ी में अब उन्होंने अच्छे कंटेंट और फिल्म की कहानी समेत करियर को लेकर जनसत्ता.कॉम से बात की तो चलिए आपको बताते हैं कि उन्होंने क्या कहा?

सुमित अरोड़ा से इंटरव्यू में सवाल किया गया कि फिल्म के डायलॉग्स एक्टर्स के अनुसार या कहानी के अनुसार लिखना चाहिए? इस पर उन्होंने कहा, ‘डायलॉग्स कहानी के अनुसार लिखा जाना चाहिए। क्योंकि अगर वो कहानी में नहीं फिट होगा और सिर्फ एक्टर की इमेज के साथ जा रहा है तो वो कहानी खुद के दम पर खड़ी नहीं हो पाएगी। उसमें कहानी नहीं दिखेगी सिर्फ वो एक्टर ही दिखेगा। मैंने कभी पहले कहानी लिखी तो मैंने पहले कहानी के अनुसार वहां की बोल-भाषा को पहले देखा। उसके अनुसार कहानी और डॉयलॉग्स लिखा। पहली जो प्राथमिकता होती है वो यही होती है कि कहानी, परिवेश और किरदार के हिसाब से अपने डायलॉग्स लिखो। इसके बाद एक्टर्स के साथ उसे डिस्कस करो और जो बदलाव करने है करो।’

‘दहाड़’ में कौन सा पार्ट सबसे ज्यादा कठिन रहा?

सुमित अरोड़ा कहते हैं, ‘दहाड़ में कई चैलेंजेस थे। फिल्म में जो गुलशन देवैया का कैरेक्टर रहा है। वो बच्चे से बात करता है, जो कि स्कूल में एडल्ट वीडियो देख रहा होता है। फिर वो सादगी के साथ उसे समझाता है। ऐसे में इस कैरेक्टर में सादगी को दिखाना काफी बड़ा चैलेंज था। यही चैलेंज था कि इसे दिखाने में ऐसा ना लगे कि अपने बच्चों से बात करते हुए हिचकिचाहट ना हो। इस सीन को लेकर मन में था कि सही से आना चाहिए। पैरेंट्स और बच्चों की बॉन्डिंग बेकार ना लगे।’ इसके अलावा सोनाक्षी सिन्हा के गुस्से को दिखाना भी काफी चैलेंज था। गुस्से को निकालने की जगह उसे लेकर चलना। साथ ही उसे गुस्से को स्क्रीन पर दिखाना भी एक चैलेंज था।

क्रिकेटर बनना चाहते थे सुमित अरोड़ा

सुमित अरोड़ा बताते हैं कि वो राइटर नहीं बल्कि क्रिकेटर बनना चाहते थे। लेकिन बाद में उनका लेखनी में मन लगने लगा और राइटर बन गए। वो राइटर कैसे बने के सवाल पर कहते हैं, ‘एक प्रोग्राम के तहत काफी बच्चों का कश्मीर जाने के लिए सलेक्शन हुआ था तो मैंने उस अनुभव के बारे में मैंने हिंदी में एक आर्टिकल लिखा था। वो हिंदी के अखबार में छपा तो लगा ऐसे और भी आर्टिकल लिखे जा सकते हैं। तो काफी मजा आया। इसके बाद वो आर्टिकल छपने की भूख जाग गई। लगा कि और लिखना चाहिए। मैंने जनसत्ता सहित कई अखबारों के लिए लिखा। मुझे आमिर खान की ‘लगान’ को देखकर लगा कि फिल्मों के लिए लिखना चाहिए। फिर धीरे-धीरे फिल्मों की दिशा कि ओर आगे बढ़ा और यहां पहुंच गया।’

संघर्षों को लेकर सुमित अरोड़ा ने कहा, ‘ये तो हर किसी को करना पड़ता है, जो छोटे शहर से आता है। उसके लिए आसान नहीं होता है। कोई लड़का या लड़की आती है तो उसके साथ रहने और खाने का स्ट्रगल होता ही है। मुंबई में मेरा भी एक स्ट्रगल रहा। अगर उसे लिखने बैठें तो किताब ही लिखनी पड़ जाएगी। वो अपने आप में काफी रोचक रहा। वो भी एक दौर था।’

अच्छे कंटेंट कैसे लाया जाए?

सुमित अरोड़ा से अच्छे कंटेंट को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने इस पर कहा, ‘पहले हमें अपनी कहानियों की ओर देखना होगा। पिछले कुछ समय से हम बाहर की तरफ देखते आए हैं। मेरा मानना है कि हर देश का अलग और अपना साहित्य होता है। उसका अपना संगीत और सिनेमा भी होता है। हमारे यहां भी ये रहा है। हमें अपने आसपास और पुरानी कहानियों को खंगालना चाहिए। उन कहानियों को वैसे ही पेश करना चाहिए जैसे वो हैं और जैसे उसकी वेशभूषा-पृष्ठभूमि है। हमें अपनी कहानियां और अपना अंदाज दोनों को ही दिखाना होगा तो अपने आप अच्छा कंटेंट निकलेगा।’