हिंदी और उर्दू गीतों को अलग मुकाम पर पहुंचाने वाले मशहूर गीतकार और शोले, दीवार जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्मों की पटकथा लिखने वाले जावेद अख्तर अक्सर अपने बेबाक जवाब की वजह से जाने जाते हैं। हाल ही में कोलकाता में आयोजित होने वाला “उर्दू इन हिंदी सिनेमा” कार्यक्रम अचानक टाल दिया गया। इसकी वजह बनी मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद की आपत्ति, जिन्होंने इस बात पर आपत्ति जताई कि जावेद अख्तर को मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया गया था।
अब इस मामले पर NDTV से बात करते हुए जावेद अख्तर ने कहा कि उनके लिए ऐसे विरोध का सामना करना कोई नई बात नहीं है, पहले भी हिंदू और मुस्लिम दोनों के कट्टरपंथी लोग उन्हें निशाना बनाते आए हैं। जावेद अख्तर ने कहा, “कुछ लोग मुझे जिहादी कहते हैं और कहते हैं कि मुझे पाकिस्तान चले जाना चाहिए। कुछ कहते हैं कि मैं काफिर हूँ और मैं 100% नरक में जाऊँगा और मुझे अपना नाम बदल लेना चाहिए, कि मुझे मुस्लिम नाम रखने का अधिकार नहीं है।”
जावेद अख्तर ने खुलासा किया कि बीते दो दशकों में मुंबई पुलिस कई बार उन्हें सुरक्षा मुहैया करा चुकी है। जावेद ने कहा, “पिछले 20-25 सालों में मुंबई पुलिस ने मुझे कम से कम चार बार अपनी तरफ़ से सुरक्षा दी है। मैंने माँगा नहीं था। लेकिन उन्होंने ख़तरे का आकलन करके सुरक्षा दी। इनमें से तीन बार मुसलमान संगठनों या लोगों की तरफ़ से खतरे की वजह से और एक बार दूसरी तरफ़ से। मेरे लिए यह कोई नई बात नहीं है।”
कार्यक्रम रद्द होने के बारे में बात करते हुए जावेद अख्तर ने कहा कि समाज में दोनों तरफ़ ऐसे लोग मौजूद हैं जो ज़हर उगलते रहते हैं।
“हमारे समाज में ऐसे लोग हैं जो ज़हर उगलते हैं और वे दोनों तरफ़ मौजूद हैं। मैं खुद को एक सेक्युलर भारतीय मानता हूँ और अगर समाज के लिए कोई चीज़ हानिकारक है तो मुझे एक जिम्मेदार नागरिक की तरह उसे सामने लाना चाहिए। सच्चाई में आधा सच नहीं होना चाहिए।”
दिलजीत दोसांझ ने गोद लिए पंजाब के गांव, एमी विर्क ने भी ली बाढ़ प्रभावित 200 घरों की जिम्मेदारी
उन्होंने साफ़ कहा कि सच बोलने पर कभी एक पक्ष नाराज़ होता है, कभी दूसरे पक्ष के लोगों को गुस्सा आ जाता है। “अगर सच है, तो वह पूरा होना चाहिए। कभी एक पक्ष आहत होता है, कभी दूसरा। दोनों ही ओर से लोग गुस्से में रहते हैं। शुक्र है कि बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो मेरी बातों की सराहना करते हैं, मुझे इज़्ज़त देते हैं और बहुत प्यार और गर्मजोशी से मिलते हैं।”
कट्टरपंथियों की बहस की चुनौती पर जावेद अख्तर ने कहा कि उनके साथ फैक्ट्स पर करना मुश्किल है। “बहुत से कट्टरपंथी और नकारात्मक लोग मुझे बहस की चुनौती देते हैं। लेकिन मैं उनसे कैसे बहस करूँ जो सुनने के लिए तैयार ही नहीं? अगर आपको बहस करनी थी, तो आपको पूछना चाहिए था कि मैं इस कार्यक्रम में आ रहा हूँ या नहीं। जहाँ आपके पास शक्ति होती है, वहाँ आप मुझे बोलने से रोक देते हैं।”
कौन हैं लुईज़ बैंक्स? जिन्हें कहा जाता है ‘गॉडफादर ऑफ इंडियन जैज़, कभी मुंबई के क्लब से की थी शुरुआत
उन्होंने आगे कहा, “बहस तभी हो सकती है जब सामने वाला सुनने की क्षमता रखता हो। आपके पास सहनशीलता ही नहीं है। केवल वे लोग बहस कर सकते हैं तार्किक बात कर सकें। हम आपस में केवल तर्क और विवेक से ही संवाद कर सकते हैं। आस्था तर्क के दायरे से बाहर होती है। जब आप उससे आगे जाते हैं, तो मैं आपसे कैसे बात करूँ?”
इस विवाद के बाद सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी भी जावेद अख्तर के समर्थन में उतरीं और कहा कि अगर वे तैयार हों तो कोलकाता में उनके लिए स्वतंत्र आयोजन करवाया जा सकता है।
