विभाजन से पहले भारत में फिल्म कारोबार के तीन प्रमुख केंद्र थे। बंबई, कलकत्ता और लाहौर। कलकत्ता में न्यू थियेटर्स, बंबई में बॉम्बे टॉकीज, लाहौर में पंचोली और शौरी स्टूडियो का बोलबाला था। विभाजन के दौरान जब कौमी दंगे हुए तो लाहौर में पंचोली और शौरी स्टूडियो जला दिए गए। 1947 में लाहौर में छह फिल्में बन रही थीं, जिनमें से चार तो कभी पूरी नहीं हुईं, जबकि बाकी बची दो फिल्में लंबे समय तक लटक गईं। पाकिस्तान में बनी पहली फिल्म थी ‘तेरी याद’। लाहौर के मैक्लॉयड रोड पर प्रभात सिनेमा में ‘तेरी याद’ का प्रदर्शन सात अगस्त, 1948 को हुआ। इस फिल्म के हीरो थे दिलीप कुमार के छोटे भाई नासिर खान, जिनकी आज 94वीं जयंती है। हालांकि अविभाजित भारत में खान ‘मजदूर’ (1945) और ‘शहनाई’ (1947) में काम कर चुके थे और विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए थे।
विभाजन के बाद बने पाकिस्तान में सिनेमा संभल नहीं पा रहा था क्योंकि लाहौर फिल्मोद्योग को, जिसे लॉलीवुड कहा जाता है, तगड़ा झटका लगा था। वहां फिल्म निर्माण की बुनियादी सुविधाएं, फंड की कमी और फिल्म बनाने के आधुनिक उपकरण नहीं थे। इन हालातों में पहली सिल्वर जुबिली फिल्म आने में तीन साल लग गए। ऐसी स्थिति में नासिर खान को जब पाकिस्तान में अपना भविष्य डांवाडोल नजर आया, तो ‘तेरी याद’ और ‘शाहिदा’ (1949) जैसी दो फिल्मों की विफलता के बाद वे वापस भारत आ गए। देखा जाए तो विभाजन से पहले नासिर खान का करियर भारत में ठीकठाक चल रहा था। उनकी फिल्म ‘शहनाई’ (1947) हिट थी, जिसके गाने ‘मार कटारी मर जाना…’ (अमीरबाई कर्नाटकी) और ‘आना मेरी जान मेरी जान संडे के संडे ’ (शमशाद बेगम, अमीर बाई कर्नाटकी और सी रामचंद्र) खूब लोकप्रिय थे। नासिर की भाई दिलीप कुमार के साथ बनी ‘गंगा जमना’ बहुत लोकप्रिय हुई और यह हिंदी सिनेमा की पाठ्य पुस्तक कही गई।
‘गंगा जमना’ दिलीप कुमार ने अपने होम प्रोडक्शन में बनाई थी। इसके गाने ‘ढूंढों ढूंढों रे साजना ढूंढों…, ‘इंसाफ की डगर पे…’ खूब लोकप्रिय हुए। मगर उन पर दिलीप कुमार की नकल करने के आरोप लगने लगे थे। खान ने सुरैया के साथ ‘लाल कुंवर’, नरगिस के साथ ‘अंगारे’, नूतन के साथ ‘नगीना’, मीना कुमारी के साथ ‘दायरा’ जैसी फिल्में कीं। 1958 में नासिर खान ने फिल्म अभिनेत्री बेगम पारा से दूसरी शादी की। बेगम पारा (‘मृत्युदंड’ में माधुरी दीक्षित के हीरो रहे अभिनेता अयूब खान की मां) अभिनेत्री थीं। उनके पिता जलंधर से आकर बीकानेर में बसे। पारा प्रगतिशील विचारों की आधुनिक महिला थीं। 3 मई, 1974 को नासिर खान के निधन के बाद बच्चों को पालने की जिम्मेदारी बेगम पारा पर आई, तो वे बहन के पास पाकिस्तान चली गईं। मगर खुले विचारों की बेगम पारा को पति नासिर खान की तरह पाकिस्तान रास नहीं आया। लिहाजा शौहर की तरह वे भी कुछेक महीनों के बाद भारत आ गईं। आज की पीढ़ी के लोग बेगम पारा को संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘सांवरिया’ में सोनम कपूर की दादी, बड़ी अम्मी की भूमिका में देख सकते हैं। एक दशक पहले (9 दिसंबर, 2008) को बेगम पारा का भी इंतकाल हो गया।
