पारखी नजर हर किसी के पास नहीं होती। किसी हुनरमंद की प्रतिभा को समझने में लोगों से गलती भी होती है। और जब ऐसा होता है तो हीरो बनने आए धर्मेंद्र से कहा जाता है कि वह जाकर किसानी करें या फुटबॉल खेलें। अमिताभ बच्चन से कहा जाता है कि वह बिजली विभाग में नौकरी कर लें, लंबे पैरों से खंभे पर चढ़ने में आसानी होगी। मशहूर उद्घोषक अमीन सयानी अमिताभ बच्चन की आवाज को खारिज कर देते हैं। मगर हुनर के कुछ पारखी एक नजर में ही प्रतिभा को तौल लेते हैं। मशहूर निर्माता और अशोक कुमार के जीजा शशधर मुखर्जी ने जब लता मंगेशकर की आवाज को नकारते हुए इसे बहुत पतली बताया था, तो उनकी सिफारिश लेकर गए संगीतकार गुलाम हैदर ने उनसे कहा था कि देखना एक दिन निर्माता हाथ जोड़कर, पांव पकड़कर इस गायिका से कहेंगे कि उनकी फिल्म में गाना गा दे। अमीन सयानी गलती कर सकते हैं, शशधर मुखर्जी गलती कर सकते हैं, कोई भी गलती कर सकता है।

जो गलती न करे, किसी कलाकार का हुनर जान-समझ ले और उसे मौका दे, ऐेसे लोग कम ही मिलेंगे। इनमें से एक थे संगीतकार दत्ता डावजेकर। साठेक फिल्मों में संगीत देने वाले डावजेकर खूब परिश्रमी संगीतकार थे और देश भर में घूम-घूम कर संगीत कार्यक्रम कर चुके थे, खासकर उत्तर भारत में। उनके पिता सोहराब मोदी के भाई केके मोदी के नाटकों में तबला बजाते थे। लिहाजा सुर से भी पहले दत्ता के दिमाग में कहरवा, दीपचंदी जैसी ‘ताल’ ने सरगोशियां की थी। फिर हारमोनियम और दूसरे वाद्य यंत्र आते चले गए।

1941 में ‘म्यूनिसपालिटी’ नामक मराठी फिल्म में संगीत दिया। 1942 में मराठी फिल्म ‘सरकारी पाहुणे’ (सरकारी मेहमान) बनाई तो उसमें एक हिंदी गाना भी डाल दिया। ‘ताल’ डावजेकर की जिंदगी में पहले आई और फिर 1943 में यही ताल उलट कर 14 साल की किशोरी के रूप में उनके सामने परीक्षा देने आ खड़ी हुई। निर्माता वसंत जोगलेकर ने 14 साल की लता मंगेशकर को डावजेकर के पास भेजा कि वह जांच-परख लें कि लड़की कैसा गाती है।

साल भर पहले पिता के निधन के बाद परिवार के भरण पोषण के लिए संघर्ष कर रही लता को सुनने के बाद डावजेकर ने जोगलेकर से कहा कि पैसा धेला कितना देना है, यह तुम जानो। मैं तो बस इतना कहूंगा कि इस आवाज को किसी भी हालत में नहीं खोना चाहिए। यह अद्भुत प्रतिभाशाली गायिका है। इस तरह लता मंगेशकर ने मराठी फिल्म ‘माझ बाल’ में गाना गाया। हालांकि इससे पहले 1942 में मराठी फिल्म ‘किती हसाल’ में सदाशिवराव नेवरेकर और ‘पहली मंगलागौर’ में दादा चांदेकर ने उनसे गवाया था।

मगर दत्ता डावजेकर की किस्मत में हिंदी सिनेमा को एक कोयल सौंपना लिखा था। लिहाजा जब डावजेकर को ‘आपकी सेवा में’ (1943) नामक हिंदी फिल्म में संगीत देने का मौका मिला, तो उन्होंने फिर लता को बुलाया और इस तरह से लता मंगेशकर ने हिंदी फिल्मों के लिए अपना पहला गाना ‘पा लागूं कर जोरी रे…’ गाया। और इसी एक गाने ने दत्तात्रेय शंकर डावजेकर को हिंदी सिनेमा संगीत में लता मंगेशकर से पहली बार गवाने वाले संगीतकार के रूप में अमर कर दिया और ताल से शुरू हुए डावजेकर लता पर पहुंच कर खत्म हो गए। जीवन भर उनके सारे काम पर यह उपलब्धि भारी रही।