निर्देशक- प्रशांत सिंह
कलाकार- सिद्धार्थ मल्होत्रा, परिणीति चोपड़ा, जावेद जाफरी, अपारशक्तिखुराना, संजय मिश्रा, नीरज सूद
अब तो उतना नहीं लेकिन कुछ साल पहले जमाने में बिहार में पकड़वा शादी का चलन था। ऐसी शादी जिसमें लड़के को अगवा कर लिया जाता था और फिर उसकी शादी कर दी जाती थी। ऐसा दहेज की बढ़ती मांग की वजह से हुआ। लड़की के पिता को अगर कोई लड़का अच्छा लग गया तो वो किसी बाहुबली की मदद से उसको अगवा करा लेता था और फिर उससे अपनी बेटी के साथ सात फेरे लगवा देता था। ‘जबरिया जोड़ी’ इसी पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म है। यह अच्छी हंसने-हंसाने वाली फिल्म के रूप में शुरू होती है पर मध्यांतर के बाद जज्बाती होने के चक्कर में पटरी से उतर जाती है। ऐसा लगता है कि इसकी कहानी जबरिया आगे बढ़ाई जा रही है।
सिद्धार्थ मल्होत्रा ने इसमें अभय सिंह यादव नाम के उस बाहुबली का किरदार निभाया है, जो विवाह योग्य लड़कों को उठाता है और उनकी जबरदस्ती शादी कराता है। इसके लिए वो कुटाई-पिटाई से लेकर जान से मारने की धमकी देता है। परिणीति चोपड़ा इसमें बबली यादव बनी है। बबली को घर से भागकर शादी करने का शौक है। लेकिन वो जिस लड़के के साथ भागने की कोशिश करती है वो ऐन वक्त पर स्टेशन नहीं पहुंचता है। उसके बाद तो बबली उसकी सरेआम पिटाई करती है। इतनी कि टीवी चैनल पर उसे लाइव दिखाया जाता है। फिर तो बबली को पटना में ‘बबली बम’ कहा जाने लगता है। लेकिन ऐसी लड़की से शादी कौन करे? इसलिए पिता परेशान है। हालात ऐसे बनते हैं कि बबली और अभय सिंह की मुलाकात होती है और तब बबली को याद आता है कि ये तो उसके बचपन का वो दोस्त है जो छोटी उम्र में ही उसके पिता से उसका हाथ मांगने चला आया था। प्यार की बुझी हुई लौ फिर से सुलगने लगती है। अब आगे क्या होगा? क्या बबली और अभय एक दूसरे के होंगे या अभय जबरिया जोड़ी बनाने का धंधा करता रहेगा? बबली की शादी होगी या नहीं? होगी भी तो किससे?
फिल्म में बिहारी शैली की डायलॉगबाजी का जोर है। एक जगह अभय सिंह के पिता की भूमिका निभा रहे जावेद जाफरी के आगे एक लड़की का दयनीय-सा लगने वाला पिता झुका जा रहा होता है तो जाफरी का डायलाग है- ‘अरे ये कौन डाउन टू अर्थ हुआ जा रहा है भाई?’ इसी तरह एक पानवाला जब एक रंगबाज को पान मांगने पर छोटा सा बीड़ा देता है तो वो कहता है- ‘ये पान है कि जापान है।’ इस तरह के चुस्त फिकरे कई जगह फिल्म में हैं। लेकिन डायलागबाजी के इस पहलू को छोड़ दें तो फिल्म कई जगहों पर बहुत ढीली हो गई है। खासकर जब अभय सिंह बबली को जबरदस्ती अपने साथ ले जाता है और उसकी शादी उस लड़के से कराना चाहता है जिससे बबली का परिवार चाहता है, तो वो पूरा मामला लंबा और लचर दिखता है।
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इसी तरह, जिन दृश्यों में बबली अपने कुछ नादान किस्म के दोस्तों से अभय सिंह को अगवा कराती है और उसके साथ फेरे लेती है, वो भी काफी कमजोर हैं। उनमें हंसी की और भी संभावनाएं थीं। सिद्धार्थ मल्होत्रा भी पूरी तरह से बिहारी बाहुबली नहीं दिखते हैं। उनका पंजाबीपन साफ झलकता है। हां, बबली की भूमिका में परिणीति चोपड़ा बहुत हद तक विश्वसनीय लगती है। लेकिन अभिनय के मामले मे छा हुए हैं तो संजय मिश्रा, जिन्हें नींद में चलनेवाले एक किरदार के रूप में भी और दूसरे दृश्यों में भी हंसा-हंसाकर दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया है। जावेद जाफरी भी जमे हैं। फिल्म में ‘पटना हिले छपरा हिले…’ वाला गाना तो पुराने गाने का हल्का सा रिमेक है।