निर्देशक- मुजफ्फर अली
कलाकार-इमरान अब्बास नकवी, परनिया कुरेशी, मुजफ्फर अली

कुछ लोगों के लिए वक्त ठहर जाता है या ऐसे लोग खुद ठहर जाते हैं। बात कर रहा हूं मुजफ्फर अली की जिन्होंने कभी ‘उमराव जान’ जैसी शानदार फिल्म बनाई थी।

लेकिन लगता है कि अली साहब उसी वक्त में रुके हुए हैं जहां उन्होंने ‘उमराव जान’ को खत्म किया था। मिसाल है ‘जांनिसार’ जिसकी कहानी 1857 के बीस साल के बाद की है। फिल्म में राजा अमीर अली (इमरान अब्बास नकवी) नाम का एक किरदार है जो उस शाही परिवार से जुड़ा है जो 1857 के दौरान अंग्रेजों का तरफदार रहा।

अमीर अली की परवरिश अंग्रेजों ने की और इसी कारण वह मन ही मन उनका सम्मान करता है। लेकिन युवा अली की जंदगी में एक तवायफ नूर (परनिशा कुरेशी) आती है और उसका अंग्रेजों के प्रति नजरिया बदलने लगता है। प्रेम कहानी में देशप्रेम का छौंक लगता है और राजा अमीर अली की जिंदगी नई दिशाओं में मुड़ने लगती है।

लेकिन यह सब इतनी धीमी गति से होता है कि दर्शक का मन ऊबने लगता है और उसे लगता है कि आखिर जब बुलेट ट्रेन का जमाना आ गया है तो कुछ निर्देशकों के लिए छुक-छुक रेल का जमाना बीता क्यों नहीं है?

हालांकि मुजफ्फर अली ने बिरजू महाराज जैसे नर्तक से कोरियोग्राफी कराई है और लखनऊ की पुरानी संस्कृति को पर्दे पर लाने का प्रयास किया है पर उससे बात बनी नहीं है। इमरान अब्बास नकवी पाकिस्तानी कलाकार हैं और पनिर्या कुरेशी भारतीय फैशन डिजाइनर हैं।

दोनों के अभिनय में दम नहीं है। मुजफ्फर अली खुद भी अभिनय के अखाड़े में आ गए हैं मगर निर्देशक अभिनय करने लगे तो दोनों लगामों से हाथ छूट जाता है और फिल्म की गति दिशाहीन हो जाती है।