ईरानी फिल्मकार असगर फरहादी को जब ‘टाइम’ ने संसार के सौ सबसे प्रभावशाली लोगों में शामिल किया था तो किसी को अचरज नहीं हुआ था। अब कान फिल्मोत्सव में उन्हे दो-दो पुरस्कारों से नवाजा गया है। उनकी फिल्म द सेल्समैन के लिए सर्वश्रेष्ठ पटकथा और उनके मुख्य अभिनेता शहाब होस्सेनी को सर्वश्रेष्ठ अभिनय का पुरस्कार दिया गया है। इससे पहले द पास्ट (2013) में उम्दा अभिनय के लिए बेरोनिस बेजो को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार दिया गया था।
बर्लिन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल न सिर्फ उन्हें कई पुरस्कार दे चुका है बल्कि जूरी(2012) में भी बुला चुका है। उनकी फिल्म अ सेपरेशन (2012)आॅस्कर पुरस्कार पाने वाली पहली ईरानी फिल्म है। वे इस समय दुनिया के सबसे महत्त्वपूर्ण फिल्मकारों मे माने जा रहे हैं। असगर फरहादी जमाने के बाद ईरान लौटे हैं और द सेल्समैन की शूटिंग तेहरान में की है। हालांकि द पास्ट के बाद उन्होंने अगली फिल्म स्पेन में बनाने की घोषणा की थी। अब वे कहते हैं: मैं अपने देश में जाकर फिल्म बनाना चाहता था, यह जानते हुए भी कि वहां बहुत सारी मुश्किलें हैं। इससे पहले अपने अग्रज अब्बास किरोस्तानी की तरह वे अक्सर ईरान से बाहर ही फिल्में बनाते रहे हंै। ईरान द्वारा नई आणविक संधि पर बदले रुख और आर्थिक प्रतिबंध हटाए जाने के बाद असगर फरहादी की देश वापसी को ईरानी फिल्मोद्योग मे आ रहे उछाल के बतौर देखा जा रहा है। यह सिनेमा की नई कूटनीति है जिसके कारण कान और बर्लिन दोनों फरहादी के साथ खड़े हैं।
ईरान में अभी पिछले साल ही केयाम करीमी को छह साल कैद की सजा सुनाई गई क्योंकि उन्होंने 1979 की इस्लामी क्रांति से 2009 के आम चुनावों तक के दौर पर ‘राइटिंग इन द सिटी ’ बनाने की जुर्रत की थी। दुनिया भर में सम्मानित जफर पनाही अब भी नजरबंद हैं। ऐसे में असगर फरहादी की ईरान वापसी को वहां शुभ माना जा रहा है। ईरानी फिल्मोद्योग को आने वाले समय में अच्छे परिणामों की आशा जगी है। ईरान की नई पीढ़ी कट्टरपंथ से तबाह हो रही है। सिनेमा उसके लिए आजादी के नए रास्ते खोल रहा है। कान ने ईरान की एक बड़ी कंपनी शहरजाद मीडिया इंटरनेशनल की मालकिन कातायून शहाबी को इस साल जूरी मे रखा जो वहां की सबसे प्रमुख प्रोड्यूसर भी हैं। पेरिस हमेशा से दुनिया भर के फिल्मकारों के लिए स्वर्ग रहा है। इस्लामी देशों के फिल्मकारों के लिए कुछ अधिक मेहरबान।
द सेल्समैन एक नव यथार्थवादी सस्पेंस थ्रिलर है जिसका शीर्षक आर्थर मिलर की मशहूर कृति डेथ आॅफ अ सेल्समैन से लिया गया है। एमाड और उसकी पत्नी राना को अपना अपार्टमेंट खाली करना है क्योंकि पूरी बिल्डिंग गिराई जानी है। वे दोनों नाटक में काम करते हैं। एमाड स्कूल में साहित्य भी पढ़ाता है। एक शाम दरवाजे पर घंटी बजती है। राना को लगा उसका पति होगा। वह दरवाजा खोलकर बिना देखे कि कौन आया है, नहाने के लिए बाथरूम मे चली जाती है। एमाड जब घर पहुंचता है तो उसे खून से लथपथ राना बाथरूम में पड़ी मिलती है। पड़ोसियों की मदद से उसे अस्पताल ले जाते है। राना ठीक हो जाती है। राना एमाड को पुलिस में रिपोर्ट करने से मना करती है। एमाड इस खयाल सें ही डिस्टर्ब रहने लगता है कि कोई दूसरा मर्द बाथरूम में आया था और राना पर हमला किया होगा। उसे शक होता है कि उसने राना को बाथरूम में निर्वस्त्र तो नहीं देख लिया।
फिल्म में ईरानी मदर्वाद पर चोट की गई है। पड़ोसी बताते हैं कि उनसे पहले इस फ्लैट में कोई वेश्या रहती थी। शक यह भी होता है कि हो सकता है कि उसी का कोई पुराना ग्राहक भूलवश आ गया हो और राना को वेश्या समझ बैठा हो और विरोध होने पर हमला कर बैठा हो। यह खयाल ही एमाड को बेचैन कर देता है। मंच पर डेथ आॅफ अ सेल्समैन नाटक करते हुए अक्सर वह संवाद भूल जाता है। राना इसे दुर्घटना मानकर भूल जाने को कहती है। लेकिन एमाड को पता करना है कि उस दिन कौन आया था। आगे की फिल्म अपराधी की खोज और अनोखी सजा देकर बदला लेने का सस्पेंस थ्रिलर है।
ईरानी समाज के लिए इतना ही बहुत है कि कोई दूसरा मर्द किसी की बीवी को निर्वस्त्र देख ले या उस पर हमला कर दे। फरहादी ने इतनी कसी हुई पटकथा लिखी है कि दृश्य-दर-दृश्य हम सांस रोककर बैठे रहते हैं। अंत मे एमाड उस आदमी को खोज निकालता है। सबके सामने वह अपना कारनामा कबूल करता है।
ईरानी सिनेमा के प्रति दुनियाभर मे दिलचस्पी नब्बे के दशक से ही रही है। मोहसिन मखमलबाफ सहित कई बड़े फिल्मकारों को देशनिकाला और जेल दिए जाने के बाद भी ईरान में लोग जान की बाजी लगाकर फिल्में बना रहे हैं। पेरिस मे रहते हुए भी पहले अब्बास किरोस्तामी और अब असगर फरहादी को दुनियाभर में हर जगह अपार इज्जत हासिल है। इस स्थिति में अगर फरहादी का सिनेमा अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का जरिया बनता है तो इसका भी स्वागत किया जाना चाहिए।