गीतकार चित्रगुप्त श्रीवास्तव एक दशक तक फिल्मजगत में धार्मिक-पौराणिक, बी व सी ग्रेड की फिल्में करते रहे। फिल्मों में क्ले वायलिन पर बीन की धुन निकालने का श्रेय चाहे कल्याणजी-आनंदजी (‘नागिन’, 1954) को दिया जाता हो, मगर उनसे पहले यह काम चित्रगुप्त ने 1953 में अपनी फिल्म नागपंचमी में कर दिखाया। ्नकैम्पबाजी के कारम प्रतिष्ठित और बड़े निर्माता या तो अपने प्रिय संगीतकार को लेते थे या लोकप्रिय संगीतकार को। चित्रगुप्त को भी एक ‘बड़े’ निर्माता का इंतजार था। बड़ा निर्माता उन्हें संयोग से मिला और इसमें संगीतकार एसडी बर्मन का अपना सहयोग रहा। एसडी बर्मन का 50 के दशक में दबदबा था। दक्षिण भारत के एक महत्त्वपूर्ण स्टूडियो एवीएम प्रोडक्शंस के मालिक मयप्पन 1955 में उनके पास अपनी फिल्म ‘शिवभक्त’ का प्रस्ताव लेकर पहुंचे। बर्मन दादा ने मयप्पन से कहा कि वे इस फिल्म में संगीत नहीं दे पाएंगे क्योंकि वह एक समय में दो-तीन से ज्यादा फिल्में नहीं लेते और धार्मिक-पौराणिक फिल्मों में संगीत देने से बचते हैं। मयप्पन निराश होकर जाने लगे तो बर्मन दादा ने उन्हें सुझाव देते हुए कहा कि बेहतर होगा कि वे अपनी फिल्म का संगीत चित्रगुप्त से तैयार करवाएं। चित्रगुप्त उन दिनों ऐसी ही फिल्मों में काम कर रहे थे। इस तरह चित्रगुप्त के करिअर में एवीएम स्टूडियो जैसे बड़े निर्माता का प्रवेश हुआ, जो बीते बीस सालों से (1935 से) फिल्में बना रहा था और जिसने दक्षिण भारतीय अभिनेत्री वैजयंतीमाला को फिल्म ‘बहार’ (1951) से हिंदी फिल्मों में पेश किया था।

‘शिवभक्त’ (1955) से तो चित्रगुप्त को कोई ज्यादा सहारा नहीं मिला लेकिन एवीएम ने दो साल बाद उन्हें अपनी फिल्म ‘भाभी’ का संगीत तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी। देखते-ही-देखते चित्रगुप्त की पतंग ऊंचे आसमान में उड़ने लगी। ‘भाभी’ दरअसल तमिल फिल्म ‘कुल दैवम’ का रीमेक थी, जिसका लेखन द्रविड़ मुनेत्र कषगम के नेता मुरासोली मारन ने किया था, जो बाद में वीपी सिंह, देवेगौड़ा और गुजराल सरकारों में मंत्री बने। ‘कुल दैवम’ के निर्माता का दिल एक बांग्ला फिल्म ‘बंगा कोरा’ पर आ गया था, जो प्रभावती देवी के उपन्यास ‘बिजित’ पर बनी थी। प्रभावती ने लगभग 300 किताबें लिखीं। स्कूल शिक्षिका रहीं प्रभावती देवी पर खूब मान-सम्मानों की बरसात हुई थी और नवदीव स्कॉलर्स सोसायटी ने उन्हें सरस्वती सम्मान से नवाजा था, जिसके बाद वह बन गई थीं प्रभावती देवी ‘सरस्वती’। इस तरह से ‘भाभी’ कुछ और नहीं बांग्ला फिल्म ‘बंगा कोरा’ की रीमेक थी।

‘भाभी’ 1957 में प्रदर्शित हुई और इसके गानों- ‘चली चली रे पतंग मेरी चली रे…’ और ‘चल उड़ रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना…’ ने धूम मचा दी। वह चित्रगुप्त, जो गुमनाम संगीतकार की तरह फिल्मजगत में काम कर रहे थे, इस फिल्म की सफलता के बाद चर्चा में आए। 1946 की ‘फाइटिंग हीरो’ से फिल्मों में काम कर रहे चित्रगुप्त को लगभग ढाई दर्जन फिल्मों में और 11 सालों तक संगीत देने के बाद आखिर 1957 की ‘भाभी’ से एक पहचान मिली।

पटना में प्रोफेसर रहे चित्रगुप्त ने कई फिल्मों में गाने बनाए। इनमें ‘लागी छूटे ना…’, ‘दगा दगा वई वई…’ (काली टोपी लाल रूमाल), ‘जय जय हे जगदंबे माता…’ (गंगा की लहरें), ‘एक रात में दो दो चांद खिले…’ (बरखा), ‘अंखियन संग अखियां लागी आज…’ (बड़ा आदमी), ‘चांद जाने कहां खो गया…‘, ‘कोई बता दे दिल है कहां…’ जैसे गाने शुमार हैं। 1998 में प्रदर्शित ‘चंडाल’ चित्रगुप्त की आखिरी प्रदर्शित फिल्म थी। संगीतकार आनंद-मिलिंद उनके बेटे हैं, जो आमिर खान की फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ के गाने ‘पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा…’ और बेटा में माधुरी दीक्षित पर फिल्माए गए ‘धक धक करने लगा…’ गाने से चर्चा में आए।

मुंबई फिल्मजगत में कैम्पबाजी के साथ ही गलाकाट स्पर्धा की चर्चा अक्सर होती रही है। फनकारों के बीच फिल्मों के लिए मचने वाली छीनाझपटी भी इस कारोबार का एक हिस्सा है। मगर कई ऐसे किस्सों की भी कमी नहीं है, जिसमें हमपेशा लोगों ने एक दूसरी की मदद की, जिससे उनका करिअर बना। संगीतकार चित्रगुप्त की 1957 में रिलीज ‘भाभी’ दक्षिण के मशहूर बैनर एवीएम प्रोडक्शन ने बनाई थी। एक दशक से छोटे बजट की फिल्में कर रहे चित्रगुप्त को एवीएम जैसे बड़े बैनर में काम दिलवाया एसडी बर्मन ने। अर्थशास्त्र और पत्रकारिता में एमए करने वाले चित्रगुप्त की गाड़ी एवीएम से जुड़ते ही दौड़ने लगी। आज चित्रगुप्त की 99वीं जयंती है।