मुंबई फिल्मजगत में हमेशा हीरो का दबदबा रहता है और हीरोइनों का कैरियर पांच-दस साल में खत्म हो जाता है। इस धारणा को श्रीदेवी ने गलत साबित किया और पांच नहीं बल्कि पचास सालों तक फिल्मजगत में प्रासंगिक बनी रही। 80 और 90 के दशक में तो श्रीदेवी का नाम बॉक्स ऑफिस पर सफलता की गारंटी माना जाता था। हीरोइनों को न कहने की आजादी बड़ी ही मुश्किल से मिल पाती है मगर श्रीदेवी ऐसी अभिनेत्री थीं, जिन्हें न कहना आता था। दक्षिण के दिग्गजों के साथ काम कर मिले अनुभव के साथ ही श्रीदेवी की न कहने की खूबी ने उन्हें लगभग पांच दशक तक बॉलीवुड में सक्रिय रखा। फिल्मों में वापसी भी की तो धमाकेदार। करिश्मा कपूर और माधुरी दीक्षित की अभिनय में वापसी ज्यादा असर नहीं छोड़ पाई, मगर श्रीदेवी की ‘इंग्लिश विंग्लिश’ को टोरंटो फिल्मोत्सव में दर्शकों ने खड़े होकर सम्मान दिया।
80 और 90 के दशक एक ओर यश चोपड़ा जैसे फिल्मकार का तो दूसरी ओर अमिताभ बच्चन जैसे हीरो का दबदबा था। बॉलीवुड की हर दूसरी अभिनेत्री अमिताभ बच्चन की हीरोइन बनना चाहती थी क्योंकि बॉक्स ऑफिस पर उनका दबदबा था। हर हीरोइन की ख्वाहिश होती थी कि यश चोपड़ा की फिल्म में उसे काम मिले। चाहे फिल्म में उसका एक सीन ही क्यों न हो। मगर जरूरत पड़ी तो श्रीदेवी ने न सिर्फ यश चोपड़ा को इनकार किया बल्कि अमिताभ बच्चन की फिल्मों में औसत दर्जे की भूमिकाएं करने से भी दूरी बनाए रखी। जिस बॉलीवुड में हीरो का नाम बिकता है, उसमें श्रीदेवी 90 का दशक आते-आते बॉक्स ऑफिस की पटरानी बन गई थी। उनके जुड़ते ही फिल्म की कीमत बढ़ जाती थी।
‘इंकलाब’ (1984) और ‘आखिरी रास्ता’ (1986) में अमिताभ बच्चन के साथ काम करने के बाद श्रीदेवी समझ गई थीं कि उनकी फिल्मों में हीरोइन शोपीस से आगे नहीं बढ़ सकती। इसलिए श्रीदेवी ने अमिताभ बच्चन की फिल्मों से दूरी बनानी शुरू कर दी। अमिताभ भी इसे समझ रहे थे। इसलिए जब श्रीदेवी ने अमिताभ की फिल्म ‘खुदा गवाह’ (1992) में डबल रोल करने के लिए हां कहा, तो अमिताभ बच्चन उन्हें गुलदस्ता नहीं बल्कि एक ट्रक भर कर फूल भिजवाए थे। तब बच्चन कैरियर के कमजोर दौर से गुजर रहे थे। यश चोपड़ा के साथ ‘चांदनी’ (1989) और ‘लम्हे’ (1992) जैसी फिल्म करने के बावजूद श्रीदेवी ने उनकी फिल्म ‘डर’ (1993) में काम करने से इनकार कर दिया था क्योंकि फिल्म में शाहरुख खान की केंद्रीय भूमिका थी। यशजी दूसरे कलाकारों को उसकी कहानी का क्लाइमैक्स सुनाने से बचना चाहते थे ताकि शाहरुख की ताकतवर भूमिका देख दूसरे कलाकार इनकार न कर दें। आमिर खान इस बात को ताड़ गए थे इसलिए उन्होंने जिद पकड़ ली थी कि यशजी शाहरुख और उन्हें आमने-सामने बिठा कर पूरी कहानी सुनाएंगे तब ही वह फिल्म साइन करेंगे। यश चोपड़ा ने इनकार कर दिया और आमिर खान की जगह सनी देओल को ले लिया। यह भूमिका कर सनी देओल बहुत पछताए और यशजी के साथ उनके संबंध बिगड़ गए। जबकि श्रीदेवी ने खूबसूरती से इनकार किया। पूरी विनम्रता से चुटकी लेते हुए उन्होंने कहा कि अगर यशजी चाहे तो ‘डर’ में वह शाहरुख वाली भूमिका कर सकती हैं।
ऐसे ही एक और मौके पर श्रीदेवी ने न कहा था अब्बास-मुस्तन को जो तब ‘बाजीगर’ (1993) में उन्हें दोहरी भूमिका में साइन करना चाहते थे। मगर श्रीदेवी ने इनकार कर दिया क्योंकि उन्हें लगता था कि फिल्म में उनके करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है। बाद में अब्बास-मुस्तन ने इस फिल्म के लिए शिल्पा शेट्टी और काजोल को साइन किया। मगर आज भी ‘बाजीगर’ शाहरुख खान की फिल्म मानी जाती है, काजोल और शिल्पा शेट्टी याद तक नहीं आते। श्रीदेवी ने तो ‘बाहुबली’ के लिए भी न कहा था। फिल्म में उन्हें शिवागामी की महत्वपूर्ण भूमिका में काम करने का प्रस्ताव दिया गया था। कहा जाता है कि इस भूमिका को करने के लिए श्रीदेवी ने अपनी कुछ शर्तों के साथ आठ करोड़ रुपए की मांग की थी। निर्माता ने तब यह भूमिका रमया कृष्णा को दे दी। क्या श्रीदेवी की मांग गलत थी? अगर कोई फिल्म हजारों करोड़ रुपए का कारोबार करती है तो जाहिर है कि उसके कलाकारों को भी उचित मेहनताना मिलना चाहिए।
आमतौर पर हिंदी फिल्मों की हीरोइन का कैरियर पांच सात साल का माना जाता है। या तब तक ही माना जाता है जब तक कि उसकी शादी नहीं होती। शादी करके फिल्मों में वापसी करने वाली ज्यादातर हीरोइनों का कैरियर परवान नहीं चढ़ा है। चाहे वह माधुरी दीक्षित हों या करिश्मा कपूर। मगर श्रीदेवी ने ‘इंग्लिश विंग्लिश’ के जरिये न सिर्फ सफल वापसी की बल्कि पचास साल तक अपनी प्रासंगिकता बरकरार रखी। उनकी निर्माणाधीन फिल्म ‘जीरो’ (शाहरुख खान, कैटरीना कैफ, अनुष्का शर्मा) इस साल के अंत तक परदे पर उतरेगी, जिसमें उनकी विशेष भूमिका है।

