साल 1995 में आई फिल्म ‘बॉम्बे’ मणि रत्नम की बेस्ट फिल्मों में से एक हैं, लेकिन सिनेमैटोग्राफर राजीव मेनन की मानें तो अगर ये फिल्म अब आई होती तो इसे रिलीज डेट ही नहीं मिलती। उनका कहना है कि भारत अब ‘कम सहिष्णु’ हो गया है, इस फिल्म को लोग रिलीज ही नहीं होने देते। हाल ही में दिए इंटरव्यू में राजीव मेनन ने फिल्म के कुछ सीन के बारे में बात की, जो 1993 के मुंबई बम विस्फोटों और उसके कारण भड़के दंगों पर आधारित थे।
02 इंडिया यूट्यूब चैनल के साथ खास बातचीत में उन्होंने कहा कि फिल्म को आज के समय में बहुत स्ट्रगल करना पड़ता। राजीव ने कहा, “Bombay जैसी फिल्म आज नहीं बन सकती। भारत में हालात इतने अस्थिर हैं, लोग बहुत मजबूत रुख अपना लेते हैं और धर्म एक बड़ा मुद्दा बन गया है। मुझे नहीं लगता कि आप ‘बॉम्बे’ जैसी फिल्म बना सकते हैं, उसे थिएटर में रिलीज कर सकते हैं और थिएटर जल जाएगा। इन 25-30 सालों में भारत कम सहिष्णु हो गया है।”
फिल्म के ‘तू ही रे’ गाने में मनीषा अपना बुर्का उतार देती हैं, उसे लेकर सवाल किया गया कि क्या ये इसलिए था कि वो अपना घर्म छोड़ देती हैं? इसे लेकर राजीव ने कहा, “हमारे पास उस सेट पर प्रॉप्स नहीं थे, हमारे पास सिर्फ किले की दीवार थी। ये जगह मुझे मेरे पिता के एक दोस्त ने दिखाई थी, जो नौसेना में कमोडोर थे। उन्हें मेरे पिता के निधन के बाद उन्होंने मुझे मदद करने की कोशिश की। हमारा आइडिया था कि उनके कपड़े एक कील में फंस जाते हैं। बस ये ऐसा ही थी, हम नहीं चाहते थे कि एक ही कपड़े में हम फंसे रह जाएं, उन्होंने एक खूबसूरत नीली ड्रेस पहनी थी, एक ही ड्रेस में दिखाना बोरिंग हो जाता। हमारे पास कोई डांस मास्टर नहीं था या ऐसा कुछ भी नहीं था।”
निर्देशक मणिरत्नम ने इस फिल्म के सबसे हिंसा वाले सीन में एआर रहमान के म्यूजिक को रखने के अपने फैसले के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा, “सभी हिंसक सीन के लिए, हमारे पास स्कोर था। ये एक दर्द है, ये ड्रम नहीं है, ये वायलिन नहीं है जिसे अंडरलाइन किया जा रहा है, बल्कि ये हिंसा के पीछे का दर्द है।”
राजीव ने कहा, “शहर जल रहा था। कोई भी इंसान और कोई थ्रिलिंग धुन चुन सकता था, लेकिन उन्होंने जो चुना वो अपने बच्चे को खोज रही मां की भावना थी। ये एक लोरी थी।”
02 इंडिया के साथ पिछले इंटरव्यू में राजीव ने बताया था कि रहमान आस्था से प्रभावित थे। संगीतकार हिंदू परिवार में जन्मे थे, लेकिन अपने करियर के कुछ सालों बाद उन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया। राजीव ने कहा, “एक समय ऐसा भी था जब लोग हिंदी नहीं जानते थे, इसलिए मैं ट्रांसलेटर होता था। मैंने धर्म और आस्था के प्रति संक्रमण और आकर्षण का ये दौर देखा है। मैंने रहमान को परिवार के भीतर से भारी दबाव से निपटते देखा है, खासकर अपनी बहनों की शादी के मामले में। ये संगीत ही था जिसने उन्हें इस तूफान से उबरने में मदद की।”
