एचएस रवैल (21 अगस्त , 1921 – 17 सितंबर, 2004)
फिल्म इंडस्ट्री में हरनाम सिंह रवैल हौसले का दूसर नाम कहा जाता है। उन्होंने इतना बुरा दौर देखा जिसमें सोना भी उठा रहे थे, तो मिट्टी हो रहा था। लायलपुर पंजाब में पैदा हुए रवैल ने मुंबई आकर फिल्मों में किस्मत आजमानी चाही। बात नहीं बनी तो कोलकाता जा पहुंचे। वहां कुछेक फिल्मों की पटकथाएं लिखीं और ‘दोरंगरिया डाकू’ (1940) नामक फिल्मों से निर्देशक बने। फिर तीन फिल्में एक के बाद डब्बा हुईं, तो लगा हरनाम सिंह का हौंसला हिल जाएगा। किस्मत को हरनाम सिंह की हिम्मत पर रहम आया तो 1949 में बनाई ‘पतंगा’ का गाना ‘मेरे पिया गए रंगून वहां से किया है टेलीफून…’ लोगों की जुबान पर चढ़ा और लगा कि अब हरनाम सिंह चल निकलेंगे।
मगर किस्मत को अभी हरनाम सिंह की और परीक्षाएं लेनी थीं। लगभग दस सालों तक हरनाम सिंह ने हर साल औसतन एक फिल्म बनाई और वह बॉक्स ऑफिस पर टें बोलती गई। कोई और फिल्मकार होता तो घबरा कर फिल्मजगत ही छोड़ देता। मगर जितने कड़े इम्तिहान किस्मत ने लिए, हरनाम सिंह का हौंसला उतना ही मजबूत होता गया। हिम्मत करके हरनाम सिंह ने दो फिल्में शुरू कीं। मीना कुमारी को लेकर ‘चालबाज’ और वैजयंतीमाला को लेकर ‘बाजीगर’। ये दोनों ही फिल्में अधबीच में बंद हो गर्इं और अगली दो फिल्में फ्लॉप हो गर्इं। रवैल ने मनोज कुमार को लेकर ‘कांच की गुड़िया’ (1963) बनाई। उससे मनोज कुमार का तो फिर भी भला हो गया, रवैल वहीं के वहीं रह गए।
मगर सभी दिन एक समान नहीं रहते। लगभग तीन दशक तक संघर्ष करने के बाद किस्मत हरनाम सिंह पर ऐसे मेहरबान हुई कि देश भर में उनकी फिल्म के गाने गूंजने लगे। कोई गा रहा था ‘ऐ हुस्न जरा जाग तुझे इश्क जगाए…’, किसी के लबों पर था ‘याद में तेरी जाग जाग के हम रात भर करवटें बदलते हैं….’, कोई गुनगुना रहा था ‘अल्ला बचाए नौजवानों से…’ ये सभी गाने हरनाम सिंह की फिल्म ‘मेरे महबूब’ (1963) के थे। साधना के साथ अपने असिस्टेंट राजेंद्र कुमार को लेकर बनाई रवैल की यह फिल्म बॉक्स आॅफिस पर खूब चली।
नौशाद और शकील बदायूंनी की जोड़ी के तैयार किए गाने भी खूब चले। और इसकी के साथ हरनाम सिंह रवैल के हौसले की जीत हुई। ‘मेरे महबूब’ बेहतरीन मुसलिम सोशल फिल्म के रूप में आज भी याद की जाती है। रवैल की एक और मुसलिम सोशल फिल्म ‘महबूब की मेहंदी’ को दर्शकों ने खूब पसंद किया।
मगर जिस फिल्म ने रवैल की सारी असफलताओं को धो दिया वह थी ऋषि कपूर की प्रमुख भूमिका वाली ‘लैला मजूनं’। इस फिल्म के गाने ‘हुस्न हाजिर है…’, ‘इस रेशमी पाजेब की झनकार…’, ‘तेरे दर पर आया हूं…’ खूब चले। मगर एक जबरदस्त असफलता अभी बाकी थी। यह आई निर्माता जीतेंद्र की ‘दीदार ए यार’ (1982) के रूप में। यह इतनी बड़ी असफलता थी कि इसके बाद हरनाम सिंह रवैल ने बतौर निर्देशक फिल्में बनानी ही बंद कर दी।
