‘हसीना पारकर’ फिल्म दाऊद इब्राहीम की बहन हसीना पारकर पर केंद्रित है। दाऊद को ‘भाई’ के नाम से जाता है। ऐसे ‘भाई’ की बहन भी तो एक तरह की ‘भाई’ ही होगी। वैसे हसीना पारकर को आपा कहा जाता था। श्रद्धा कपूर ने इसी आपा की भूमिका निभाई है। बॉलीवुड में ही नहीं, हॉलीवुड में भी गैंगस्टर और अंडरवर्ल्ड फिल्मों का लंबा रिवाज है। दाऊद पर भी हिंदी में कई फिल्में बन चुकी हैं। उसका मिथक कायम है। हाल ही में आई ‘डैडी’ में भी ‘भाई’ का साया था, हालांकि वह अरुण गवली पर आधारित थी। दाऊद की बहन पर फिल्म बनाकर उसी मिथक को भुनाने की कोशिश की गई है।

तो फिल्म का किस्सा यह है कि ‘भाई’ सिद्धांत कपूर की बहन की शादी एक भले मानुष इब्राहीम कपूर (अंकुर भाटिया) से होती है। ‘भाई’ का दबदबा तो है लेकिन उसके कई दुश्मन भी हैं। इसी कारण इब्राहीम की हत्या हो जाती है। ‘भाई’ 1993 के दंगों के बाद दुबई भाग गया है। अब हसीना क्या करें? क्या वह लगातार सांसत में रहे या खुद उसी राह पर चले जिसपर उसका ‘भाई’ चला था और उसका आतंक पैदा हो गया था। पर क्या वो ऐसा कर पाएगी? अपराध और अंडरवर्ल्ड की दुनिया में ‘भाई’ की बहन यानी आपा की हुकूमत कायम हो पाएगी? एक औरत क्या अंडरवर्ल्ड के चक्रव्यूह में खुद को बचा पाएगी? इसी पर है पूरी फिल्म। फिल्म में एक अच्छी बात तो श्रद्धा कपूर का अभिनय है।

वह एक ऐसी उम्रदराज औरत के रूप में उभरती हैं, जिसका अपना रौब है। जो हालात के कारण सहमी हुई भी है लेकिन उसके अंदर कई तरह के संशय भी हैं। निर्देशक ने एक अच्छा काम यह किया है कि अपराध जगत या हसीना पारकर का किसी तरह का महिमामंडन नहीं किया है। लेकिन कई कमजोरियां भी हैं। एक तो मुंबई के 1993 वाले दंगों के साथ समय का जो तालमेल होना चाहिए, वह नहीं है। तीस साल की कहानी को आप बिना एक समय तालिका के नहीं दिखा सकते हैं। फिर फिल्म में कुछ हत्याएं ऐसी दिखाई हैं, जिनमें यह साफ नहीं होता कि हत्या किसने कराई है। हां, वकीलों की भूमिका में राजेश तेलंग और प्रियंका सेतिया प्रभावित करते हैं। हालांकि बॉलीवुड के ज्यादातर अदालती दृश्यों में बेमेलपन रहता है, जो यहां भी है। सिद्धांत कपूर भी ‘भाई’ के रूप में खास असर नहीं छोड़ पाते। लेकिन निर्देशक के सामने परेशानी शायद यह थी कि ‘भाई’ को ज्यादा दमदार दिखा देते तो बहन दब जाती। फिर भी एक संतुलन तो होना चाहिए था, जो नहीं हुआ।