प्रेम से पहले विवाहेत्तर प्रेम, फिर प्रेम और हत्या और अंत में हत्या छुपाने की कोशिश- संक्षेप में यही है ‘हसीन दिलरुबा’ का सारांश। सवा दो घंटे की ये फिल्म थाने में हीरोइन तापसी पन्नू (जिन्होंने रानी कश्यप का किरदार निभाया है) से हत्या के सिलसिले में पूछताछ के वाकये से शुरू होती है और फ्लैशबैक के सहारे आगे बढ़ती है। पूछताछ इस बात पर कि क्या रानी ने पति रिशु (विक्रांत मैसी) की हत्या की।

पुलिस को शक है रानी ने प्रेमी नील (हर्षवर्धन राणे) के चलते पति को मारा। क्या रानी ने सचमुच ऐसा किया या सिर्फ पुलिस शक के बिना पर उसको अपराधी मानती है। इसी के इर्दगिर्द पूरी फिल्म घूमती है। पर इस चक्कर में ये न तो ठीक-ठीक अपराध कथा बन पाई है और न प्रेमकथा। दोनों किनारों के बीच झूलती ये अंत की ओर बढ़ते हुए दर्शक को न इधर का छोड़ती है और न उधर का। नेटफ्लिक्स पर आई ये फिल्म तापसी पन्नू की वजह से रिलीज होने के बाद से चर्चा मे रही थी। लेकिन अब तो उनको भी आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है।

इस पर उनतीस साल पहले आई हॉलीवुड फिल्म ‘बेसिक इंस्टिंक्ट’ का असर इस मायने में है कि उसमें भी एक लेखिका और हीरोइन अपने उपन्यास में हत्या के सुराग छोड़ती है। शैरोन स्टोन ने इस लेखिका का किरदार निभाया था। ‘हसीन दिलरुबा’ में भी हत्या की योजना के पीछे दिनेश पंडित नाम के अपराध कथाकार का लेखन है। रानी कश्यप खुद अपराध कथा नहीं लिखती लेकिन वह दिनेश पंडित के लेखन की दीवानी है। लेकिन क्या उसने हत्या की और की तो किसकी- इसका पता आखिर में चलता है।

फिल्म में हर्ष वर्धन राणे एक खलनायक के रूप मे अवतरित हुए हैं मगर ये खलनायकी चिड़ीमार किस्म की है। और जहां तक विक्रम मैसी का सवाल है नायक बनने की उनकी क्षमता है ही नहीं, कम से कम ये फिल्म यही बताती है। ज्यादातर लम्हों में उनके चेहरे पर भावना दिखती ही नहीं। तापसी पन्नू शुरू में स्मार्ट और बिंदास हैं पर जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है वो महिला देवदास की तरह हो जाती हैं।

फिल्म में इसकी लेखिका कनिका ढिल्लों का नाम अहम तरीके से आता। उन्होंने ‘मनमर्जियां’ और ‘जजमेंटल है क्या’ जैसी फिल्में पहले भी लिखी हैं जो थोड़ी सी चर्चित रही हैं। ‘हसीन दिलरुबा’ भी ‘थोड़ी सी’ वाली श्रेणी में रहेगी। फिल्म में तापसी पन्नू, हर्षवर्धन राणे, विक्रांत मैसी, आदित्य श्रीवास्तव ने काम किया है।
फिल्म के निर्देशक- विनील मैथ्यू हैं।