‘मुगले आजम’ 1946 में बननी शुरू हुई थी, तो इसमें पैसा लगा रहे थे शिराज अली हकीम, जो देश के बंटवारे के बाद 1947 में पाकिस्तान चले गए थे, यह कह कर कि शापूरजी पालोनजी इस फिल्म में पैसा लगा सकते हैं। फिल्म की शूटिंग बंद पड़ी थी। 1949 में अकबर की भूमिका कर रहे चंद्रमोहन का निधन हो गया और अनारकली बनीं नरगिस को राज कपूर अपने साथ ‘हलचल’ में काम करने के लिए खींच ले गए।
‘मुगले आजम’ में सलीम-अनारकली के इश्क से ईर्ष्या करने वाली सौंदर्यवती बहार की भूमिका मीना शौरी को सौंपा जाना तय था, क्योंकि उनके फोटो जबरदस्त आए थे और के आसिफ परेशान थे कि इससे सुंदर अनारकली वे कहां से लाएंगे। बावजूद इसके ‘मुगले आजम’ के निर्देशक के आसिफ अभिनेत्री निगार सुलताना पर लट््टू हो गए, जिन्होंने बहार की भूमिका ठुकरा दी थी। आखिर आसिफ ने उन्हें बहार बनाने का दूसरा रास्ता अपनाया और निगार से निकाह कर लिया, सिर्फ उन्हें फिल्म में बहार बनाने के लिए। फाइनेंसर मिल नहीं रहा था, तो सब कुछ ठप था। सुरैया को अनारकली बनाने के बारे में सोचा जा रहा था। आखिर 1950 में यह तय हुआ कि फिल्म में शापूरजी पालोनजी पैसा लगाएंगे। ऐसे में एक दिन आसिफ ने मशहूर नर्तक गोपीकृष्ण से कहा कि वे जाएं और पूछे कि क्या मधुबाला ‘मुगले आजम’ में काम करने के लिए तैयार होगी। दरअसल गोपीकृष्ण की मौसी धन्नो यानी सितारा देवी ने के आसिफ से निकाह किया था।

गोपीकृष्ण एक मारवाड़ी कारोबारी राधाकृष्ण सौंथालिया की तीसरी बीवी की संतान थे। 15 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते उन्होंने नृत्य का दुनिया में अपना मकाम बना लिया था। वह पचास रुपए में लोगों के यहां शादी ब्याह में नाचते थे। इसमें से पांच रुपए पेटी और पांच रुपए तबले वाले को मिलते थे। बाकी 40 रुपए उनके नाना रख लेते थे। गोपीकृष्ण 50 रुपए से शुरू हो कर 500 रुपए तक पहुंच गए तो किस्मत आजमाने मुंबई आ गए थे। वह के आसिफ और सितारा देवी के साथ उनके घर में ही रहते थे।
आसिफ ने गोपीकृष्ण को इसलिए भी चुना था क्योंकि फिल्मजगत में गोपीकृष्ण अकेले मर्द थे, जिनका मधुबाला के घर में बेखटके प्रवेश होता था। वजह यह थी कि गोपीकृष्ण और मधु ने फिल्मों में बाल कलाकार के रूप में साथ काम किया था। मधुबाला के पिता अताउल्लाह खान बहुत गरममिजाज आदमी थे। जब गोपीकृष्ण ने आसिफ का संदेश उन्हें सुनाया तो वे उखड़ गए और गोपीकृष्ण को डपटते हुए कहा, ‘क्या मजाक बना रखा है। इत्ते से लौंडे को भेज दिया है मधु जैसी स्टार को फिल्म में लेने के लिए। जाओ, कहो उनसे कि मधुबाला को लेना है तो वे खुद आएं।’ गोपीकृष्ण भी ‘मुगले आजम’ से जुड़े थे। फिल्म के नृत्य निर्देशक तो लच्छू महाराज थे, मगर गोपीकृष्ण को सौ कनीजों को नृत्य सिखाने का काम सौंपा गया था, जिनमें कई नृत्यांगनाएं बाद में अभिनेत्रियां बनीं।

