गिरिजाशंकर

हर साल की तरह इस साल भी ऐतिहासिक नगरी खजुराहो में अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव का आयोजन हुआ। जिसमें भारतीय फिल्मों के अलावा लगभग एक दर्जन से अधिक देशों के फिल्मों का प्रदर्शन हुआ यह था। खजुराहो अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव जो पिछले आठ वर्षों से नियमित रूप से आयोजित हो रहा है।

इस महोत्सव के सूत्रधार हैं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से निकले फिल्म कलाकार राजा बुंदेला और सुष्मिता मुकर्जी। इस फिल्म महोत्सव की भव्यता परंपरागत फिल्म महोत्सव से बिलकुल अलहदा होती है। फिल्मी सितारे तो दुनिया भर से यहां आते हैं लेकिन बड़े-बड़े सिनेमाघरों के बजाय यहां फिल्मों का प्रदर्शन झोपड़ियों में होता है जिन्हें ‘टपरा टाकीज’ कहा जाता है।

ऐसे एक दर्जन से अधिक टपरा टाकीज खजुराहो शहर तथा इसके आसपास के गांवों में बनाए जाते हैं जहां दिन भर फिल्म प्रदर्शन, फिल्मों पर चर्चा फिल्म निर्माण तकनीक पर प्रशिक्षण, संगोष्ठी, कार्यशाला चलती रहती है और दर्शकों में बड़ी संख्या उन ग्रामीणों की होती है जिसमें से कई तो ऐसे होते हैं जो पहली बार फिल्म देख रहे हों। खजुराहो में स्थित हिन्दू व जैन मंदिर यूनेस्को हेरिटेज साइट में शामिल हैं। यहां के मंदिर समूह दुनिया भर में प्रसिद्ध है तथा दुनिया भर से पर्यटक इन्हें देखने आते हैं लेकिन पूरे देश में यह एकमात्र ऐसा शहर होगा जहां आज भी कोई सिनेमा हाल नहीं है।

महोत्सव के सूत्रधार राजा बुंदेला कहते हैं कि कोई सिनेमा हाल नहीं होने से इस इलाके में फिल्में पहुंची ही नहीं। यहां फिल्म महोत्सव आयोजित करने की एक वजह तो यह थी लेकिन इससे बड़ी वजह बुंदेलखंड इलाके का पिछड़ापन रहा है जिसे दूर करने की कोशिश सरकारें करती रही है। विरासत के मंदिर समूहों के चलते खजुराहो की अपनी ख्याति और आकर्षण तो सदैव रहा है।

इसी के चलते यहां फिल्म महोत्सव आयोजित कर बुंदेलखंड इलाके के ग्रामीणों को स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करते हुए सांस्कृतिक स्तर पर उनमें जागरूकता पैदा करने की कोशिश की जाती है। इसीलिए इस फिल्म महोत्सव का स्वरूप थोड़ा अलग है। वैसे तो महोत्सव केवल फिल्मी सितारों तक सीमित होकर रह जाता है। मगर खजुराहो फिल्म महोत्सव इनसे अलग ग्रामीणों को समर्पित रहता है।

खजुराहो फिल्म महोत्सव के जरिए फिल्मों को दूर गांवों तक पहुंचाने की कोशिश की जाती है। दिन भर फिल्मों के प्रदर्शन के बाद हर शाम सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जिसमें क्षेत्रीय लोककला के साथ ही अन्य राज्यों की लोककलाओं का प्रदर्शन होता है जिसमें हजारों दर्शकों की भागीदारी होती है।इस वर्ष बुंदेलखंड के अलावा जम्मू-कष्मीर, हरियाणा, कर्नाटक, राजस्थान, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश आदि राज्यों के लोक कलाकारों के दल ने लोककलाओं की प्रस्तुति दी।

इस फिल्म समारोह में सौ से अधिक वृत्तचित्र व लघु फिल्मों का प्रदर्शन किया गया जिनका निर्माण मध्यप्रदेश व अन्य राज्यों के नौजवानों ने किया था। सीमित साधनों में निर्मित ये फिल्में अपने कथ्य और प्रस्तुतिकरण से नई संभावनाओं को जगाती हैं। इस वर्ष डा द्विवेदी के अलावा सीमा विश्वास, पुनीत इस्सर, चंकी पांडे, यशपाल शर्मा तथा थिएटर से मकरंद देशपांडे, अरविंद गौड़ आदि ने हिस्सा लिया। इस महोत्सव में जर्मन से फिल्म अभिनेत्री विल्मा एलिस तथा फ्रांस की मरीने बोर्गो की महत्त्वपूर्ण उपस्थिति रही।