सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। अयोध्या मामले में फैसला सुनाने और राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करने वाली बेंच में वे अकेले अल्पसंख्यक न्यायाधीश थे। जस्टिस नजीर अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच का हिस्सा रहे। अयोध्या मामलो पर यह उनका अंतिम फैसला था।

जस्टिस एस अब्दुल नजीर पिछले 4 जनवरी को रिटायर हो हुए। अब उनको आध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किए जाने पर विरोध शुरू हो गया है। समाजवादी पार्टी, एआईएमआईएम और तृणमूल कांग्रेस ने नाराजगी जाहिर की हैं। वहीं सोशल मीडिया पर काफी विरोध देखने को मिल रहा है। इसी बीच फिल्ममेकर विनोद कापड़ी ने भी इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है।

विनोद कापड़ी ने ट्वीट कर क्या लिखा

जाने माने फिल्ममेकर विनोद कापड़ी ने एक ट्वीट को रीट्वीट किया है। जिसमें लिखा है कि ‘जस्टिस अब्दुल एस नज़ीर पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए। जाते जाते नोटबंदी को सही ठहराने का फ़ैसला किया। अयोध्या का फैसला करने वाली बेंच में थे। आज राष्ट्रपति ने उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया है।’

इस पर फिल्ममेकर ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए लिखा कि ‘शर्मनाक है ये सब। रिटायरमेंट के एक महीने बाद ही मलाई वाली नौकरी हथिया ली। खुलेआम बेशर्मी की इंतिहा है ये। जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस नज़ीर जैसे लोग न्यायपालिका और लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं।’

केआरके ने भी दी प्रतिक्रिया

वहीं बॉलीवुड एक्टर और फिल्म क्रिटिक केआरके ने भी इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। कमाल राशिद खान ने ट्वीट करते हुए लिखा कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अब्दुल नज़ीर को आंध्र प्रदेश के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने तीन तलाक, बाबरी मस्जिद जैसे तमाम मामलों में सरकार की मदद की है।

कौन हैं जस्टिस अब्दुल नजीर

बता दें कि जस्टिस नजीर का जन्म 5 जनवरी, 1958 को कर्नाटक दक्षिण कन्नड़ जिले के बेलुवई में हुआ था। उन्होंने एसडीएम लॉ कॉलेज, मंगलुरु से एलएलबी की डिग्री पूरी करने के बाद 18 फरवरी, 1983 को एक वकील के रूप में वकालत शुरू की थी। जस्टिस ने कर्नाटक हाई कोर्ट में प्रैक्टिस की और फिर साल 2003 में उन्हें अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। वह 24 सितंबर, 2004 को स्थायी न्यायाधीश बने और 17 फरवरी, 2017 को सर्वोच्च न्यायालय में प्रमोट हुए। वह ट्रिपल तालक, निजता का अधिकार, अयोध्या मामला और हाल ही में नोटबंदी पर केंद्र के 2016 के फैसले और सांसदों की अभिव्यक्ति की आजादी के फैंसलों का हिस्सा रहे।