भले बादल चांद को छिपा ले लेकिन उसे महसूस तो किया जा सकता है। और बारिश के वक्त भी हाथ पर बूंदों के पड़ने से चांद का खयाल मन में आ सकता है। बात को आगे बढ़ाएं तो किसी की जिंदगी अपराध की अंधेरी दुनिया में कुछ वक्त के लिए फंस सकती है फिर भी मन के भीतर का उजाला बना रह सकता है। मन के भीतर बसा उजाला ही वह चांद है जिसे बादल कुछ वक्त के लिए हमारी नजरों से दूर कर देते हैं। ईरानी मूल के अंतरराष्ट्रीय फिल्मकार माजिद मजीदी की फिल्म ‘बियोंड द क्लाउड्स’ यही एहसास कराती है। हालांकि यह उनकी अन्य फिल्मों की तरह जादुई है या नहीं, इस पर बहस और विवाद होगा, पर इस बात के इनकार नहीं किया जा सकता कि यह एक नए मिजाज की फिल्म है। यानी बॉलीवुड में बनने वाली सामान्य फिल्मों से कुछ अलग। यहां बॉलीवुड और ईरानी फिल्म संस्कृति का मेल हुआ है।
फिल्म में एक भाई और एक बहन है। भाई आमिर (ईशान खट्टर) मां-बाप के नहीं रहने के बाद नशे यानी ड्रग्स के धंधे में चला जाता है। बहन तारा (मालविका मोहनम) भी अकेली है। हालांकि शादीशुदा थी लेकिन पति से नहीं बनी। वह मुंबई के धोबीघाट पर काम करती है। एक दिन भाई पुलिस के चंगुल से बचने के लिए नशे की पुड़िया बहन के पास छोड़ जाता है और इसी वजह से हालात ऐसे बनते हैं अक्षी (गौतम घोष) नाम का एक व्यक्ति तारा के साथ बलात्कार की कोशिश करता है। बचाव में तारा उस पर प्राणघातक हमला करती है, जिसके कारण उसे जेल जाना पड़ता है। अगर अक्षी मर जाएगा तो तारा को आजीवन कारावास हो जाएगा। क्या अक्षी बचेगा? बहन बेचैन है कि सारी जिंदगी जेल में न गुजारनी पड़े। भाई आमिर तो कोशिश यही करता है कि अक्षी बचा रहे। वह अपने पैसों से उसके लिए दवाई भी खरीदता है भले ही उसके (अक्षी के) कारण तारा को जेल जाना पड़ा। क्या होगा तारा का भविष्य?
पर फिल्म सिर्फ इन सवालों के इर्दगिर्द नहीं घूमती है। यह मानवीय रिश्ते के अन्य पहलुओं की तरफ भी जाती है। जिस जेल में तारा बंद है, वहां उसकी बगल में अपने पति की हत्या के जुर्म में लगातार बीमार रहने वाली एक औरत (तनिष्ठा चटर्जी) भी बंद है। इस औरत का एक छोटा बेटा भी है। यह औरत जब मर जाती है तो तारा उसके बेटे का सहारा बनती है और ढांढ़स बंधाती है। उधर अक्षी के परिवार की एक औरत और दो बच्चियां अस्पताल में उसे देखने आती है। मुंबई जैसे बड़े शहर में वे बेसहारा हैं। आमिर उनकी मदद करता है और अपने घर में आश्रय देता है। अक्षी के परिवार के सदस्यों और आमिर के बीच एक अनाम रिश्ता पनपता है। मजीदी के कहानी कहने का ढंग एकदम अपना है। वे शब्दों से अधिक दृश्यों का सहारा लेते हैं। अक्षी के परिवार के तीनों सदस्यों- बूढ़ी औरत और दोनों बच्चियों का पूरा प्रकरण जिस तरह से दिखाया गया है वह मानवीयता के उस पहलू को उजागर करता है जिसमें कई तरह के पेचोखम हैं- आदमी उस व्यक्ति के परिवार से भावनात्मक रिश्ता बना लेता है, जिसे वह दुश्मन मानता है।
ईशान खट्टर और मालविका मोहनम- दोनों ही अपनी छाप छोड़ते हैं। शाहिद कपूर के सौतेले छोटे भाई ईशान खट्टर के बारे में यह जरूर कहा जाएगा कि उनके भीतर असीम संभावनाएं हैं। आमिर ड्रग्स के धंधे में है लेकिन उसके भीतर मासूमियत बरकरार है। वह अपराध की दुनिया में मजबूरी में जाता है कि लेकिन उसका हिस्सा नहीं बनता। फिल्म अपराध के साथ साथ जेल के कई अंदरूनी पक्षों को सामने लाती है। मजीदी की इस फिल्म को कई तरह से सराहा और समझा जा सकता है।
निर्देशक- माजिद मजीदी
कलाकार- ईशान खट्टर, मालविका मोहनन, गौतम घोष, तनिष्ठा चटर्जी