निर्देशक-भरत जैन।

कलाकार-प्रशांत गुप्ता, अश्रुत जैन, गौरव पासवाला, गौरव कोठारो, दिशा कपूर, नीहारिका रायजादा।

 

आपको गलतफहमी न हो इसलिए पहले ही बता दिया जाए कि यह कोई अंकगणित की पहेली नहीं है बल्कि एक फीचर फिल्म है। हां, यह दूसरी फिल्मों से कुछ अलग तरह की है और इसे देखने के दौरान दर्शक को लंबे समय तो यह लग सकता है कि वह कोई डाक्यूमेंट्री फिल्म देख रहा है। बल्कि मध्यांतर तक यही लगता है और उसके बाद लगता है सामने एक हॉरर फिल्म है। ह़ॉलीवुड में फाउंड फुटेज (कैमरा लगाकर छोड़ देने और उस दौरान जो कैमरे पर आता है उसे संपादित कर फिल्म बनाने की विधा) तकनीक विकसित हुई जिसका उदाहरण ‘पारानारमल एक्टिविटी’ कड़ी की कई फिल्में हैं। यह भी उसी तरह की फिल्म है। इसमें छह दोस्त हैं- सिद्धार्थ (प्रशांत गुप्ता), हर्ष (गौरव कोठारी), राजा (गौरव पासवाला), भानु (अश्रुत जैन), प्रिया (नीहारिका रायजादा) और सुहाना (दिशा कपूर)। सभी छह दोस्त दक्षिण भारत के एक जंगल में ट्रैकिंग पर निकलते हैं और आखिर में सिर्फ एक बचता है। जंगल में कोई रहस्यमय ताकत है जो इन छहों को पहले भयभीत करती है और फिर मारती है या गायब करती है। हां, इतना जरूर होता है कि इसके कलाकार पर्दे पर भयभीत दिखते हैं। लेकिन उन्हें देखकर दर्शक भयभीय नहीं हो पाता। इस तरह बतौर हॉरर फिल्म यह असफल है।
यह फिल्म कन्नड़ में पहले बन चुकी है और हिंदी में उसी की कहानी को अन्य अभिनेताओं के साथ फिर से दिखाया गया है। चूंकि फिल्म के शुरू में ही यह दिखा दिया गया है कि छह दोस्तों में कौन बचता है इसलिए दर्शक को अंत जानने में दिलचस्पी नहीं रह जाती है। इसी कमजोरी की वजह से एक रोचक बन सकती फिल्म शुरू में ही दम तोड़ देती है। लेकिन जो कम पैसे में फिल्म बनाना चाहते हैं वे इससे बहुत कुछ सीख सकते हैं। यह सिर्फ तीस लाख में बनी है और इसमें कोई गाना नहीं है।