गिरिजाशंकर

मध्य प्रदेश का एक शहर सीधी, जहां हवाई जहाज तो क्या रेलगाड़ी तक नहीं जाती। वहां लगातार पांच वर्षों से फिल्म समारोह का आयोजन और उसमें फिल्मी सितारों का शिरकत करना विस्मयकारी लगता है। पिछले कुछ वर्षों से देश के छोटे शहरों में भी फिल्म समारोहों का आयोजन होने लगा है और अच्छी फिल्में गांव-कस्बों तक पहुंचने लगी है। सत्तर के दशक में फिल्म सोसायटी का चलन शुरू हुआ था, जिसके माध्यम से कई शहरों में अच्छी फिल्मों का प्रदर्शन होता था। अब इसका चलन लगभग खत्म हो चला है और इसका स्थान फिल्म समारोह लेने लगा है।

सीधी के साथ अच्छी बात है कि फिल्म समारोह के आयोजन के साथ ही फिल्म सोसायटी संस्कृति को भी जीवित किया गया है और हर महीने स्कूली बच्चों को फिल्में दिखाई जाती है। पांच साल पहले फिल्म एंड ड्रामेटिक आर्ट में उपाधि लिए प्रवीण सिंह चौहान ने अपने गृह नगर सीधी में फिल्म समारोह आयोजित करने की परिकल्पना की और सीमित साधनों के साथ इस आयोजन की शुरुआत हुई।

प्रवीण की इस पहल में बाद में नौजवान रंगकर्मी नीरज कुंदेर, रोशनी मिश्रा के साथ उनकी पूरी टीम जुड़ गई और यह आयोजन साल दर साल भव्य होता गया। इस साल के फिल्म समारोह में तीन सौ से अधिक वृत्तचित्र व लघु फिल्मों की प्रविष्टियां आईं, जिनमें से 70 फिल्मों का चयन कर तीन दिनों तक इनका प्रदर्शन किया गया। इस आयोजन में बड़ी संख्या में दर्शकों ने भागीदारी की जिसमें क्षेत्र के साहित्य व थियेटर से जुड़े कई बड़े नाम भी शामिल थे।

फिल्म निर्माताओं से संबंधित विषयों पर कार्यशाला आयोजित की गई तथा बच्चों की सहभागिता से इस दौरान एक लघु फिल्म का निर्माण भी किया गया जिसका प्रदर्शन समारोह में किया गया। आज के दौर में सिनेमा और थियेटर सबसे करीब चल रहे हैं। दर्जनों थियेटर कलाकारों ने सिनेमा का व्याकरण ही नया गढ़ दिया है। वे कलाकार सिनेमा भी कर रहे हैं और साथ-साथ मंच पर भी सक्रिय रहते हुए थियेटर कर रहे हैं।

सिनेमा और थियेटर की यह नजदीकी छोटे शहरों में आयोजित होने वाले फिल्म समारोहों में भी देखा जा रहा है। सीधी हो आजमगढ़ या खजुराहो या अन्य कोई शहर, फिल्म समारोहों का आयोजन वे नौजवान ही कर रहे हैं जो थियेटर में सक्रिय हैं। यह भी अच्छी बात है कि इन फिल्म समारोहों में थियेटर से फिल्मों में गए कलाकारों की लगातार भागीदारी हो रही है।

इन फिल्म समारोहों में प्रदर्शित फिल्मों को देखने से पता चलता है कि सीमित साधनों के बाद भी छोटे-छोटे शहरों के नौजवान बड़ी संख्या में फिल्म बनाने में लगे हुए हैं। इन फिल्मों में विषय का विविधता के साथ ही तकनीकी दक्षता और कल्पनाशीलता की अभिव्यक्ति मिलती है। फिल्म समारोहों में इन फिल्मकारों को अपनी फिल्में प्रदर्शित करने का मंच तो मिल जाता है लेकिन अधिक दर्शकों तक इन फिल्मों के पहुंचने की कोई सूरत नहीं उभरती है। अब इस दिशा में काम करने की जरूरत है कि फिल्म समारोहों के साथ फिल्म बाजारों का भी आयोजन हो ताकि इन फिल्मों को व्यावसायिक आधार मिल सके और फिल्मों को अधिकाधिक दर्शकों तक पहुंचने का मौका मिल सके।