आरती सक्सेना

सवाल : अक्षय आप निर्देशक शंकर की फिल्म 2.0 में एकदम भयानक नजर आ रहे हैं। अपने रोल के बारे में कुछ बताएं?
मैं इस फिल्म में नकारात्मक किरदार में हूं जो खतरनाक और डरावना है। इस फिल्म का लुक देखेंगे तो डर जाएंगे। मैं वैज्ञानिक डॉक्टर रिचर्ड का किरदार निभा रहा हूं जिसमें एक बुरी आत्मा बसती है और जिसका मकसद सिर्फ विनाश करना ही है।
सवाल : आपकी ज्यादातर फिल्मों में सामाजिक संदेश भी होता है। क्या इसमें भी कुछ ऐसा है?
’हां, बिल्कुल। बस इतना ही कहूंगा कि हम जो पूरी तरह मोबाइल के आदी होते जा रहे हैं हम जो धीरे धीरे विज्ञान और प्रौद्योगिकी के गुलाम होते जा रहे हैं वह हमारे लिए काफी नुकसानदेह हो सकता है। लिहाजा इस बारे में एक सामाजिक संदेश है।

सवाल : 2.0 में आप पहली बार रजनीकांत के साथ काम कर रहे हैंं। उनके साथ आपका काम करने का अनुभव कैसा रहा?
रजनी सर को मैं पहले पंसद करता था, लेकिन जब मैंने उनके साथ काम शुरू किया तो मैं उनका प्रशंसक हो गया। उनका नाम इंडस्ट्री में हर कोई सम्मान से लेता है। दक्षिण में तो रजनी सर को लोग भगवान मानते हैं। मुझे लगा ही नहीं कि मैं इतने बड़े कलाकार के साथ काम कर रहा हूं । मुझे काफी कुछ सीखने को भी मिला। मैं तो उनका फैन हो गया।

सवाल : आपने अब तक कई सारे नए-पुराने निर्देशकों के साथ काम किया है, लेकिन सुना है कि आप 2.0 के निर्देशक शंंकर पर एकदम फिदा हो गए हैं?
सीधे सादे से दिखने वाले निर्देशक शंकर मेरे लिए किसी स्कूल के प्राचार्य की तरह ही थे। मंैने अपने 28 साल के अभिनय करिअर में वह सब कुछ नहीं सीखा जो मैने शंकर सर की फिल्म की शूटिंग के दौरान सीखा। मैं शंंकर सर को धन्यवाद देना चाहूंगा कि उन्होंने मुझे अपनी इतनी बेहतरीन फिल्म में काम करने का मौका दिया।

सवाल : इस फिल्म में किरदार के मेकअप में काफी वक्त लगता था और इस मेकअप में शूटिंग करने में आपको तकलीफ भी बहुत हुई?
हां, जब हम कुछ अच्छा काम करते हैं तो परेशानियां पेश आती ही हैं। जैसे कि मेरा यह गेटअप थर्ड डिग्री के टार्चर के समान था क्योंकि इसके लिए मुझे पहले तो साढ़े तीन घंटे का समय लगता था। इसमें मेरे चेहरे पर एक साथ दो तीन लोग काम करते थे। इसको मैं थर्ड डिग्री का टार्चर इस लिए कह रहा हूं क्योंकि मुझे पूरा दिन न सिर्फ इस मेकअप में रहना पड़ता था बल्कि इसकी वजह से मेरा पसीना भी मेरे मेकअप में ही समाजाता था। इससे जब मैं मेकअप उतारता था तो इतनी ज्यादा बदबू आती थी मेरे पसीने की कि मेरा सांस लेना मुश्किल हो जाता था। लेकिन जैसा कि कहते हैं कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है, वैसे ही मेरा कहना है कुछ पाने के लिए बहुत कुछ सहना पड़ता है।

सवाल : पिछले कुछ सालों से आप काफी अलग-अलग विषयों पर काम कर रहे हैं। क्या ऐसे में आपको विफलता का डर नहीं सताता?
नहीं। क्योंकि मेरा मानना है कि अगर आप एक ही जैसी चीजे देंगे तो फ्लाप होने का डर ज्यादा होता है। दर्शक भी आपके अभिनय में भिन्नता चाहते हैं। तभी तो पेड मेन हो या टायलेट एक प्रेम कथा जैसी फिल्मों को भी दर्शकों ने स्वीकारा। फिर मेरा तो मानना है हर इंसान को अपने हिसाब से ही काम करना चाहिए। जो काम आप नहीं कर सकते उसको बेवजह करके उस काम को खराब नहीं करना चाहिए।

सवाल : आपको अभिनय करते हुए 28 साल हो गए। ऐसे में अगर आप से कहा जाए कि आपकी निगाह में अभिनय क्या है तो आप क्या जवाब देंगे?
जब मैंने अभिनय करिअर की शुरुआत की थी तब मेरे पास पैसे नहीं थे कि मैं एक्टिंग क्लास में जा सकूं। एक बार मैं चर्चगेट गया जहां एक किताब थी जिसमें लिखा था हाउ टू एक्ट। जब मैंने उस किताब का दाम देखा तो उतने पैसे मेरी जेब में नहीं थे। लिहाजा मैंने उस किताब का पहला पन्ना पलटा तो उसमें लिखा था बी योर सेल्फ। यानी अगर आप अच्छा एक्टर बनना चाहते हैं तो जैसे हैं वैसे ही नजर आओ। मैंने उस किताब की यही लाइन गाठ बांध ली और अभिनय का सफर शुरू किया। आज इतने सालों बाद मैं अभिनय को लेकर महसूस करता हूं कि अभिनय जीवन का एक आईना है जिसमें हम कलाकार हर रंग और हर रूप भरते हैं। दूसरे को अपने जरिए जीते है।