नासिर हुसैन (16 नवंबर, 1926-13 मार्च 2002)
‘तीसरी मंजिल’ (1966) कई मानो में महत्त्वपूर्ण फिल्म थी। दरअसल इसे निर्माता नासिर हुसैन खुद निर्देशित कर रहे थे और हीरो थे देव आनंद। देव के लिए हुसैन ‘मुनीमजी’ (1955) और ‘पेइंग गेस्ट’ (1957) लिख चुके थे। 1957 में नासिर ‘तुमसा नहीं देखा’ से निर्देशक और 1961 में ‘जब प्यार किसी से होता’ है से निर्माता बन गए थे। ‘तीसरी मंजिल’ के साथ हुसैन ने अपनी कंपनी में एक और फिल्म ‘बहारों के सपने’ (1967) शुरू की थी, जिसे वह देव के छोटे भाई विजय आनंद से बनवा रहे थे। मगर एक वाकए से उलटफेर हो गया। विजय आनंद वाली फिल्म नासिर हुसैन ने और नासिर हुसैन वाली फिल्म विजय आनंद ने निर्देशित की।
अभिनेत्री साधना की सगाई में देव आनंद किसी से कह रहे थे,‘नासिर खुद रंगीन फिल्म ‘तीसरी मंजिल’ डाइरेक्ट कर रहे हैं और मेरे भाई गोल्डी (विजय आनंद) से ब्लैक एंड वाइट फिल्म ‘बहारों के सपने’ बनवा रहे हैं, जिसमें राजेश खन्ना नाम का कोई नया लड़का काम कर रहा है।’ देव की बात नासिर को चुभ गई। अगले दिन उन्होंने विजय आनंद को बुलाया और कहा कि रंगीन फिल्म ‘तीसरी मंजिल’ तुम डाइरेक्ट करोगे। इसके हीरो देव आनंद नहीं, शम्मी कपूर होंगे। ब्लैक एंड वाइट फिल्म ‘बहारों के सपने’ जिसे तुम निर्देशित कर रहे थे, उसे मैं खुद निर्देशित करूंगा। इस तरह फिल्मों की अदला बदली हुई।
विजय आनंद को अपने भाई देव आनंद के लिए चार फिल्में (नौ दो ग्यारह, काला बाजार, तेरे घर के सामने और गाइड) बनाने के बाद पहली बार किसी बाहर के निर्माता की फिल्म मिल रही थी। उन्हें निर्माता नासिर ने ‘बहारों के सपने’ निर्देशित करने के लिए बुलाया था, जिसमें आशा पारेख और नए अभिनेता राजेश खन्ना थे। आशा पारेख को बतौर हीरोइन नासिर ने ही ‘दिल देके देखो’ (1959) में पहला मौका दिया था।
नासिर और शम्मी कपूर की खूब जम रही थी। उनकी ‘तीसरी मंजिल’ से शम्मी कपूर सुपर हिट हीरो बन गए थे। यह संयोग ही था कि 19 फिल्में फ्लॉप होने के बाद शम्मी कपूर की पहली सुपर हिट फिल्म नासिर हुसैन की ‘तुमसा नहीं देखा’ (1957) थी। दरअसल फिल्मिस्तान के मालिक तोलाराम जालान ने हीरोइन अमिता को आगे बढ़ाने के लिए ‘तुमसा नहीं देखा’ बनाई थी, मगर अमिता तो वहीं रह गई इस फिल्म से आगे बढ़ गए शम्मी कपूर।
‘तीसरी मंजिल’ से देव आनंद के हटने और शम्मी कपूर के आने के बाद हुसैन ने संगीतकार आरडी बर्मन को शम्मी कपूर के पास भेजा कि जाकर उन्हें धुनें सुना दें। शंकर-जयकिशन के भक्त शम्मी कपूर को आरडी बर्मन ने पहली धुन एक नेपाली लोकगीत की सुनाई। इसे सुनाना शुरू किया ही था कि उसी धुन को आगे बढ़ाते हुए शम्मी कपूर ने कहा कि मुझे पता है यह नेपाली धुन है। यह तो मैंने शंकर (जयकिशन) को दे दी है। तुम दूसरी धुन सुनाओ। आरडी बर्मन शम्मी कपूर को देखते रह गए कि उनकी संगीत की जानकारी कितनी फैली हुई है। बहरहाल ‘तीसरी मंजिल’ बनी। ‘ओ मेरे सोना रे सोना रे…’, ‘आजा आजा मैं हूं प्यार तेरा…’, ‘दीवाना मुझसा नहीं…’ जैसे गानों के दम पर फिल्म बॉक्स ऑफिस पर चल निकली। यह आरडी बर्मन की पहली हिट फिल्म थी।

