गणेशनंदन तिवारी

धनतेरस के दिन पैदा हुई धनलक्ष्मी को लाड़ से सभी धन्नो कहते थे। वह पंडित सुखदेव महाराज की अलकनंदा और तारा के बाद सबसे छोटी बेटी थी। पंडितजी संगीत-कथा और गायन करते थे और नृत्य सिखाते थे। उन्होंने जब अपनी बेटियों को कथक सिखाना शुरू किया तो रिश्तेदार और करीबियों ने खूब-भला बुरा कहा कि ब्राह्मण होकर नाचने-गाने का काम करते हो। कथक तब कोठों और तवायफों की शान बना हुआ था। सो महाराज का हुक्का पानी बंद कर दिया गया। सुखदेव महाराज ने इसे समय की बलिहारी कहा और मुहल्ला ही छोड़ दिया।

अलकनंदा और तारा को नाचते देख धन्नो के बदन में अपने आप कथक की ततकार और तोड़े घूमने लगे थे। सात-आठ साल की होते-होते तो वह फिरकनी की तरह ऐसे घूमती थी कि देखने वालों को चक्कर आ जाएं। 11 साल की थी तो गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के सामने अपने हुनर का प्रदर्शन किया। बाग-बाग हुए गुरुदेव ने कहा कि तुम तो नृत्य साम्राज्ञी हो। कथक क्वीन बन धन्नो को लगा कि किसी ने उन्हें भारत रत्न दे दिया। इस हौसलाअफजाई के बाद धन्नो की आंखों में नाच का खुमार ऐसा चढ़ा कि जीवन भर नहीं उतरा। तीन तीन शौहर हुए पर कथक ताउम्र जीवनसाथी बना। अपने हुनर के साथ धन्नो फिल्मी दुनिया में पहुंची, तो पिता ने धन्नो को नया नाम दिया सितारा। समय के साथ सितारा ने सिनेमा और कथक दोनों में अपनी जगह बनाई। कभी गोविंदा के पिता अरुण आहूजा, तो कभी रणवीर कपूर के दादाजी पृथ्वीराज कपूर की हीरोइन बनीं। साथ ही कथक में नए कीर्तिमान बनाए।

सितारा मशहूर हीरो नाजिर अहमद की हीरोइन बनी और उनसे निकाह भी किया। नाजिर ने अपनी बंद पड़ी फिल्म कंपनी हिंद पिक्चर्स का ताला खोला, तो उसमें सितारा साझेदार बनी। चार-पांच फिल्में भी बना डालीं, जिनमें प्रोडक्शन का काम नाजिर की पहली बीवी सिकंदरा बेगम के भाई के आसिफ (जिन्होंने बाद में ‘मुगले आजम’ बनाई) को सौंप दिया। पांच फिल्में बनने के बाद सितारा को कौड़ी तक नहीं मिली और शौहर नाजिर ने एक हीरोइन स्वर्णलता से शादी कर ली। सितारा कथक के साथ अकेली रह गई। 1947 में हुए कौमी दंगों में नाजिर का मुंबई का स्टूडियो जला दिया गया, तो वह स्वर्णलता को लेकर पाकिस्तान चले गए और सितारा ने उनके साले के आसिफ से शादी कर ली।

सितारा को कुछ महीनों में आसिफ ने तलाक दे दिया। उनका दिल निगार सुल्ताना पर आ गया, जिसे वह ‘मुगले आजम’ में बहार बनाना चाहते थे। मगर निगार ने इनकार कर दिया था। तब आसिफ ने उनसे निकाह किया और बहार की भूमिका करवा कर दम लिया। सितारा कथक के साथ फिर अकेली रह गई। मगर वह आसिफ को नहीं भूलीं। आसिफ के निधन के बाद सितारा ने उनका दसवां किया। शय्यादान की ताकि आसिफ जन्नत में खटिया बिछा कर आराम कर सकें। यह अलग बात है कि ‘मुगले आजम’ बनने तक आसिफ सालों स्टूडियो में एक चटाई बिछा कर सोया करते थे। शौहरों का जीवन से जाना और हुनर के साथ जीवन बिताना सितारा की नियति थी। उनके शौहरों ने उनकी परवाह नहीं की तो सितारा ने भी उनकी परवाह नहीं की। तीसरे शौहर प्रताप बारोट (‘डॉन’ बनाने वाले चंद्रा बारोट के भाई) से उन्होंने 1958 में शादी की, जिनसे उनकी दक्षिण अफ्रीका में मुलाकात हुई थी। दोनों का एक बेटा रंजीत बारोट हुआ, जो गायक संगीतकार हैं।