युवा कथक नर्तक धीरेंद्र तिवारी ने अपनी पहचान बनाई है। वह लगभग पंद्रह सालों से गुरु पंडित राजेंद्र गंगानी के सानिध्य में कथक सीख रहे हैं। उन्होंने गुरु शमा भाटे और गुरु अदिति मंगलदास के मार्गदर्शन में कथक की बारीकियों को सीखा है। धीरेंद्र मानते हैं कि कथक नर्तकियों को नर्तकों की अपेक्षा जल्दी पहचान मिल जाती है। वहीं पुरुष कलाकारों को कुछ ज्यादा समय लगता है। कला जगत में तवज्जो पाने में नर्तकों को लगभग दस-पंद्रह साल लग ही जाते हैं। लेकिन उनकी अनवरत रियाज, लगन और मेहनत बर्बाद नहीं जाती है। दरअसल, पुरुष कलाकार की कला मुट्ठी में बंद रोशनी की तरह है, जो धीरे-धीरे फैलती है।

श्रीराम सेंटर में आयोजित ‘प्रणम्याहम नृत्य’ समारोह का आयोजन किया गया। इसमें कथक नर्तक धीरेंद्र तिवारी ने अलग-अलग गुरुओं की नृत्य रचनाओं को पेश किया। इसके पीछे उनकी मनसा अपने गुरुओं के प्रति आभार प्रकट करने की थी। समारोह का आगाज पंडित राजेंद्र गंगानी की नृत्य रचना शिवोहम से हुआ। यह अमालिया की परिकल्पना पर आधारित थी, जबकि नृत्य रचना पंडित राजेंद्र गंगानी की थी। इस नृत्य में शिव के पांच गुणों का सुंदर विवेचन, समय, गति और जगह के माध्यम से किया गया। इसमें शिव के पांच रूप का वर्णन था। पांच लयों में इस परण को पिरोया गया। शिव के आदि, मध्य और अंत यानी सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता और संहारकर्ता रूपों को भी नृत्य में दर्शाया गया।

कथक नर्तक धीरेंद्र की अगली पेशकश गुरु शमा भाटे की नृत्य रचना नंदनार थी। यह कुंभार नंदनार की जीवन पर आधारित थी। वह तिरूपांकर मंदिर में भगवान शिव के दर्शन करना चाहता है, लेकिन उसे मंदिर में प्रवेश नहीं मिलता है। भगवान शिव की सवारी नंदी से कहता है कि जैसे आपको मंदिर में प्रवेश नहीं मिला, वैसे ही मैं भी नहीं कर पाया। धीरेंद्र ने इसे कथक के जरिए पेश किया। इस तरह की परिकल्पना अन्य नृत्य शैलियों में तो देखने को खूब मिलती हैं पर कथक में ऐसे प्रयास कम ही देखने को मिलते हैं। अभिनय और कथक की तकनीकी बारीकियों के जरिए इस कथा को धीरेंद्र ने बयान किया।

इस प्रस्तुति की अंतिम परिकल्पना गुरु अदिति मंगलदास की थी। इस नृत्य परिकल्पना में अद्वैत मत की झलक थी। इसमें शिव और भक्त के संवाद को नृत्य के जरिए दर्शाया गया। शिव से भक्त कहता है कि आप के अंगों में गंगा, चंदन, भस्म, चंद्रमा, हिमालयपुत्री पार्वती विराजित हैं। ये सभी आपको शीतलता प्रदान करते हैं, जबकि मैं सांसारिक मायाजाल की तपन में तप रहा हूं। आप मेरे भीतर समा जाए और मुझे शीतलता प्रदान करिए। आत्म सो परमात्म की भावना से प्रेरित यह भाव सरस थी। धीरेंद्र ने कथक की गतियों, तिहाइयों, टुकड़ों और भाव के माध्यम से अपनी प्रस्तुति को पिरोया।