आमिर खान की फिल्म 3 इडियट्स साल 2009 में रिलीज़ हुई थी, उस वक्त इस फिल्म ने ना सिर्फ फिल्म के कलाकारों और निर्देशक को शोहरत दिलाई बल्कि राइटर चेतन भगत को भी सुर्खियों में ला दिया। यह फिल्म उनके डेब्यू नॉवेल फाइव पॉइंट समवन पर आधारित थी, जो साल 2004 में प्रकाशित हुआ था। 3 इडियट्स के रिलीज़ होने तक चेतन भगत मशहूर राइटर बन चुके थे। हालांकि उस वक्त तक उन्होंने सिर्फ 3 नॉवेल लिखे थे। आगे चलकर उनकी कई किताबों पर फिल्में बनी हैं जिनमें – 2 स्टेट्स और हाफ गर्लफ्रेंड भी शामिल है।
हाल ही में कुशल लोधा के पॉडकास्ट पर दिए एक इंटरव्यू में चेतन भगत ने बताया कि उनका पहला उपन्यास किस तरह से फिल्ममेकर्स की नज़र में आया और कैसे वह उनके जीवन का एक बड़ा टर्निंग पॉइंट बना। इसने उन्हें फुल-टाइम राइटिंग को अपनाने का आत्मविश्वास दिया।
3 इडियट्स के राइट्स बेचने के बारे में बात करते हुए भगत ने कहा- “हमने 3 इडियट्स के लिए 1 लाख रुपये के कॉन्ट्रैक्ट पर सैटल किया था, जिसमें 10 लाख रुपये के बोनस का एग्रीमेंट था। और फिल्म की सफलता के बाद उन्होंने मुझे वो बोनस दिया भी।”
जहाँ फिल्म ने 55 करोड़ के बजट पर दुनियाभर में 350 करोड़ रुपये की कमाई की, वहीं चेतन भगत को कुल 11 लाख रुपये मिले।
उन्होंने इस डील को समझाते हुए कहा- “तब मैं काफी नया था। बाद में ऐसी राइट्स करोड़ों में बिकने लगीं। लेकिन जब मैंने राइट्स बेचे, मुझे पता भी नहीं था कि फिल्म बनेगी या नहीं, ये एक अनकन्वेंशनल कहानी थी। किसी ने नहीं सोचा था कि आमिर खान इसे करेंगे। तो मुझे लगता है उस वक्त के हिसाब से मुझे ठीक रकम मिली थी। मुझे पता है कि फिल्म की कमाई के मुकाबले ये रकम छोटी लगती है, लेकिन उस हालात में ये फेयर थी।”
लेखक ने उस दौर के एक्टर्स की फीस का ज़िक्र करते हुए तुलना करते हुए कहा, “विधु विनोद चोपड़ा उस समय परिणीता भी बना रहे थे। मैं आंकड़े कन्फर्म नहीं कर सकता, लेकिन मुझे बताया गया कि सैफ अली खान, जो उस फिल्म के लीड एक्टर थे, उन्हें 25 लाख रुपये मिले थे। तो उसकी तुलना में 3 इडियट्स जैसी हिट फिल्म के लिए 11 लाख रुपये ठीक लग रहे थे।”
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उन्होंने आगे बताया- “किताब 2004 में आई, मैंने 2005 में राइट्स बेचे, और फिल्म 2009 में रिलीज़ हुई। तब मैं बैंक में भी काम कर रहा था।”
बाद की किताबों पर बनी फिल्मों जैसे 2 स्टेट्स और हाफ गर्लफ्रेंड के बारे में बात करते हुए चेतन भगत ने समझाया कि फिल्म राइट्स की पेमेंट स्ट्रक्चर कैसे काम करता है- “आप फिल्म राइट्स एक फिक्स अमाउंट पर बेचते हैं। आपको उसका कुछ हिस्सा एडवांस में मिलता है, एक हिस्सा तब जब स्टूडियो प्रोजेक्ट को ग्रीनलाइट करता है, और बाकी रिलीज़ से पहले। ये पूरी तरह फिक्स पेमेंट होती है।”
उन्होंने कहा कि उन्हें हमेशा फिक्स प्राइस मॉडल पसंद है, न कि प्रॉफिट-शेयरिंग।
“पैसे की बात पहले ही साफ कर लेना बेहतर है, बजाय वेरिएबल्स में फंसने के। ज़्यादातर प्रोडक्शन हाउस प्राइवेट कंपनियाँ होती हैं, और भले ही फिल्म प्रॉफिट करे, वे अक्सर उसे लॉस दिखाते हैं। मेरे फाइनेंस बैकग्राउंड की वजह से मैं हमेशा फिक्स पेमेंट को वेरिएबल्स से ज़्यादा तरजीह देता हूँ।”
उन्होंने यह भी समझाया कि फिल्म राइट्स शुरू में कैसे काम करते हैं- “जब आप राइट्स बेचते हैं, तो आम तौर पर वो तीन साल के लिए होती हैं। अगर उस समय में फिल्म नहीं बनती, तो राइट्स आपके पास वापस आ जाते हैं। कई बार अगर वे फिल्म बनाते हैं, तो वे आपको ज़्यादा पेमेंट करते हैं, और तब वो राइट्स उनके पास स्थायी रूप से चले जाते हैं।”