ब्रिटिश फिल्मकार केन लोच की फिल्म ‘आई, डेनियल ब्लेक’ को बेस्ट फिल्म का अवार्ड ‘पाम डि ओर’ देकर कान फिल्मोत्सव ने एक बार फिर असहमति के सिनेमा का सम्मान किया है। दस साल पहले भी उन्हें ‘दि विंड दैट शेक्स द बार्ली’ (2006) फिल्म के लिए यह सम्मान मिल चुका है। लाइफ टाइम अचीवमेंट का आॅनरेरी ‘पाम डि ओर’ वरिष्ठ फे्रंच अभिनेता ज्यां पियरे को दिया गया। जूरी के अध्यक्ष जार्ज मिलर ने यहां 69 वें कान फिल्मोत्सव के पुरस्कारों की घोषणा करते हुए कहा कि सर्वसम्मति से फैसले किए गए हैं।

ब्रिटेन की ही आंद्रे आरनॉल्ड की फिल्म अमेरिकन हनी को जूरी प्राइज मिला जबकि कनाडा के जेवियर दोलान की फिल्म इट्स ओनली दि एंड आॅफ दि वर्ल्ड को ग्रैंड प्रिक्स दिया गया। रोमानिया के क्रिस्टीयान मुंजीयू को उनकी फिल्म ग्रेजुएशन और फ्रांस के ओलिवर असायास को पर्सनल शोपर के लिए संयुक्त रूप से सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार मिला। फिलीपींस के ब्रिलांते मेंडोजा की फिल्म मा रोजा में बेहतरीन अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जैक्लीन रोज को मिला। सर्वश्रेष्ठ पटकथा का पुरस्कार ईरान के असगर फरहादी को उनकी फिल्म द सेल्समैन के लिए दिया गया। इसी फिल्म में मुख्य किरदार निभाने के लिए शहाब होसेनी को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया गया।

अन सर्टेन रिगार्ड खंड मे बेस्ट फिल्म का पुरस्कार फिनलैंड के जूहो कोस्मानेन की फिल्म द हैप्पीएस्ट डे इन द लाइफ आॅफ ओली मैकी को मिला जबकि नए फिल्मकारों की पहली फिल्म के लिए दिया जाने वाला पुरस्कार कैमरा डि ओर फ्रांस की हौदा बेन्यामिना को उनकी फिल्म डिवाइन के लिए दिया गया। ग्रैंड थियेटर लूमिएर में कान फिल्मोत्सव के भव्य समापन समारोह में हॉलीवुड स्टार मेल गिब्सन ने केन लोच को जब सम्मानित किया तो उन्होंने कहा, नवउदारवादी आर्थिक नीतियों के कारण दुनियाभर में गरीबों का जीना मुश्किल हो गया है। इस व्यवस्था ने गरीबों को ही उनकी गरीबी का जिम्मेदार मान लिया है। अब हमें यह बात जोर देकर कहना चाहिए कि एक दूसरी दुनिया संभव है और जरूरी है।

आज इस अस्सी वर्षीय दिग्गज फिल्मकार के साहस को सलाम किया जा रहा है जिसे पिछले वर्ष कान में उनकी फिल्म जिम्मीज हॉल के बाद रिटायर मान लिया गया था। वे कहते हैं कि यह कैसा अन्याय है कि अगर आपके पास खाने को नहीं है तो इसे आपका ही गुनाह मान लिया जा रहा है।

केन लोच की फिल्म आई डेनियल ब्लेक उनके पसंदीदा लेखक पॉल लावर्टी के उन सच्चे साक्षात्कारों पर आधारित है जिसमें ब्रिटेन में भूख और गरीबी से तबाह लोगों ने चकित कर देने वाले सच का खुलासा किया है। जिस ब्रिटिश राज में कभी सूरज नहीं डूबता था आज वहां लोग भूख, बेरोजगारी और गरीबी से लाचार हैं।

उत्तरी इंग्लैंड के नार्थ कैसल का एक बढ़ई मामूली हार्टअटैक के बाद काम करने से प्रतिबंधित कर दिया जाता है। दूसरी ओर उसे सरकार से गुजारा भत्ता भी नहीं मिलता क्योंकि निर्दयी नौकरशाही मामले को उलझाकर इतना लंबा खींच देती है कि एक दिन वह दम तोड़ देता है। मरने से पहले वह एक कविता लिख जाता है: मुझे कुछ भी नहीं चाहिए था / मैं बस एक मनुष्य की तरह जीना चाहता था / क्योंकि मै कुत्ता नहीं था / न इससे कुछ कम न ज्यादा। दरअसल इंग्लैंड में नियम-कानूनों का हवाला देकर नौकरशाही ने अन्याय को कलात्मक लालफीताशाही का जामा पहना दिया है। यह भी अजीब है कि ब्रिटेन में छोटे से छोटे हक दिलाने के लिए वकीलों और कंसलटेंट की फौज खड़ी हो गई है।

केन लोच ने कहानी को सटीक व्यंग्यात्मक लहजे में गहरी संवेदनशीलता के साथ कहने की कोशिश की है। जाहिर है ब्रिटिश भद्रलोक को यह सब पसंद नहीं आएगा। अभी तक ब्रिटेन में इस फिल्म के रिलीज की तिथि घोषित नहीं हुई है। बीबीसी और ब्रिटिश फिल्म इंस्टीट्यूट के साथ कई प्रतिष्ठित कंपनियां ने इस फिल्म को प्रोड्यूस किया है। तीसरी दुनिया में गरीबी और भुखमरी को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बड़ी-बड़ी बातें करने वाले ब्रिटेन के लिए इस फिल्म को पचाना आसान नहीं होगा। यहीं वजह है कि यूरोपीय मीडिया में पूछा जा रहा है कि क्या कान फिल्मोत्सव राजनैतिक होता जा रहा है?