16 साल पहले ‘बंटी और बबली’ आई थी। इतने साल बाद उसका सिक्वेल बन कर आया है। रानी मुखर्जी के अलावा इसमें सारे नए किरदार हैं। वैसे भी य़शराज फिल्म्स अब रानी मुखर्जी का घरेलू प्रॉडक्शन है, इसलिए उनका होना लाजिमी है। पर जो चीज दर्शक को अखरेगी वो ये कि इसमें `कजरारे कजरारे’ जैसा आईटम सॉन्ग नहीं है। जिसकी बड़ी भूमिका इसे सफल बनाने में थी। लेकिन पहली फिल्म की तरह इसमें ठगी का पूरा मसाला है। पर क्या इतने भर से ये फिल्म सफल हो पाएगी? लखटकिया सवाल है।
इसका जो रोचक पक्ष है वो ये कि इसमें दो बंटी और दो बबली हैं। एक पुरानी जोड़ी और एक नई जोड़ी। उत्तर प्रदेश के काल्पनिक शहर फुरसतगंज में ठग राकेश (सैफ अली खान) औऱ विम्मी (रानी मुखर्जी), जो कभी बंटी और बबली हुआ करते थे, अब आराम की और शरीफों वाली जिंदगी गुजार रहे हैं।
राकेश रेलवे में नौकरी करने लगा है और टिकट काटता है। बबली घर की देखभाल में व्यस्त है। लेकिन पुरानी आदतें यूं ही नहीं जातीं। इसलिए कुछ ऐसे वाकये होते हैं जिनसे लगता है कि बंटी और बबली की वापसी हुई है। ऐसे में पुलिस का ध्यान इस पुरानी जोड़ी पर जाता है। पुलिस इंस्पेक्ट्रर जटायु सिंह (पंकज त्रिपाठी) इनके पास पहुंचता है।
लेकिन मामला जटिल हो जाता है और लगता है एक दूसरी ठग जोड़ी सक्रिय हो गई हैं- कुणाल (सिद्धांत चतुर्वेदी) औऱ सोनिया (शर्वरी वाघ) की। यानी नए जमाने के बंटी औऱ बबली। क्या इन नए जमाने के ठगों को पुराने जमाने की ठगों की मदद से पकड़ा जा सकता है। या यहां कोई दूसरा खेल भी हैं?
फिल्म खूब हंसाने वाली है। पंकज त्रिपाठी ने एक ऐसे पुलिस वाले की भूमिका निभाई है जो अपने को तीसमार खां जैसा समझता है। इस कारण दर्शक के सामने हंसने के कई अवसर आते हैं। कुछ दूसरे मजेदार हास्य सिक्वेंस भी हैं। सैफ अली खान और रानी मुखर्जी तो दमदार हैं ही। सिद्धांत औऱ शर्वरी भी अपनी तरह के आइटम हैं- एकदम फाड़ू। हालांकि इस सिक्वेल में अमिताभ बच्चन वाला एक्स-फैक्टर नहीं है, इसलिए पहले वाले की तुलना में ग्लैमर कम है। हां पर, डॉयलाग्स कुछ ज्यादा मजेदार हैं।