आरती सक्सेना
कोई भी फिल्म कितनी ही महंगी या नामी कलाकारों से भरी हो लेकिन अगर उसमें कहानी दमदार नहीं होगी तो उसको असफल होने से कोई नहीं बचा पाएगा। बावजूद इसके किसी भी फिल्म की सफलता का श्रेय उससे जुड़े कलाकार, निर्देशक, संगीतकार सभी को दिया जाता है लेकिन फिल्म के लेखकों का जिक्र बहुत ही कम होता है। और ना ही उन्हें प्रचार का हिस्सा माना जाता है। अर्थात कहानीकार को नजरअंदाज कर दिया जाता है।
आज के समय में तो फिर भी थोड़ा बहुत लेखकों को पहचान मिल रही है वर्ना इससे पहले तो 3- 4 नामी लेखकों के अलावा किसी लेखक को पहचान भी नहीं मिलती थी। लेकिन अब बालीवुड के लेखकों ने भी अपने हक की लड़ाई लड़ने का फैसला कर लिया है। बालीवुड और ओटीटी के लेखकों को अपनी हक की लड़ाई लड़ने का हौसला हालीवुड के लेखकों से मिला है।
जिन्होंने हालीवुड में लगभग पांच महीने तक अपनी हक की लड़ाई के लिए हड़ताल की थी, जिसमें उनका साथ उनके हालीवुड कलाकारों ने और तकनीशियनों ने भी पूरी तरह से दिया। जिसके चलते हालीवुड लेखकों को जीत हासिल हुई। जिसके बाद बालीवुड लेखकों को भी अपने हक की लड़ाई लड़ने का हौसला मिला। बालीवुड लेखक न सिर्फ अपने हक के लिए लड़ाई लड़ना चाहते हैं बल्कि फिल्म व ओटीटी के निर्माता द्वारा दुर्व्यवहार को लेकर भी आवाज उठाना चाहते हैं ताकि उन्हें वो पारिश्रमिक और सम्मान मिले, जिसके वे हकदार हैं।
लेखकों की ट्रेड यूनियन स्क्रीन राइटर्स संगठन ने बुलाई लेखकों की बैठक बालीवुड लेखकों की समस्या को लेकर हाल ही में लेखकों की ट्रेड यूनियन स्क्रीन राइटर एसोसिएशन एसडब्लूयूए ने एक बैठक बुलाई थी, जिसमें सौ से अधिक लेखकों ने हिस्सा लिया। अपने हक के लिए लड़ाई लड़ने की शुरुआत की।
इसमें बालीवुड और ओटीटी के कई जाने माने लेखक जैसे श्रीराम राघवन, सुजय घोष, सुमित चोपड़ा, श्रीधर राघवन, अश्विनी अय्यर तिवारी, हर्षवर्धन कुलकर्णी, सुदीप शर्मा, अब्बास टायर वाला आदि शामिल हुए। जिसके कारण इस बैठक का असर पूरी फिल्म दुनिया में देखने को मिला। लेखकों के अनुसार निर्माता द्वारा बनाए गए अनुबंध लेखकों के लिए फायदे और सुरक्षा के लिए कम, निर्माताओं के फायदे और सुरक्षा पर ज्यादा केंद्रित होते है।
लेखक और निर्माता के बीच का अनुबंध इतना कमजोर होता है कि वह निर्माता द्वारा कभी भी खारिज किया जा सकता है। बावजूद इसके लेखकों को वह अनुबंध मजबूरी में करना पड़ता है। जिसमें ना तो मेहनताना सही आंका जाता है, और ना ही लेखक के लिए सुरक्षा की कोई गारंटी होती है। जिसकी वजह से नए लेखकों को तो इस अनुबंध से कई बार भारी नुकसान भी उठाना पड़ता है। लेखकों का औसत पारिश्रमिक लगातार कम हो रहा है। निर्माता की मर्जी पर श्रेय दिया जाता है। वेब शृंखला और फिल्मों में कमजोर अनुबंध के कारण उन्हें कभी भी निकाल दिया जाता है।
इसके अलावा अगर फिल्म पर कोई सामाजिक या राजनीतिक विपरीत प्रतिक्रिया होती है तो लेखकों को निर्माता द्वारा क्षतिपूर्ति करने के लिए मजबूर किया जाता है। इतना ही नहीं लेखकों को मौलिक अधिकारों के साथ रायल्टी प्राप्त करने के अधिकार को भी छोड़ने पर मजबूर किया जाता है ,जबकि इसकी गारंटी भारतीय कानून द्वारा दी गई है। राइटर एसोसिएशन ने लेखकों को उनका हक, उचित पारिश्रमिक, सम्मान दिलाने के उद्देश्य से और कुछ निर्माता द्वारा अनावश्यक फायदा उठाने की गलत मानसिकता को खत्म करने के के लिए सही दिशा में पहला कदम बढ़ा दिया है।
इसी के चलते स्क्रीनप्ले राइटर एसोसिएशन ने निर्माताओं और लेखकों की बैठक का आयोजन किया है जिसमें कई निर्माता बैठक में आने के लिए राजी हैं। कुछ निर्माताओं ने तो इस बात की सहमति भी दी है कि लेखकों को उचित पारिश्रमिक और काम को लेकर सुरक्षा मिलनी चाहिए।