जयनारायण प्रसाद

हिंदी सिनेमा का सफर शुरू से ही बेहतरीन रहा है। सन 1970 या उसके आसपास की हिंदी फिल्मों को देखें, तो लगेगा कि इस दौर की फिल्मों ने भी कम इतिहास नहीं रचा है। निर्देशक भी ऐसे-वैसे नहीं। राजकपूर, राजिंदर सिंह बेदी, बीआर इशारा, तपन सिन्हा, ऋषिकेश मुखर्जी, मृणाल सेन, मणि कौल, बासु भट्टाचार्य, बासु चटर्जी, असित सेन और शक्ति सामंत।

राजकपूर निर्देशित मेरा नाम जोकर ऐसी ही एक खूबसूरत फिल्म है जो थी तो सबसे लंबी, लेकिन शुरू में बाक्स ऑफिस पर लुढ़क गई थी। दोबारा रिलीज हुई तो बाक्स आफिस पर 73.1 मिलियन टिकट बिके थे। 18, दिसंबर, 1970 को रिलीज हुई मेरा नाम जोकर 239 मिनट की फिल्म थी। ख्वाजा अहमद अब्बास ने इसकी पटकथा लिखी थी। पूरी फिल्म राजकपूर पर केंद्रित थी।

मेरा नाम जोकर दरअसल एक ऐसे जोकर की कहानी है, जो दु:ख में भी सबको हंसाते रहता है। इस फिल्म में राज कपूर ने राजू भूमिका बेहतरीन निभाई है। इस फिल्म को चार फिल्मफेयर अवार्ड भी मिले थे।

उर्दू के जाने-माने लेखक राजिंदर सिंह बेदी की फिल्म ‘दस्तक’ भी बेहतरीन फिल्मों में से एक हैं। ‘दस्तक’ की कहानी एक रेड लाइट एरिया की है। 140 मिनट की इस फिल्म में संजीव कुमार और रेहाना सुल्तान ने मुख्य भूमिका निभाई हैं। संगीत मदन मोहन का है और गीत मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखे हैं। लता मंगेशकर ने ‘दस्तक’ में तीन गीत गाए हैं और तीनों गीत अब भी खूब सुने जाते हैं।

निर्देशक के बतौर राजिंदर सिंह बेदी की यह पहली फिल्म थी। पाकिस्तान के सियालकोट में जन्मे, लाहौर में शिक्षा पाए और सन 1984 में बंबई में गुजरे राजिंदर सिंह बेदी प्रोग्रेसिव राइटर्स मूवमेंट्स (पीडब्लूएम) से भी जुड़े थे।

इसी तरह, बीआर इशारा भी उस दौर के बड़े निर्देशक थे। वर्ष 1970 में उन्होंने एक फिल्म बनाई थी चेतना। शत्रुघ्न सिन्हा, अनिल धवन और नायिका रेहाना सुल्तान इस फिल्म में खास भूमिका में थे। यह फिल्म भी एक वेश्या की जिंदगी की कहानी है। रेहाना सुल्तान किसी जमाने में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की यूनियन की लीडर भी रही थीं।

फिल्मकार तपन सिन्हा की फिल्म सगीना महतो भी महत्त्वपूर्ण है। 21 अगस्त, 1970 को रिलीज हुई इस फिल्म में दिलीप कुमार और सायरा बानो खास भूमिका में हैं। 148 मिनट की फिल्म बांग्ला में भी बनी है। वर्ष 1942-43 में बंगाल के सिलीगुड़ी में हुए श्रमिक आंदोलन की पृष्ठभूमि में यह बनी है। सन 1970 के आखिरी दिनों में बनी थी ऋषिकेश मुखर्जी की हिंदी फिल्म आनंद। हालांकि, यह रिलीज हुई 12 मार्च, 1971 को। एक जटिल बीमारी पर बनी आनंद अब भी हिट जाती है। इसके सभी गीत लोकप्रिय है।

मृणाल सेन की हिंदी फिल्म भुवन सोम भी 1969 के आखिर में बनी और 1970 में रिलीज हुई। अभिनेता उत्पल दत्त और अभिनेत्री सुहासिनी मुले इसमें मुख्य किरदार में हैं। बांग्ला के मशहूर लेखक बलाईचंद्र मुखोपाध्याय की कहानी पर बनी भुवन सोम समानांतर सिनेमा की पहली फिल्म भी मानी जाती है। इस फिल्म में अमिताभ बच्चन की आवाज का इस्तेमाल है। कहते हैं कि इस फिल्म में आवाज देने के लिए मृणाल सेन ने मामूली पैसे दिए थे। इस फिल्म को तीन राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिले हैं- बेस्ट फिल्म, बेस्ट डायरेक्टर और बेस्ट एक्टर का।

निर्देशक बासु भट्टाचार्य की अनुभव भी इसी दौर की फिल्म है। इस फिल्म में संजीव कुमार, तनूजा और दिनेश ठाकुर का अभिनय देखने लायक है। फिल्म में गुलजार के गीत और कानू राय का संगीत कर्णप्रिय है।

सन सत्तर के दशक में असित सेन की एक फिल्म आई थी सफर। मुशीर-रियाज इसके निर्माता थे। अशोक कुमार, राजेश खन्ना, शर्मिला टैगोर और फिरोज खान अभिनीत यह फिल्म आशुतोष मुखर्जी के एक बांग्ला उपन्यास पर बनी है। इस फिल्म को एक फिल्मफेयर और चार बीएफजेए का पुरस्कार मिला था। 1969 से 1971 तक लगातार यह राजेश खन्ना की हिट फिल्म रही। 140 मिनट की इस फिल्म में अरुणा ईरानी, आईएस जौहर और नादिरा भी थीं।

राजेश खन्ना उस दौर के सदाबहार हीरो थे। हिंदी की अमर फिल्मों की फेहरिस्त में असित सेन की सफर का भी नाम है।