बिहार कोकिला, मिथिला की बेगम अख्तर जैसे नामों से मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा का 5 नवंबर को निधन हो गया। उनकी आवाज के बिना बिहार, मिथिलांचल के पर्व अधूरे हैं और छठ के त्योहार की नहाय खाय के दिन ही उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। उन्हें राजकीय सम्मान के साथ विदा किया जाएगा, भले ही वो इस दुनिया में नहीं रहीं लेकिन उनकी मधुर आवाज, उनके गीतों में हमेशा अमर रहेगी।
शारदा सिन्हा का निधन 72 साल की उम्र में हुआ। वह लंबे समय से कैंसर से पीड़ित थीं और कुछ दिनों से दिल्ली के एम्स में उनका इलाज चल रहा था, जहां इलाज के दौरान उनका निधन हो गया। इंटरनेट पर उनका एक वीडियो वायरल हो रहा है, जो अस्पताल के बेड पर है और वो एक गीत गा रही हैं।
उन्होंने ‘छठी मैया आई ना दुआरिया’, ‘कार्तिक मास इजोरिया’, ‘द्वार छेकाई’, ‘पटना से’, और ‘कोयल बिन’ जैसे कई गीत गाए। इनके अलावा बॉलीवुड की कई फिल्मों में भी उन्होंने गाने गाए हैं, जिनमें ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर- टू’ का ‘तार बिजली’, ‘हम आपके हैं कौन’ का ‘बाबुल’ और ‘मैंने प्यार किया’ का ‘कहे तो से सजना’ जैसे गाने शामिल हैं। शारदा सिन्हा ने भोजपुरी, मैथिली और मगही भाषाओं में लोकगीत गाए थे और उन्हें पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया था।
शारदा सिन्हा साल 2017 से मल्टीपल मायलोमा से जूझ रही थीं और कुछ महीने पहले ही उनके पति का निधन हुआ था। उनके परिवार में एक बेटा और एक बेटी हैं। जिनके लिए ये वक्त बेहद मुश्किल है, दो महीने पहले पिता और मां का निधन उनके लिए गहरे सदमे से कम नहीं है।
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शारदा सिन्हा के संगीत का सफर
शारदा सिन्हा का जन्म 1 नवंबर 1952 को बिहार के सुपौल जिले में हुआ था। बचपन से ही उन्हें संगीत का बहुत शौक था, उन्होंने पंचगछिया घराने के प्रख्यात ख्याल गायक पंडित रघु झा से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली थी। इसके बाद उन्होंने ख्याल गायक पंडित सीताराम हरि दांडेकर से ट्रेनिंग ली, जो एक बेहतरीन गायक थे और इसके बाद शारदा सिन्हा ने पन्ना देवी से संगीत की शिक्षा दीक्षा ले ली।
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शास्त्रीय संगीत में की थी पीएचडी
पन्ना देवी मलिका-ए-गजल बेगम अख्तर की समकालीन थीं और ठुमरी और दादरा की प्रतिपादक थीं। शारदा होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत-गायन में मास्टर डिग्री और पीएचडी भी की थी। उन्हें 2000 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1991 में पद्म श्री और 2018 में पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है। शारदा सिन्हा का पहला मैथिली गीत “दुलारुआ भैया” 1971 में आया था जिसे काफी पसंद किया गया। शारदा सिन्हा के बॉलीवुड सफर के बारे में जानने के लिए यहां क्लिक करें…
सोशल मीडिया पर रहती थीं एक्टिव
शारदा सिन्हा अपने फैंस के साथ सोशल मीडिया पर गाने और वीडियो शेयर किया करती थीं। वह यूट्यूब पर भी एक्टिव रहती थीं और वहां उनके 75,000 सब्सक्राइबर हैं, इसके अलावा इंस्टाग्राम पर उनकी अच्छी फैन फॉलोइंग है। उनके निधन से 3,29,000 फॉलोवर्स हैं। बता दें कि भारत सरकार की सांस्कृतिक राजदूत के तौर पर वह मॉरीशस, जर्मनी, बेल्जियम और हॉलैंड सहित कई देशों में परफॉर्म कर चुकी हैं।
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शारदा सिन्हा 1980 के दशक में ऑल इंडिया रेडियो से जुड़ी थीं। उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो के संगीत समारोहों और सांस्कृतिक समारोहों के जरिए देशभर में परफॉर्म किया। सिन्हा ने चार दशकों से अधिक समय तक महिला महाविद्यालय, समस्तीपुर (एल.एन.एम.यू. दरभंगा) बिहार के संगीत विभाग में भी काम किया। इन सालों में, उन्हें पद्म पुरस्कारों के अलावा विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इनमें राष्ट्रीय देवी अहिल्या सम्मान, बिहार कला पुरस्कार, बिहार रत्न, भोजपुरी रत्न, मिथिला विभूति सम्मान शामिल हैं।