Mahatma Gandhi Death Anniversary, Bhojpuri Gana: अहिंंसा के पुजारी महात्मा गांधी के एक पुजारी हुआ करते थे रसूल मियां। वह हर तरह से गांधी के अभियान और उनके विचारों को दूर-दूर तक पहुंचाने में जुटे हुए थे। यह वह दौर था जब बापू चरखे को लोकप्रिय बनाने का आह्वान कर रहे थे। रसूल मियां भी अपने तरीके से उनके इस आह्वान को सफल अभियान में बदलने में लगे हुए थे। रसूल मियां लोक कलाकार थे। बिहार के गोपालगंज के रहने वाले थे। उनकी उम्र बापू से दो-तीन साल ही कम थी। लेकिन, वह उनसे बेहद प्रभावित थे।
30 जनवरी, 1948 को गांधीजी को गोली मारी गई थी। रसूल अपनी नाच मंडली के साथ कलकत्ता में थे। वह नाटक खेलने गए थे। बापू की हत्या की खबर आने के बाद फैक्ट्री के मालिक ने कहा- आज की रात नाटक नहीं होगा। लेकिन, दुख से टूटे हुए रसूल ने कहा कि नाटक के जरिए ही बापू को श्रद्धांजलि दी जाएगी। इस पर मालिक मान गए। दर्द में डूबे रसूल ने ऐसा अभिनय किया कि सब रो पड़े। उनका दर्द इन शब्दों में बाहर आया था-
के हमरा गांधीजी के गोली मारल हो, धमाधम तीन गो
कल्हीये आजादी मिलल, आज चललऽ गोली,
गांधी बाबा मारल गइले देहली के गली हो, धमाधम तीन गो…
पूजा में जात रहले बिरला भवन में,
दुशमनवा बैइठल रहल पाप लिये मन में,
गोलिया चला के बनल बली हो, धमाधम तीन गो…
कहत रसूल, सूल सबका दे के,
कहां गइले मोर अनार के कली हो, धमाधम तीन गो…
के हमरा गांधीजी के गोली मारल हो, धमाधम तीन गो…
रसूल मियां का लिखा कुछ भी किताब या दस्तावेज के रूप में उपलब्ध नहीं थी। एक डायरी में वह अपनी रचनाएं लिखा करते थे। उनके देहांत के बाद कोई उनके बेटों के पास से डायरी ले गया। फिर लौटाया नहीं। उनके बेटों, शिष्यों व कुछ कलाकारों ने उनकी याद के आधार पर कुछ रचनाओं को अपने स्तर से जिंंदा रखा। कुछ संस्कृतिकर्मी इस विरासत को सहेजने के लिए सक्रिय हुए। इन्हीं में से एक हैं सुभाष चन्द्र कुशवाहा।
सुभाष चंद्र कुशवाहा ने रसूल मियां के कई गीत संकलिए करने में कामयाबी पाई है। लोक गायिका चंदन तिवारी ने इन गीतों को खुद ही कंपोज कर गाना शुरू किया है। चंदन मूल रूप से बिहार के आरा की हैं। उनका गाया गीत ”के हमरा गांधीजी के गोली मारल हो, धमाधम तीन गो” यहां सुन सकते हैं:
रसूल मियां पांचवी से आगे नहीं पढ़ सके थे। उनके पिता फतिंगा अंसारी मार्क्स लाइन स्थित कलकत्ता छावनी में अंग्रेजों के यहां बावर्ची का काम करते थे। उस दौरान कलकत्ते में बिहार, खास कर भोजपुर इलाके के लोगों की खूब आबादी थी। वे रोजी-रोटी की तलाश में कलकत्ता ही जाते थे। रसूल भी वहां जाते थे और नाटक में अभिनय करते, नाचते व गीत गाते थे। नाच शुरू करने से पहले रसूल सरस्वती वंदना गाते थे। उन्होंने राम, कृष्ण, गंगा के बारे में भी काफी कुछ लिखा। बापू की हत्या के चार साल बाद 1952 में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था।