एमजी रामचंद्रन (17 जनवरी 1917 – 24 दिसंबर 1987): जिंदगी इम्तहान लेती है और मरुधर गोपालन रामचंद्रन ने एक नहीं दो बार इम्तहान दिए और भारत रत्न तक का सफर तय किया। जिंदगी के इन इम्तहानों में उनके दो प्रगाढ़ मित्र उनके विरोधी बने और एक ने तो उन पर जानलेवा हमला तक कर दिया था।एमजीआर की पहली फिल्म ‘सती लीलावती’ (1937) के हीरो थे एमआर राधा और पहली हिट फिल्म ‘मंतिरी कुमारी’ (1950) के लेखक थे करुणानिधि (जो तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने)। दोनों के साथ एमजीआर ने लगभग 12 फिल्मों में काम किया। मगर जिंदगी ने ऐसा इम्तहान लिया कि यही दोनों बाद में एमजीआर के विरोधी बने।
12 जनवरी, 1967 को एक नई फिल्म के सिलसिले में राधा फिल्म निर्माता केएन वासु के साथ एमजीआर से मिलने गए। बातचीत के बीच अचानक राधा उठे और दो गोलियां एमजीआर पर दाग दीं। गोलियां कान को छूती हुई एमजीआर की गर्दन में लगीं। इसके बाद राधा ने आत्महत्या की कोशिश की मगर उन्हें बचा लिया गया। एमजीआर को अस्पताल में दाखिल करवाया गया। जंगल की आग की तरह एमजीआर को गोली मारने की खबर फैल गई। एमजीआर के प्रशंसक सड़कों पर उतर आए। भीड़ अस्पताल के सामने एकत्रित हो गई। जब तक एमजीआर अस्पताल में रहे उनके प्रशंसक सलामती की दुआएं करते रहे। किसी अभिनेता और उसके प्रशंसकों का इतना प्रगाढ़ रिश्ता, तब भी देखने को मिला था, जब अमिताभ बच्चन ‘कुली’ के सेट पर घायल होकर अस्पताल में भर्ती थे।ऑपरेशन के बाद एमजीआर ठीक तो हो गए मगर उनके बाएं कान ने सुनने की क्षमता खो दी और एमजीआर की आवाज में भी अजीब-सा बदलाव आ गया।
एमजीआर के दूसरे अभिन्न मित्र करुणानिधि ने एमजीआर के करिअर को नया मोड़ देने वाली तमिल फिल्म ‘मंतिरी कुमारी’ के अलावा एमजीआर के लिए खासतौर से ऐसी पटकथाएं तैयार कीं, जिनसे वे गरीबों के मसीहा के तौर पर सामने आए। उन फिल्मों की सफलता ने डीएमके को मजबूत बनाने का काम किया। 1969 में करुणानिधि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने। इसके बाद जब 1972 में करुणानिधि ने यही तरीका अपनाते हुए अपने बेटे एमके मुथु को सिनेमा की दुनिया में उतारा, तो करुणानिधि और एमजीआर के बीच मतभेद गहरा गए। एमजीआर ने डीएमके पर भ्रष्टाचार और अन्नादुराई के उसूलों से दूर जाने का आरोप लगाया, तो करुणानिधि ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। तब एमजीआर ने अपनी नई पार्टी अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कझगम बनाई। बाद में यही पार्टी ऑल इंडिया अन्नाद्रविड़ मुनेत्र कझगम कहलाई।
एमजीआर और करुणानिधि में चाहे मतभेद हो गए हों, मगर तमिलनाडु में बतौर अभिनेता एमजीआर की लोकप्रियता बुलंदियों को चूम रही थी। उनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर कमाल कर रही थीं। और आखिर सिनेमा की दुनिया के मसीहा बने एमजीआर ने अपनी इसी छवि के दम पर 1977 के चतुष्कोणीय मुकाबले का चुनाव जीता। उनके मुकाबले में डीएमके, राष्ट्रीय कांग्रेस और जनता पार्टी थीं। एमजीआर मुख्यमंत्री बने। वे देश के पहले अभिनेता थे जिन्होंने सिल्वर स्क्रीन से सूबे की सियासत की सबसे ऊंची कुर्सी तक का सफर तय किया था। वह एक बार मुख्यमंत्री बने तो अपनी आखिरी सांस (1987) तक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे और अंत में भारत रत्न बने। एमजीआर का तमिलनाडु का मुख्यमंत्री बनना द्रविड़ राजनीति में सिनेमा का पहली बार लगा तड़का था। इससे पहले राजनीति में आंदोलनों और समाज सेवा के जरिए आए लोगों के लिए जगह होती थी। करुणानिधि और एमजीआर ने सिनेमा की ताकत को पहचाना और उसे सियासत की सीढ़ी के रूप में इस्तेमाल किया। द्रविड़ राजनीति में फिर यही करिश्मा एमजीआर की पार्टी की जे जयललिता ने किया।

