निर्देशक-कबीर खान
कलाकार-सलमान खान, करीना कपूर खान, हर्षाली मल्होत्रा, नवाजुद्दीन सिद्दिकी, ओम पुरी, शरत सक्सेना
आखिरकार लंबे अरसे के बाद सलमान खान की वह फिल्म आई है जिसमें एक मुकम्मल कहानी है-जज्बात से भरी और सोद्देश्य। यह भारत-पाकिस्तान के बीच दोस्ती का संदेश देनेवाली भी है। दोनों देशों के अवाम के बीच भावनात्मक कड़ी को जोड़नेवाली। एक ऐसी फिल्म जिसमें हंसना भी है और रोना भी। जिसमें बजरंगबली हनुमान का जयकारा भी है और मौला की याद भी।
‘बजरंगी भाईजान’ दिलों को जोड़नेवाली है और नफरत को नकारनेवाली। एक ऐसे समय पर भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत और तनाव की साथ-साथ चलनेवाली पटकथा फिर से दोहराई जा रही है। निर्देशक कबीर खान ने ऐसी फिल्म बनाई है जो सरहद के दोनों तरफ सुलगने वाली लपटों को शायद ठंडा करेगी। शायद, क्योंकि फिल्मी कहानी हकीकत में अक्सर नहीं बदलती।
सलमान खान ने बजरंग बली के भक्त पवन चतुर्वेदी नाम के ऐसे नौजवान की भूमिका निभाई है जो पढ़ाई में सिफर है लेकिन दिल का सच्चा है। और इसी पवन से अकस्मात ही टकरा जाती है पाकिस्तान (दरअसल पाक अधिकृत कश्मीर से) से भारत आई छोटी बच्ची शाहिदा (हर्षाली मल्होत्रा), जो अपने परिवार से बिछुड़ गई है। शाहिदा बोल नहीं पाती। सिर्फ आंखों और चेहरे से अपनी बात कहती है।
बजरंगी तय करता है कि शाहिदा को, जिसे वह मुन्नी कहता है, उसके माता-पिता से मिलवाएगा और इसके लिए पाकिस्तान भी जाना पड़े तो जाएगा। चूंकि पवन बजरंग बली का भक्त है इसलिए पाकिस्तान की यात्रा भी वो किसी तरह का झूठ बोलकर नहीं करता है। वह मुन्नी (यानी शाहिदा) के साथ सरहद पार करता तो है गैरकानूनी तरीके से, यानी बिना पासपोर्ट या वीजा के, लेकिन यहां भी वह सच्चाई का साथ नहीं छोड़ता। बजरंगबली में अपनी आस्था को बार-बार जाहिर करते हुए वो पाकिस्तान में असली पहचान भी नहीं छुपाता। और फिर उसके साथ वहां क्या होता है इसी का बयान है ‘बजरंगी भाईजान’।
कुछ और बातें गौर करने लायक हैं। एक तो यह कि सलमान की बनी-बनाई छवि है कि वे फिल्मों में अपनी शर्ट उतार देते हैं। लेकिन इस फिल्म में उन्होंने ऐसा नहीं किया है। बल्कि एक लंबे दृश्य में वे बुर्का पहने नजर आते हैं। दूसरे यह कि सलमान के एक्शन सीन भी कम ही हैं-सिर्फ तीन। वो भी छोटे। ज्यादातर दृश्यों में पवन का जो चरित्र उभरता है वह यह कि वह एकदम सरल हृदयवाला है और झूठ नहीं बोलता। करीना और सलमान के बीच भी जो रोमांटिक दृश्य हैं, (जो सिर्फ मध्यांतर के पहले के हैं और मध्यांतर के बाद कोई रोमांटिक दृश्य नहीं है) वे भी बेहद पारिवारिक किस्म के हैं। यही कारण है कि करीना की भूमिका सीमित होकर रह गई है।
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मध्यांतर के बाद जो शख्स फिल्म में उभरता है वह है नवाजुद्दीन सिद्दिकी, जिन्होंने पाकिस्तान के एक ऐसे टीवी रिपोर्टर की भूमिका निभाई है जिसकी स्टोरी पर चैनल के संपादक ध्यान नहीं देते लेकिन जो यू ट्यूब के माध्यम से बजरंगी-मुन्नी की स्टोरी सारे पाकिस्तान और हिंदुस्तान के सामने लाता है।
फिल्म की एक और खूबी है कि यह पाकिस्तान का कोई स्टीरियोटाइप नहीं पेश करता और वहां के पुलिस, प्रशासन और जनता के बारे में किसी तरह का सरलीकरण नहीं करता। एक तरफ पाकिस्तान पुलिस पवन का पीछा करती है लेकिन वहां एक मौलाना (ओम पुरी) उसकी मदद भी करते हैं-सारी कहानी सुनने के बाद। और अंत आते-आते पुलिस का एक धड़ा पवन की मदद भी करता है।
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फिल्म हिंदू और इस्लाम दोनों धर्मों के मानवीय पहलू को उभारती है। हर्षाली मल्होत्रा अपनी निच्छल आंखों और मासूमियत से मुन्नी यानी शाहिदा का जो चेहरा पेश करती है वह भी दिल को छूनेवाला है। हर साल ईद के मौके पर सलमान के फैन उनकी फिल्मों का बेसब्री से इंजतार करते हैं। इस बार इस फैन क्लब में इजाफा होनेवाला है। ‘सेल्फी ले ले’ और ‘भर दे झोली’ जैसे गाने पहले ही हिट हो चुके हैं। फिल्म की सिनेमेटोग्राफी भी कमाल की है।