टैलेंट से भरपूर एक्टर आयुष्मान खुराना बॉलीवुड में अपने ‘हटकर कंटेंट’ वाली फिल्मों के लिए जाने जाते हैं। जिन मुद्दों पर लोग खुलकर बात करने से परहेज करते हैं। आयुष्मान की फिल्में ऐसे ही सब्जेक्ट पर बेस्ड होती हैं। इस बार आयुष्मान खुराना अपने फैन्स के लिए 18 अक्टूबर को ‘बधाई हो’ लेकर आए हैं। फिल्म में आयुष्मान ऐसे बेटे की भूमिका निभा रहे हैं जिसके माता-पिता को अधेड़ उम्र में भी संतान सुख की प्राप्ति होती है। ऐसे में इस ‘बेटे’ की लाइफ में ये खबर क्या सनसनी मचाती है फिल्म में दिखाया गया है। ‘बधाई हो’ में आयुष्मान के अपोजिट ‘दंगल’ फेम सान्या मल्होत्रा हैं। वहीं फिल्म में आयुष्मान के माता-पिता की भूमिका में एक्ट्रेस नीना गुप्ता और एक्टर गजराज राव भी हैं। जनसत्ता की रिपोर्टर रचना रावत से खास बातचीत में आयुष्मान बताते हैं कि जिस सब्जेक्ट पर लोग धीमी आवाज में बात करते हैं और अक्सर ऐसे मामलों में बात करने से कतराते हैं उनके लिए यह फिल्म देखना कैसे ‘असहज’ नहीं है।
पहले ‘विक्की डोनर’ फिर ‘शुभ मंगल सावधान’ और अब ‘बधाई हो’ इस तरह के यूनिक सब्जेक्ट पर बेस्ड फिल्में सिर्फ आपके खाते में हैं, यह कैसे?
आयुष्मान: जब आप पहली फिल्म करते हैं तो आपका एक ‘जोन’ बन जाता है। उदाहरण के लिए टाइगर श्रॉफ एक्शन हीरो के रूप में जाने जाते हैं। वरुण धवन कमर्शियल फिल्मों के लिए जाने जाते हैं। इस बीच आप कुछ हटकर करने की भी कोशिश करते हैं, जैसे वरुण ने ‘सुई धागा’ और ‘अक्टूबर’ की। मैंने ‘अंधाधुन’ की। लेकिन जो मेरा जोन है वह कंटेंट बेस्ड सब्जेक्ट (टेबू ब्रेकिंग सब्जेक्ट) है और मैं इस पर गर्व करता हूं कि मैं एक प्रोग्रेसिव सिनेमा का हिस्सा हूं। स्क्रिप्ट के मामले में मैं हमेशा ये देखता हूं कि इस तरह की फिल्म पहले न बनी हो या सब्जेक्ट का कोई रेफरेंस प्वाइंट न हो। ऐसे में मैं चाहता हूं कि हर बार दर्शकों को कुछ नया दे सकूं।
फिल्म का सब्जेक्ट काफी इंट्रस्टिंग है, लेकिन दर्शक इस तरह की फिल्में परिवार के तौर पर साथ बैठ कर देखने में कतराते हैं। उदाहरण के लिए माता-पिता और बच्चों के बीच में फिल्म ‘असहज’ माहौल बनाती है?
आयुष्मान: मुझे नहीं लगता कि ‘विक्की डोनर’ और ‘शुभ मंगल सावधान’ के मुकाबले ये फिल्म इतनी असहज होगी। फिल्म में प्रेग्नेंसी का टॉपिक है, सब जानते हैं प्रेग्नेंसी कैसे होती है। फिल्म में ऐसी कोई लाइन या डायलॉग नहीं है जो चीप हो या असहज महसूस करवाता हो। यह बहुत ही साफ सुधरी फिल्म है। फिल्म को लेकर आपको ऐसा नहीं लगेगा कि आप फलाने के साथ यह फिल्म देखने नहीं जा सकते।
आयुष्मान खुद को क्षेत्रीय भाषाओं में ढाल लेना आपके लिए कितना आसान या कितना मुश्किल होता है?
आयुष्मान: मेरा बैकग्राउंड थिएटर रहा है। ऐसे में थोड़ी आसानी हो जाती है। इसके अलावा अलग-अलग राज्यों के लोगों से भी मेरा मिलना जुलना लगा रहता है। मैंने फिल्म ‘मेरी प्यारी बिंदू’ के लिए बंगाली सीखी थी। ‘हवाईजादा’ के लिए मराठी सीखी थी। इस फिल्म में भी मैं तीन अलग भाषाएं बोल रहा हूं। फिल्म में ऑफिस में मेरी भाषा और बोलने का लहजा अलग होता है। घर में मेरठ वाला लहजा हो जाता है। फिल्म में हम लोग ‘मेरठ के लोग’ बने हुए हैं। वहीं कई सीन्स में दोस्तों के साथ हरियाणवी भी बोलता दिखाया गया हूं।
आयुष्मान आपकी फीमेल फॉलोअर्स की संख्या अधिक है। फैन्स आपको ‘दोस्ताना’ के जॉन अब्राहम की तरह देखना चाहते हैं?
आयुष्मान: वह एक अलग तरह के जॉनर में बनी फिल्म है। यकीनन मेरी फिल्म की स्क्रिप्ट में डिमांड होगी और वह जायज होगी तो जरूर। वैसे मैं ऐसे कोई बराबरी नहीं करना चाहता लेकिन सब स्क्रिीप्ट पर डिपेंड करता है।

इन दिनों बी-टाउन में #मीटू मूवमेंट की आंधी चल रही है। इस बाबत आप क्या कहेंगे?
आयुष्मान: महिलाओं के साथ ऐसा हो रहा है ऐसे में अब ये वक्त है जब महिलाएं सामने आ रही हैं और खुलकर बात कर रही हैं। अच्छा मूवमेंट है, लेकिन दोनों तरफ की बातों को सुना जाना चाहिए। अपनी बात रखने का दोनों पार्टियों को मौका मिलना चाहिए। हमें बातों में आकर फैसले देने से बचना चाहिए। वहीं ऐसे सबके सामने आने में महिलाओं को भी बहुत हिम्मत की जरूरत पड़ती है। यह सराहनीय भी है।