Baazaar Movie Review and Rating: बहुत दिनों बाद सैफ अली खान की कोई ऐसी फिल्म आई है जिसमें उनका किरदार दमदार है और फिल्म भी वजनदार है। वरना उनकी पिछली कुछ फिल्में बॉक्स आॅफिस पर टिक ही नहीं पार्इं। फिल्म ‘बाजार’ में सैफ ने शेयर बाजार पर पकड़ रखने वाले ऐसे शख्स का किरदार निभाया है जिसे आम बोलचाल की भाषा में ‘बुल’ कहा जाता है। बुल तिकड़म और दांव-पेच के जरिए कंपनियों के शेयर खरीदता और बेचता है। समझ लीजिए कि शेयर बाजार का कारोबार बुल के इर्द-गिर्द घूमता है। वैसे तो शेयर की खरीद-बिक्री कानूनी तरीके से हो, इसकी निगरानी के लिए सेबी (सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड आॅफ इंडिया) जैसी संस्था है, लेकिन शेयर बाजार पर व्यावहारिक नियंत्रण बुल ही करते हैं। इसीलिए शेयर बाजार की दुनिया में कदम रखने वालों के लिए यही आदर्श होते हैं।

इलाहाबाद का रहने वाला रिजवान अहमद (रोहन मेहरा) भी शेयर ब्रोकर बनकर आसमान छूना चाहता है। वो शकुन कोठारी (सैफ अली खान) को अपना आदर्श मानता है। कोठारी मुंबई शेयर बाजार का एक बेदर्द ट्रेडर है। उसके लिए कायदे-कानून कोई मायने नहीं रखते। उसका मकसद सिर्फ रातों-रात मुनाफा कमाना है, चाहे इसके लिए उसे दूसरों का इस्तेमाल ही क्यों न करना पड़े। सेबी की नजर कोठारी पर है लेकिन वह इसकी परवाह नहीं करता। इलाहाबाद में अपने ईमानदार पिता का थप्पड़ खाने के बाद रिजवान मुंबई पहुंचता है। उसके पास बड़े-बड़े सपनों के अलावा कुछ नहीं है। वह ठीक से अंग्रेजी भी नहीं बोल पाता। ऐसे में क्या रिजवान उस दुनिया में टिक पाएगा जहां अंग्रेजीदां मैनेजमेंट ग्रेजुएट लोगों का बोलबाला है। क्या वह शकुन कोठारी से मिल पाएगा और उसके जैसा बन पाएगा, यह सब जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।

‘बाजार’ हालांकि शेयर बाजार के दांव-पेच और उठा-पटक की कहानी है, लेकिन इसमें एक छोटी सी प्रेम कहानी भी है, रिजवान और प्रिया (राधिका आप्टे) की। हालांकि यह प्रेम कहानी शेयर बाजार की चालाकियों और धूर्तताओं में लिपटी हुई है इसलिए इसमें ज्यादा दम नहीं है और गानों के बावजूद यह प्रेम कहानी परदे पर उभरकर नहीं आती। चित्रांगदा सिंह ने फिल्म में शकुन कोठारी की पत्नी की भूमिका निभाई है जो ज्यादातर घर में रहती है और कभी-कभार पार्टियों में शरीक होती है, लेकिन कहानी के अंत में उनका चरित्र निर्णायक हो जाता है। रिजवान का किरदार निभाने वाले रोहन मेहरा टेलीविजन के चर्चित चेहरे हैं। चेहरे-मोहरे से भी वो एक छोटे शहर से आए उस शख्स की तरह लगते हैं कि जिसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि मध्यवर्गीय है और वह इस चालबाजी की दुनिया को समझने में माहिर नहीं है। फिल्म की शुरुआत प्रभावशाली है, जिसमें शकुन कोठारी जैन धर्म के एक समारोह में मंत्रोच्चार के बीच अपने एक पुराने परिचित की कंपनी धोखे से हड़प लेता है। ‘बाजार’ व्यावसायिक जगत की प्रतिस्पर्धाओं की कहानी भी है जिसमें बड़े बिजनेसमैन एक-दूसरे के खिलाफ षडयंत्र रचते हैं। निर्देशक की एक सफलता यह भी है कि शकुन कोठारी के किरदार में खलनायकी के तत्व होने के बावजूद वह खलनायक जैसा नहीं दिखता।