सूचना और प्रसारण मंत्री अरुण जेटली ने सोमवार को कहा कि समय आ गया है कि सेंसर बोर्ड के कामकाज पर पुनर्विचार किया जाए। इससे ऐसा लगता है कि अक्सर विवादों में रहने वाले सेंसर बोर्ड का संभवत: कायाकल्प हो सकता है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि वह चाहेंगे कि प्रमाणन बोर्ड ‘विवाद मुक्त’ हो। उन्होंने कहा कि वह कुछ विशेषज्ञों के साथ मामले पर चर्चा कर रहे हैं कि इस निकाय की भविष्य में क्या भूमिका होनी चाहिए। जेटली ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘मेरा मानना है कि समय आ गया है कि प्रमाणन बोर्ड की भूमिका पर गौर किया जाए, जैसा मैं इसे कहना पसंद करता हूं। प्रमाणन बोर्ड के विवाद मुक्त रहने की जरूरत है।’ उन्होंने कहा, ‘मेरी इसपर कुछ राय है और मैं पहले ही कुछ विशेषज्ञों के साथ चर्चा कर रहा हूं कि इस निकाय की भावी भूमिका क्या होनी चाहिए।’

केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) को आमतौर पर सेंसर बोर्ड कहा जाता है। यह सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत एक वैधानिक सेंसरशिप और वर्गीकरण निकाय है। इसे सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 के तहत फिल्मों के सार्वजनिक प्रदर्शन का नियमन करने का अधिकार है। पहलाज निहलानी की अध्यक्षता वाला मौजूदा बोर्ड भी हाल में कई अवसरों पर विवादों में रहा है। इसमें उनके द्वारा किए गए कुछ फैसले भी शामिल रहे हैं। इसका बोर्ड के कई अन्य सदस्यों ने विरोध किया। यह पूछे जाने पर कि क्या वह बोर्ड के मौजूदा अध्यक्ष जो कुछ भी कर रहे हैं उससे नाखुश हैं, तो जेटली ने कोई सीधा जवाब नहीं दिया और कहा, ‘मैं प्रमाणन बोर्ड को विवाद मुक्त चाहूंगा।’

बोर्ड में कुछ गैर आधिकारिक सदस्य और एक अध्यक्ष होता है। इन सबकी नियुक्ति केंद्र सरकार करती है। हाल में कई फिल्मकारों ने बोर्ड द्वारा मनमानी आपत्तियां और कट सुझाने की शिकायत की है। बोर्ड इस साल की शुरुआत में ही विवादों में घिर गया था जब तत्कालीन सेंसर बोर्ड अध्यक्ष लीला सैमसन और बोर्ड के 13 सदस्यों ने सरकार पर यह आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया था कि वह उनके साथ अपमानजनक और उपेक्षापूर्ण तरीके से सलूक कर रही है। इसके बाद सैमसन की जगह निहलानी को सेंसर बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। वह तब से कई विवादों में घिरे रहे हैं। इसमें हालिया जेम्स बांड फिल्म ‘स्पेक्टर’ में कुछ दृश्यों को काटना भी शामिल है।