चुनावी मौसम में चुनावी फिल्म अगर आ जाए तो लोगों के मन एक बज तो बन ही जाता है। ऐसी फिल्में किसी भी विचारधारा से प्रेरित रहें, उनके चलने की संभावनाएं ज्यादा मानी जाती हैं। पिछले कुछ सालों में ‘उरी- द सर्जिकल स्ट्राइक’, ‘कश्मील फाइल्स’, ‘द केरल स्टोरी’ ऐसी फिल्में हैं जिन्होंने छप्पड़ फाड़ पैसा बॉक्स ऑफिस पर कमाया है। अब उसी उम्मीद के साथ एक्ट्रेस यामी गौतम की नई फिल्म ‘आर्टिकल 370’ रिलीज हो गई है। फिल्म का निर्देशन आदित्य सुहास जांभले ने किया है जो नेशनल अवॉर्ड भी जीत चुके हैं। अब इस बार कमाल किया, निराश किया है या कुछ और, आइए जानते हैं।

कहानी

‘आर्टिकल 370’ की कहानी सत्य घटनाओं पर आधारित है। जम्मू-कश्मीर से जिस 370 का सफाया किया गया था, उसकी इनसाइड स्टोरी मेकर्स ने बताने का प्रयास किया है। इस संवेदनशील मुद्दे को थोड़ा आसान बनाने के लिए कई चैप्टरों में पूरी फिल्म को बांट दिया गया है। बुरहान वानी की हत्या से शुरू हुई कहानी दर्शकों को बीजेपी-पीडीपी के टूटते गठबंधन तक लेकर जाती है। उसके बाद घाटी में लगे राष्ट्रपति शासन का जिक्र आता है, फिर पुलवामा हमले की शहादत दिखाई जाती है और अंत में अनुच्छेद 370 को हटाने वाला ऐतिसाहिक फैसला होता है।

अब गृह मंत्री अमित शाह का चर्चित बयान है- आप क्रोनोलॉजी समझिए। लगता है मेकर्स ने उसी बयान को काफी गंभीरता से लिया है, इसी वजह से पूरी क्रोनोलॉजी बताने पर ही सारा फोकस दिखा है। अब फिल्म है, ऐसे में असल कहानी को भी बांधे रखने के लिए कई सारे किरदारों को जोड़ दिया गया है। जूनी (यामी गौतम) एक NIA एजेंट है जिसे जम्मू-कश्मीर में शांति स्थापित करनी है। अगर 370 को हटाना है तो घाटी में माहौल नियंत्रण में रहे, इसकी जिम्मेदारी उसे दे रखी है। दूसरा किरदार प्रधानमंत्री की पीए राजेश्वरी (प्रिया मणि) का है जिसे हर कोई रिपोर्ट करता है। बाकी कई ऐसे और किरदार जोड़ रखे हैं जो असल घटनाओं से ही प्रेरित हैं, नाम किसी का नहीं लिया गया है, लेकिन बतौर दर्शक आप समझ जाएंगे।

लंबी फिल्म, फिर भी बांधने की शक्ति

आर्टिकल 370 को जिस अंदाज में भुना गया है, कहानी आपको अंत तक बांधकर रखती है। पहला हाफ तो काफी फॉस्ट पेस्ड है, तेजी से सबकुछ स्क्रीन पर होता रहता है, एक ऑपरेश से दूसरे ऑपरेशन वाला ट्रांजीशन पलके झपकाने का मौका नहीं देता। इस रफ्तार पर ब्रेक सेकेंड हाफ में लगता है जब कुछ जगहों पर फिल्म खिची हुई से महसूस होने लगती है। ये बात समझना जरूरी है, फिल्म की लेंथ 2 घंटा 40 मिनट है। ऐसे में एक बंधी हुई कहानी भी लंबी लगने लगती है। इसी वजह से आर्टिकल 370 का क्लाइमेक्स थोड़ा कमजोर दिखाई देता है।

क्लाइमेक्स कमजोर, एक्टिंग का जलवा

क्लाइमेक्स में जिस 370 को हटाने वाले सीन को दिखाया गया है, उम्मीद की गई थी कि रोगंटे खड़े हो जाएंगे। लेकिन ये वाली फीलिंग मिसिंग दिखी, एंडिंग कुछ फ्लैट पाई गई। ऐसे में एक अच्छी शुरुआत को उतने ही अच्छे अंजाम तक नहीं पहुंचाया गया। बात अगर एक्टिंग डिपार्टमेंट की करें तो ये फिल्म पूरी तरह यामी गौतम की ही है। बड़ी बात देखिए, फिल्म में कोई बहुत बड़ा मेल स्टार नहीं है, सिर्फ यामी को प्रमोट किया गया है। हाल के सालों में बॉलीवुड ने फिल्मों में जिस तरह से फीमेल कलाकारों की सक्रियता को बढ़ाया है, वो काबिले तारीफ है।

वैसे आर्टिकल 370 में प्रिय मणि को भी यामी की तरह काफी स्क्रीन स्पेस दी गई है। पीएम की पीए की भूमिका में उनकी अदाकारी भी ठहराव और नजाकत की एक बेहतरीन मिसाल है। जिन सीन्स में वे यामी गौतम या फिर दूसरे अधिकारियों के साथ बातचीत कर रही हैं, वहां तो और ज्यादा उनका किरदार निखरकर सामने आया है।

लेकिन पीएम बने अरुण गोविल और गृह मंत्री के रोल में किरण करमाकर, उनका काम उतना इंप्रेस नहीं करता है।एक तो अरुण गोविल को काफी कम स्क्रीन टाइम दिया गया है, उसके ऊपर जितने मौके मिले भी हैं, वहां उनका किरदार उतनी अच्छी तरह दर्शकों के साथ कनेक्ट करता नहीं दिखता है। वहीं बात अगर किरण करमाकर की करें तो उन्होंने तो कई मौकों पर गृह मंत्री की मिमिक्री करने की कोशिश की है, वो कोशिश ही उनके किरदार को कैरिकेचर जैसा बना डालती है। फिल्म में और भी एक्टर्स है, सभी का काम ठीक कहा जाएगा।

डायरेक्टर कहीं चूके कहीं जीते

फिल्म का निर्देशन आदित्य सुहास जांभले ने किया है। दो चीजों के लिए उन्हें पूरे नंबर देने पड़ेंगे- पहला ये कि कहानी ने दर्शकों को अंत तक बांधकर रखा, दूसरा ये कि एक पॉलिटिकल फिल्म होते हुए भी ये किसी पार्टी की प्रचारक मात्र नहीं बनी है। तो इन दानों ही सफलताओं के लिए तारीफ निर्देशक की होनी चाहिए। अब तारीफ हुई है तो कुछ चूक भी देखने को मिली है। फिल्म में क्रिएटिव लिबर्टी के नाम पर कुछ सीन्स ऐसे रखे गए हैं जिनका लॉजिक से कोई लेना देना नहीं दिखता। ऐसे सीन एक गंभीर-इंटेंस ड्रामे को फीका करने का काम करते हैं।

वैसे फिल्म का एक्शन अच्छे स्टैंडर्ड का रहा है और वास्तविकता के भी करीब दिखता है। बैकग्राउंड स्कोर भी काफी चालाकी के साथ सही समय पर इस्तेमाल हुआ है, ऐसे में वो एलिमेंट भी निखरकर सामने आया है। यानी कि यामी गौतम की आर्टिकल 370 खुद को एक बड़ी हिट बनाने के सारे गुण रखती है, कुछ चूक को अगर नजरअंदाज कर दिया जाए तो ये फिल्म बड़े पर्दे के लिए एक ट्रीट से कम नहीं।